आशुतोष भगवान शिव जी की प्रियतम वस्तुओं मे रुद्राक्ष का स्थान सर्वोपरि है ।इसका प्रमुख कारण यह है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव जी के द्वारा ही हुई है।शिव पुराण के द्वारा ज्ञात होता है कि एक बार भगवान शिव जी ने लोकोपकार की भावना से ओत-प्रोत होकर दीर्घकालीन तपस्या आरम्भ की।वे अपने मन को पूर्ण संयमित रखते हुए सहस्रों दिव्य वर्षों तक तपस्या मे लगे रहे।एक दिन सहसा उनका मन क्षुब्ध हो उठा और उन्होंने लीलावश अपने नेत्र खोल दिया।नेत्र खुलते ही उनके नेत्रपुटों से कुछ अश्रुविन्दु टपक पड़े।उन्हीं अश्रुविन्दुओं से रुद्राक्ष-वृक्ष उत्पन्न हो गये।ये रुद्राक्ष सर्वप्रथम गौड़ देश मे उत्पन्न हुए।बाद मे ये अयोध्या ; मथुरा ; लंका ; मलयाचल ; सह्यगिरि ; काशी आदि स्थानो पर भी उग आये।
ये रुद्राक्ष अत्यन्त पवित्र और पापनाशक होते हैं।इसलिए इन्हें सभी स्त्रियों और पुरुषों को अवश्य धारण करना चाहिए ।जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करते हैं ; वे सभी पापों से मुक्त होकर पूर्ण निष्कलुष हो जाते हैं।इन्हें धारण करने वाले पापी गण भी पूर्णरूपेण शुद्ध होकर भगवान शिव जी के प्रिय बन जाते हैं।इतना ही नहीं ; बल्कि इनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप निर्मूल हो जाते हैं।जो लोग इन्हें धारण करते हैं ; वे समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग कर अन्त मे मोक्ष को प्राप्त करते हैं।जो लोग रुद्राक्ष धारण करते हैं ; उन्हें यमलोक की यातनाओं का सामना नही करना पड़ता है ।इतना ही नहीं ; बल्कि रुद्राक्षधारी लोगों के पास यमदूत जाते ही नहीं हैं।इसलिए रुद्राक्ष धारण करने वालों को अपमृत्यु या अकालमृत्यु का कोई भय नही रहता है।
रुद्राक्ष अनेक रंग रूप के होते हैं।ये सभी अत्यन्त पवित्र; पापनाशक तथा पुण्यदायक होते हैं।इनकी माला से सभी मंत्रों का जप किया जा सकता है ।मणि आदि की माला की अपेक्षा रुद्राक्ष की माला से किया गया जप करोड़ो गुना अधिक फल प्रदान करता है।अतः समस्त कल्याणार्थी मनुष्यो को चाहिए कि वे रुद्राक्ष की माला अवश्य धारण करें।
Monday, 1 January 2018
रुद्राक्ष माहात्म्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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