तीर्थराज प्रयाग मे प्रतिवर्ष माघ मास मे विशाल मेला लगता है।इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु यहाँ आकर एक महीने तक संगम तट पर निवास करते हुए जप तप ध्यान साधना यज्ञ दान आदि विविध प्रकार के धार्मिक कृत्य करते हैं।इसी को कल्पवास कहा जाता है।कल्पवास का वास्तविक अर्थ है - कायाकल्प।यह कायाकल्प शरीर और अन्तःकरण दोनो का होना चाहिए।अतः इसी द्विविध कायाकल्प हेतु पवित्र संगम तट पर जो एक महीने का वास किया जाता है ; उसी को कल्पवास कहा जाता है।
हमारे देश मे प्राचीन काल से ही साधना उपासना आदि के विषय मे वैविध्य पूर्ण स्थिति बनी हुई है।यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अपने इष्टदेव की उपासना करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।इसे प्राचीन मनीषियों ने भी स्वीकार किया है।फिर भी किसी प्रकार के द्वन्द्व अथवा किसी को पराभव दिखाने की भावना कभी नहीं रही।यहाँ तो एकात्मबोध को ही सर्वोपरि माना गया है।इसीलिए एक निश्चित अवसर पर पवित्र तीर्थों मे एकत्र होने और वहाँ कुछ समय तक निवास करने का विधान बनाया गया था।
प्रयागराज मे जब बस्ती नहीं थी ; तब संगम के आस-पास घोर जंगल था।उस जंगल मे अनेक ऋषि-मुनि जप तप करते थे।उन लोगों ने ही गृहस्थों को अपने सान्निध्य मे ज्ञानार्जन एवं पुण्यार्जन करने हेतु अल्पकाल के लिए कल्पवास का विधान बनाया था।इस योजना के अनुसार अनेक धार्मिक गृहस्थ ग्यारह महीने तक अपनी गृहस्थी की व्यवस्था करने के बाद एक महीने के लिए संगम तट पर ऋषियों मुनियों के सान्निध्य मे जप तप साधना आदि के द्वारा पुण्यार्जन करते थे।यही परम्परा आज भी कल्पवास के रूप मे विद्यमान थी।
प्रयाग मे कुम्भ तो बारहवें वर्ष पड़ता है किन्तु यहाँ प्रतिवर्ष माघ मास मे जब सूर्य मकर राशि मे रहते हैं ; तब माघ मेला एवं कल्पवास का आयोजन किया जाता है।प्रयाग मे अमृत-कुम्भ से अमृत की कुछ बूँदें छलक गयी थीं ; जिससे यहाँ की भूमि अमृतमयी हो गयी थी।उसी अमृत की प्राप्ति के लिए यहाँ प्रतिवर्ष माघ-स्नान एवं कल्पवास का आयोजन होता है।इस अवसर पर केवल जन - साधारण ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े योगी ; सन्यासी ; विद्वान् ; सन्त-महात्मा आदि आते हैं।विदेशों से भी असंख्य श्रद्धालु आते हैं।
कल्पवास की तिथि के विषय मे दो मत विशेष प्रचलित हैं।प्रथम मत के अनुसार मकर संक्रान्ति से लेकर कुम्भ संक्रान्ति तक कल्पवास करना चाहिए।द्वितीय मतानुसार पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक करना चाहिए।
कल्पवास की विधि ----
कल्पवासियों को सन्यासियों की भाँति आचरण करना चाहिए।उन्हें काम क्रोध लोभ मोह आदि का परित्याग कर श्रद्धा-भक्ति के साथ प्रतिदिन सूर्योदय के पूर्व स्नान करना चाहिए।उसके बाद तर्पण एवं सूर्यार्घ्य प्रदान करें।प्रतिदिन निराहार ; फलाहार ; शाकाहार ; दुग्धाहार या एकभुक्त व्रत का पालन करें।ब्रह्मचर्य पूर्वक भूशयन करें।त्रिकालसन्ध्या ; इन्द्रिय-शमन ; जप ; तप ; हवन ; देवार्चन ; अतिथि-सत्कार आदि अवश्य करें।सन्त-महात्माओं के उपदेशों का श्रवण करें।प्रतिदिन अथवा मास भर मे एक बार ब्राह्मणों एवं सन्यासियों को भोजन ; दान-दक्षिणा आदि से सन्तुष्ट करें।
माहात्म्य ----
माघ मास मे संगम-स्नान एवं कल्पवास करने की महत्ता प्रायः सभी शास्त्रों एवं पुराणों मे वर्णित है।इस पुनीत कार्य से मनुष्य के सभी पाप ताप एवं दुःख नष्ट हो जाते हैं।मत्स्यपुराण के अनुसार संगम मे स्नान करने तथा वहाँ एक मास तक वास करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त होकर अधिकाधिक मनोरथों को प्राप्त कर लेता है।पद्मपुराण मे तो इतना तक कहा गया है कि संगम मे स्नान करने से इतना अधिक पुण्य होता है कि उसकी गणना ही कोई नहीं कर पायेगा।अर्थात् असीम मात्रा मे पुण्यप्राप्ति होती है ---
प्रयागे तु नरो यस्तु माघस्नानं करोति च ।
न तस्य फलसंख्यास्ति श्रृणु देवर्षिसत्तम ।।
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