Monday, 22 February 2016

माता कालरात्रि

           मातेश्वरी दुर्गा जी के सप्तम स्वरूप को माता कालरात्रि के नाम से जाना जाता है।नवरात्र मे सप्तमी को इन्हीं के पूजन का विधान है।
           शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से " कालस्य रात्रिः विनाशिका इति कालरात्रिः " --- अर्थात् जो सबको मारने वाले काल की भी रात्रि ( विनाशिका ) हैं।उन्हें कालरात्रि कहा जाता है।
            इनका शरीर अत्यन्त कृष्ण वर्णीय एवं भयानक है।सिर पर बिखरे हुए बाल एवं गले मे विद्युत सदृश अत्यन्त देदीप्यमान माला सुशोभित है।इनके तीन नेत्र हैं ; जिनसे विद्युत ज्योति निकलती रहती है।इनकी नासिका से श्वास-प्रश्वास छोड़ने पर सहस्रों अग्नि-शिखायें निकलती रहती हैं।
             इनके स्वरूप के विषय मे विद्वानों मे दो मत हैं।प्रथम मतानुसार इनके ऊपर वाले दक्षिण एवं वाम हस्त मे क्रमशः तलवार और प्रज्वलित मशाल है।नीचे वाले दायें और बायें हाथों मे क्रमशः वरमुद्रा तथा अभयमुद्रा है।इन हाथों से वे अपने भक्तों को अभीष्ट वर एवं अभय प्रदान करती हैं।द्वितीय मतानुसार ऊपर उठे हुए दक्षिण हस्त मे वरमुद्रा तथा निचले हस्त मे  अभयमुद्रा है।ऊपर वाले वाम हस्त मे लोहे का काँटा तथा निचले हाथ मे खड्ग विराजमान है।
           यद्यपि माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यन्त भयानक है फिर भी ये अपने भक्तों का सदैव शुभ करने वाली हैं।इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।इनकी उपासना से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है।इनके नामोच्चारण मात्र से भूत ; प्रेत ; दैत्य ; दानव ; राक्षस आदि समस्त आसुरी शक्तियाँ भयभीत होकर भाग जाती हैं।ये अपने भक्तों के ग्रहजन्य कष्टों को दूर करके उसके जीवन को मंगलमय बना देती हैं।उसे अग्नि ; जल ; शत्रु ; विषैले जीवों आदि से कोई भय नहीं रहता है।वह पूर्ण रूप से भयमुक्त होकर सानन्द जीवन व्यतीत करता है।साथ ही अन्त मे मोक्ष को प्राप्त होता है।
           अतः ऐसी वरदायिनी एवं परम सुखदायिनी माता जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए।इनका ध्यान करने के लिए यह मन्त्र बहुत उपयुक्त है ---
       करालरूपा कालाब्जसमानाकृतिविग्रहा।
        कालरात्रिः शुभं दद्याद् देवी चण्डाट्टहासिनी।।
    ------ अर्थात् जिनका रूप अत्यन्त विकराल है ; जिनकी आकृति एवं विग्रह कृष्ण कमल सदृश है ; वे कालरात्रि देवी मेरे लिए शुभ प्रदान करें।

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