भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे मत्स्यावतार की गणना दशम स्थान पर की गयी है।चाक्षुष मन्वन्तर के अन्त मे जब सम्पूर्ण त्रिलोकी प्रलय-सागर मे डूब रही थी ; तब भगवान श्रीहरि ने मत्स्य ( मछली ) के रूप मे दशम अवतार ग्रहण किया और पृथ्वी रूपी नौका पर बैठाकर अग्रिम मन्वन्तर के अधिपति वैवस्वत मनु की रक्षा की थी ---
रूपं स जगृहे मात्स्यं चाक्षुषोदधिसम्प्लवे।
नाव्यारोप्य महीमय्यामपाद्वैवस्वतं मनुम्।।
प्राचीन काल मे सत्यव्रत नामक महाप्रतापी शासक थे।दीर्घकाल तक प्रजारक्षण करने के बाद वे अपने पुत्रों को राज्यभार सौंपकर तप करने चले गये।एक दिन वे कृतमाला नदी मे तर्पण कर रहे थे ; उसी समय उनकी अंजलि मे एक मछली आ गयी।उन्होंने उसको पुनः उसी नदी मे डाल दिया।तब मछली ने कहा राजन् ! जल मे रहने वाले जीव-जन्तुओं के भय से ही मै आपकी शरण मे आई हूँ।इसलिए मुझे इस नदी मे मत डालिये।बल्कि मुझे कहीं अन्यत्र रखकर मेरी रक्षा की व्यवस्था कीजिए।इसे सुनकर राजा ने उसे अपने कमण्डलु के जल मे डाल दिया और उसे अपने आश्रम मे ले आये।
अब भगवान् श्रीहरि ने अपनी लीला दिखानी आरम्भ कर दी।रात भर मे वह मछली इतनी बड़ी हो गयी कि कमण्डलु मे रहने के लिए स्थान ही न रहा।राजा ने उसे मटके मे डाल दिया।वह वहाँ भी बहुत अधिक बढ़ गयी।राजा ने उसे एक सरोवर मे डाल दिया।थोड़ी ही देर मे वह सम्पूर्ण सरोवर मे फैल गयी।राजा ने उसे अनेक विशाल सरोवरों मे डाला किन्तु कहीं भी उसके रहने योग्य स्थान नहीं मिला।अन्त मे राजा ने उसे समुद्र मे डाल दिया।तब मछली ने राजा से कहा -- राजन् समुद्र मे बड़े-बड़े मकर आदि जलजन्तु रहते हैं।वे मुझे खा जायेंगे।इसलिए मुझे समुद्र मे मत डालिए।
मछली की बात सुनकर राजा मोहमुग्ध हो गये।उन्होंने पूछा -- मत्स्यरूप धारण करने वाले आप कौन हैं ? आपने एक ही दिन मे चार सौ कोस वाले सरोवर को घेर लिया है।इससे मुझे प्रतीत होता है कि आप साक्षात् सर्वशक्तिमान् सर्वान्तर्यामी अविनाशी श्रीहरि ही हैं।जीवों पर अनुग्रह करने के लिए ही आपने यह रूप धारण किया है।आपने जिस रूप मे मुझे दर्शन दिया है ; वह बहुत विचित्र एवं अद्भुत है।राजा की विनम्र वाणी को सुनकर भगवान् मत्स्य प्रसन्न हो गये।उन्होंने बताया कि आज से सातवें दिन तीनो लोक प्रलय-सागर मे डूब जायेंगे।उस समय एक विशाल नौका आयेगी।उस पर तुम सप्तर्षियों के साथ बैठ जाना।अपने साथ समस्त धान्यों एवं अन्य प्रकार के बीजों को भी रख लेना।जब सागर लहराने लगे ; अन्धकार बढ़ने लगे ; और नौका डगमगाने लगे तब मै इसी रूप मे आऊँगा।तुम नागवासुकि को रस्सी बनाकर इस नौका को मेरी सींग मे बाँध देना।मै ब्रह्मा जी की रात भर के समय तक तुम्हें उसी नौका पर बैठाकर समुद्र मे विचरण करूँगा।उसी समय मेरे उपदेश के द्वारा तुम्हारे हृदय मे परब्रह्म की महिमा का उदय हो जायेगा।इतना कहकर भगवान अन्तर्धान हो गये।
कालान्तर मे प्रलय का समय आ गया।मूसलाधार वर्षा से समुद्र बढ़ने लगा और पृथ्वी डूबने लगी।उसी समय नौका आ गयी।सप्तर्षियों सहित राजा सत्यव्रत उस पर सवार हो गये।मत्स्य भगवान भी प्रकट हो गये।उनकी सींग मे नौका बाँध दी गयी।राजा सत्यव्रत भगवान की स्तुति करने लगे।मत्स्य भगवान ने प्रलय-सागर मे विहार करते हुए राजा को आत्मतत्त्व का उपदेश दिया।दीर्घकाल बाद प्रलय का अन्त हुआ और भगवान की कृपा से राजा सत्यव्रत इस कल्प मे वैवस्वत मनु हुए।इस प्रकार मत्स्य भगवान ने अपनी लीला के द्वारा राजा सत्यव्रत की रक्षा करके उन्हें इस मन्वन्तर का अधिपति बना दिया।
Friday, 22 July 2016
मत्स्यावतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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