सामान्य रूप से पुत्र द्वारा पिता का पूजन-अर्चन किया जाता है ; परन्तु कभी-कभी इसका विपर्यय भी दृष्टिगत होता है।गणेश जी भगवान शिव जी के पुत्र हैं।उनके द्वारा शिव जी का पूजन किया जाना चाहिए।परन्तु अनेक ऐसी पौराणिक कथायें उपलब्ध हैं ; जिसमे शिव जी ने गणेश जी की उपासना की थी।यहाँ इसी प्रकार का एक प्रसंग प्रस्तुत है।
एक बार देवताओं और त्रिपुरासुर के मध्य भयानक युद्ध आरम्भ हुआ।असुरों की मायावी शक्ति के समक्ष देवता पराजित होकर शिव जी के पास गये।उनकी करुण-कथा को सुनकर शिव जी युद्ध करने चल दिये।दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ।किन्तु त्रिपुरासुर पराजित नहीं हो रहा था।शिव जी के सभी शस्त्रास्त्र विफल हो रहे थे।शिव जी बहुत चिन्तित थे।उसी समय देवर्षि नारद आ गये।शिव जी ने उन्हें अपनी और देवताओं की व्यथा सुनाई।नारद जी ने मुस्कराते हुए कहा -- प्रभुवर ! आप सर्वज्ञ एवं सर्व समर्थ हैं।किन्तु युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय आपने विघ्नेश्वर गणेश का पूजन नहीं किया।इसीलिए आपको विजय की प्राप्ति मे अवरोध आ रहा है।यह बात शिव जी की समझ मे आ गयी।
नारद जी के चले जाने पर शिव जी ने गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया।कुछ दिनों बाद उनके मुख से एक परम तेजस्वी देवता का आविर्भाव हुआ।शिव जी आश्चर्य चकित हो गये।तब उस देवता ने कहा -- आप जिसकी उपासना कर रहे हैं ; मै वही विघ्नविनाशक हूँ।मै आपकी तपस्या से अत्यधिक प्रसन्न हूँ।अतः आप मनोवाँछित वर माँगिये।
शिव जी पुनः स्तुति करने लगे।उनकी स्तुति से गणेश जी और अधिक प्रसन्न हुए।उन्होंने शिव जी के मनोभाव को जानकर कहा -- आप मेरे बीज मन्त्र " गं " का उच्चारण कर बाण छोड़िये।इससे वे असुर ( त्रिपुरासुर ) नष्ट हो जायेंगे।उसी समय गणेश जी ने शिव जी को अपने सहस्र नाम का उपदेश दिया और बताया कि युद्ध के पूर्व आप इसका एक पाठ कर लेंगे तो सम्पूर्ण असुरों का विनाश हो जायेगा।
Saturday, 9 July 2016
शिव जी द्वारा गणेशोपासना -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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