Tuesday, 28 January 2020

तीन मुखी रुद्राक्ष -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

        यह तो सर्व विदित है कि सभी रुद्राक्ष अत्यन्त पवित्र ; पुण्यदायक एवं कल्याणकारी होते हैं।परन्तु प्रत्येक रुद्राक्ष की अपनी कुछ निजी विशेषतायें होती हैं ; जो अन्य रुद्राक्षों मे दुर्लभ होती है ।तीन मुखी रुद्राक्ष भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।इसमे असंख्य ऐसी विशेषतायें विद्यमान हैं जो इसकी महत्ता को प्रदर्शित करती हैं।शास्त्रीय मान्यता के अनुसार तीन मुखी रुद्राक्ष को त्रिदेवों अर्थात् ब्रह्मा  ; विष्णु तथा महेश का प्रतीक माना जाता है ।इसमे इन तीनों देवताओं का निवास होता है ।इसे तीनों अग्नियों अर्थात् गार्हपत्य ; आह्वनीय तथा दक्षिणाग्नि का स्वरूप भी माना जाता है ।ये विशेषतायें इसकी महत्ता मे चार चाँद लगा देती हैं।
      महा शिव पुराण मे तीन मुखी रुद्राक्ष की बहुत अधिक प्रशंसा की गयी है ।इसके अनुसार तीन मुखी रुद्राक्ष सदा साक्षात् साधन का फल देने वाला है ।उसके प्रभाव से सारी विद्यायें प्रतिष्ठित हो जाती हैं ---
      त्रिवक्त्रो यो हि रुद्राक्षः साक्षात्साधनदः सदा।
      तत्प्रभावाद्भवेयुर्वै विद्याः सर्वाः प्रतिष्ठिताः ।।

तीन मुखी रुद्राक्ष से लाभ  ---
     तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य को असंख्य लाभ होते हैं।मै यहाँ पर कुछ प्रमुख लाभों की चर्चा कर रहा हू --
1 -- तीन मुखी रुद्राक्ष मे त्रिदेवों का वास होता है।इसलिए इसे धारण करने पर मनुष्य को उन तीनों की कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।
2 -- तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य को सभी साधनों का फल स्वयमेव प्राप्त हो जाता है ।
3 -- इसे धारण करने से मनुष्य के अन्दर सभी विद्यायें स्वयं ही प्रतिष्ठित हो जाती हैं।
4 -- आर्थिक प्रगति कराने मे भी तीन मुखी रुद्राक्ष की अहं भूमिका मानी गई है।इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करता है ; उसे वाणिज्य व्यापार व्यवसाय नौकरी आदि मे उल्लेखनीय सफलता प्राप्त होती है ।उसे पर्याप्त धनार्जन करने मे सफलता मिलती है ।अतः स्वाभाविक है कि उसकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो जायेगी ।
5 -- इसे धारण करने से मनुष्य को समाज मे मान सम्मान और समस्त ऐश्वर्यों की प्राप्ति हो जाती है।
6 -- तीन मुखी रुद्राक्ष को जो व्यक्ति धारण करता है उसकी आत्मा शुद्ध एवं सशक्त हो जाती है।उसके शरीर मे नवीन ऊर्जा का संचार होने लगता है।
7 -- स्वास्थ्य संरक्षण और संवर्धन की दृष्टि से भी तीन मुखी रुद्राक्ष का बहुत अधिक महत्व है।इसे धारण करने से पीलिया ; चेचक ; उच्च रक्तचाप  ; मधुमेह आदि रोगों से मुक्ति मिल जाती है ।
8 -- तीन मुखी रुद्राक्ष मे अग्नि तत्व की प्रधानता होती है ।इसलिए यह जठराग्नि को उद्दीप्त करने मे महत्वपूर्ण योगदान करता है।अतः इसे धारण करने से अपच ; मन्दाग्नि आदि सभी प्रकार के उदर विकार समूल नष्ट हो जाते हैं।
9 -- इसे धारण करने से मनुष्य के अन्दर तेज एवं बल की अभिवृद्धि होती है।
10 -- यह रुद्राक्ष मनुष्य के मन को पवित्र करके आपराधिक प्रवृत्तियों से मुक्त कर देता है।
11 -- जिन लोगों को जीवन मे असफलताओं का सामना करना पड़ रहा हो और वे निराश हो चुके हों ; उन्हें तीन मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।इसे धारण करने से उन्नति का नया मार्ग बनेगा अथवा पुराने संसाधनों के सहयोग से अपेक्षित सफलता प्राप्त करने लगेगा।
12 -- तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि स्वरूप माना गया है।इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करता है ; उसके शरीर के सभी विकार भस्म हो जाते हैं।उसका शरीर पूर्णतः शुद्ध  ;  निर्मल एवं निष्कलुष हो जाता है।
13 -- तीन मुखी रुद्राक्ष मंगल ग्रह से सम्बन्धित होता है।इसलिए जिनकी कुण्डली मे मंगल कमजोर या अनिष्टकारी हो ; उन्हें तीन मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।इससे मंगल मजबूत एवं शुभ फलदायक बन जाता है।
14 -- तीन मुखी रुद्राक्ष मेष एवं वृश्चिक लग्न वाले जातकों को अवश्य धारण करना चाहिए ।इससे उनका लग्नेश सबल बन कर अपेक्षित शुभ फल प्रदान करने लगेगा।
15 -- जिन लोगों को अपने जन्म लग्न की जानकारी न हो तो ऐसे मेष राशि तथा वृश्चिक राशि वाले लोगों को भी तीन मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।यह उनके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।
16 -- तीन मुखी रुद्राक्ष व्यक्ति को स्वस्थ सुखी और समृद्ध बनाता है।इसलिए सभी लोगों को इसे धारण करना चाहिए ।
17 -- खेलकूद मे सफलता प्राप्त करने के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।
18 -- तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की हर प्रकार की चिन्ता एवं तनाव समाप्त हो जाता है।
19 -- विद्या बुद्धि की वृद्धि के लिए भी तीन मुखी रुद्राक्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है।इसको धारण करने से व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र मे उत्तम सफलता प्राप्त करता है।
20 -- नौकरी मे होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए भी तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना बहुत शुभ फल दायक होता है।
21 -- तीन मुखी रुद्राक्ष मनुष्य को अपवादों से बचाता है।अतः जिनके ऊपर झूठे लाञ्छन लगे हों अथवा जिनके पीछे षड़यंत्र होने की संभावना हो ; उन्हें तीन मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।

धारण करने की विधि  ---
       तीन मुखी रुद्राक्ष को श्रावण मास मे अथवा अन्य महीनो मे सोमवार या प्रदोष तेरस पूर्णिमा आदि तिथियों मे धारण करना चाहिए ।प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान शिव जी की पूजा करें उसके बाद किसी बर्तन मे रुद्राक्ष को गाय के दूध  पंचामृत गंगाजल आदि से स्नान कराओ ।चन्दन अक्षत धूप दीप नैवेद्य आदि अर्पित करो ।उसके बाद " ऊँ क्लीं नमः " इस मंत्र का एक माला जप करके रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए ।

Monday, 27 January 2020

दो मुखी रुद्राक्ष -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

       सामान्य रूप से सभी रुद्राक्ष अत्यन्त पवित्र एवं पाप-नाशक होते हैं परन्तु प्रत्येक रुद्राक्ष की कुछ अपनी निजी विशेषतायें होती हैं ; जो उसे अन्य रुद्राक्षों की अपेक्षा विशिष्ट बनाता है ।दो मुखी रुद्राक्ष भी असंख्य विशेषताओं से युक्त होता है ।इसे भगवान शिव जी एवं माता पार्वती जी का स्वरूप माना जाता है ।इसके दोनो मुख भगवान शिव जी तथा माता पार्वती जी के प्रतीक के रूप मे विख्यात है ।इस रुद्राक्ष मे भगवान शिव जी तथा माता पार्वती जी का सदैव निवास रहता है ।
      दो मुखी रुद्राक्ष बहुत महत्वपूर्ण एवं कल्याणकारी होता है ।महा शिव पुराण मे इसे देवदेवेश्वर कहा गया है।यह सम्पूर्ण कामनाओं तथा फलों को प्रदान करने वाला है ।यह गोहत्या सदृश जघन्य पापों को भी नष्ट करने वाला है  --
      द्विवक्त्रो    देवदेवेशः   सर्वकामफलप्रदः।
      विशेषतः स रुद्राक्षो गोवधं नाशयेद् द्रुतम्।।
दो मुखी रुद्राक्ष के लाभ ----
             वैसे तो दो मुखी रुद्राक्ष असंख्य विशेषताओं से विभूषित है।इसे धारण करने से अनेक प्रकार के लाभ भी होते हैं परन्तु यहाँ पर कुछ विशिष्ट लाभों की ओर संकेत करने का प्रयास किया जा रहा है --
1 -- दो मुखी रुद्राक्ष मे शिव एवं शक्ति दोनो का निवास होता है।इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करता है ; भगवान शिव जी एवं माता पार्वती जी का शुभाशीष स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
2 -- दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो जाती है।यदि उसके ऊपर कर्ज का बोझ होगा तो वह भी समाप्त हो जायेगा।इस रुद्राक्ष की कृपा से व्यक्ति विभिन्न संसाधनों के द्वारा पर्याप्त धनार्जन करता है और उस धन से उधार लिये गये पैसे वापस करके कर्जमुक्त हो जाता है।
3 -- दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।जो व्यक्ति मोटापा से परेशान हों ; उन्हें दो मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।इसी प्रकार फेफड़े से सम्बन्धित बीमारी के लिए यह रुद्राक्ष रामबाण की तरह अमोघ औषधि है ।
4 -- दाम्पत्य जीवन को मधुर एवं सुखमय बनाने मे दो मुखी रुद्राक्ष अहं भूमिका मानी जाती है।इसलिए जो व्यक्ति दो मुखी रुद्राक्ष धारण करता है उसके पति-पत्नी के बीच किसी प्रकार के मतभेद या विवाद की संभावना नही रहती है ।यदि किसी पति-पत्नी के बीच कोई विवाद उत्पन्न हो गया हो तो उस व्यक्ति को दो मुखी रुद्राक्ष अविलम्ब धारण करना चाहिए ।इसे धारण करते ही विवाद समाप्त हो जायेगा और दोनो मे प्रगाढ़ प्रेम उत्पन्न हो जायेगा ।
5 -- दो मुखी रुद्राक्ष केवल पति-पत्नी के बीच ही नहीं ; बल्कि समस्त द्विपक्षीय सम्बन्धों को मधुर बनाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।यह पिता-पुत्र  ; भाई-भाई ; भाई-बहन  ; गुरु -शिष्य  ; बिजनेस-पार्टनर आदि द्विपक्षीय सम्बन्धों को मधुर से मधुरतम बना देता है।
6 -- दो मुखी रुद्राक्ष बहुत सम्मान वर्धक होता है।इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करता है ; उसे समाज मे यश ; कीर्ति ; मान-सम्मान  ; ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति अवश्य होती है ।
7 -- दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने भूत-प्रेत की बाधा समाप्त हो जाती है।
8 -- रूप -सौन्दर्य की वृद्धि के लिए भी दो मुखी रुद्राक्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है ।अतः जो व्यक्ति दो मुखी रुद्राक्ष धारण कर लेता है  ; उसका रूप-सौन्दर्य अपेक्षित मात्रा मे निखर उठता है ।
9 -- दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति की वाक्शक्ति की वृद्धि होती है।इसलिए वक्ताओं ; अध्यापकों ; धर्मोपदेशकों ; नेताओं आदि को दो मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।
10 -- दो मुखी रुद्राक्ष को सर्वकामफलप्रद कहा गया है।अतः जो व्यक्ति इसे धारण कर लेता है ; उसकी समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।उसके जीवन मे किसी प्रकार का अभाव नही रहता है ।वह सभी अभीष्टों को प्राप्त कर लेता है ।
11 -- दो मुखी रुद्राक्ष चन्द्रमा के अधिकार क्षेत्र मे आता है।इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करता है ; उसके मन-मस्तिष्क मे सदैव शान्ति बनी रहती है ।कर्क राशि वालो को दो मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ।
 धारण करने की विधि ---
        दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार  ; प्रदोष  ; त्रयोदशी  ; पूर्णिमा आदि का दिन विशेष उपयुक्त माना जाता है ।श्रावण का महीना बहुत शुभ होता है ।महा शिवरात्रि का पर्व तो इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त मुहूर्त माना जाता है ।
        अतः उपयुक्त मुहूर्त मे प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर किसी कटोरी मे दो मुखी रुद्राक्ष रखकर गोदुग्ध  ; पंचामृत ; गंगा जल ; शुद्ध जल आदि से स्नान कराओ।फिर चन्दन अक्षत धूप दीप नैवेद्य आदि अर्पित करो।उसके बाद ऊँ देवदेवेश्वराय नमः का न्यूनतम एक माला जप करो ।हो सके तो एक माला ऊँ नमः शिवाय का जप करो ।इसके बाद उसे धारण कर लो।

Saturday, 25 January 2020

2020 मे वसन्त पंचमी कब होगी

       सामान्य रूप से प्रति वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पूर्वाह्न काल मे वसन्त पंचमी का पावन पर्व मनाया जाता है ।परन्तु इस वर्ष दो दिन पूर्वाह्न काल मे पंचमी तिथि होने के कारण मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो गयी है ।इस वर्ष दिनांक 29 जनवरी बुधवार को प्रातः 08:27 बजे से पंचमी तिथि लग जायेगी और 30 जनवरी 2020 गुरुवार को प्रातः 10:36 बजे तक विद्यमान रहेगी।इसलिए असमंजस की स्थिति आ गयी कि अब किस दिन वसन्त पंचमी मनायी जाय।
        इस मतभेद का निराकरण करने के लिए " परत्रैव पूर्वाह्न व्याप्तौ परा " इस सिद्धान्त का आश्रय ग्रहण करना चाहिए ।इसके अनुसार जब दोनो दिन पूर्वाह्न काल मे व्याप्त हो तब परा अर्थात् दूसरे दिन की पंचमी को ग्रहण करना चाहिए ।इसलिए इस वर्ष दिनांक 30 जनवरी 2020 दिन गुरुवार को ही वसन्त पंचमी मनायी जायेगी ।उसी दिन गंगा आदि पवित्र नदियों मे स्नान ; सरस्वती पूजन आदि कार्य भी सम्पन्न होंगे।

Thursday, 7 June 2018

कमला मन्दिर बलीपुर टाटा --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

       आशुतोष भगवान शिव जी की असीम अनुकम्पा की वृष्टि करने वाले शिवालयों मे " कमला मन्दिर  " ; बलीपुर टाटा  ; कौशाम्बी  ; उत्तर प्रदेश का विशिष्ट स्थान है।क्षेत्रीय जनता मे इस मन्दिर मे विराजमान शिव लिंग का बहुत अधिक महत्व है ।असंख्य लोगों ने इनकी उपासना करके मनोवांछित फल प्राप्त किया है ।एकादि बार तो लोगों को आश्चर्यजनक लाभ हुआ है ।इनकी करुणामयी कृपा दृष्टि से सम्बन्धित असंख्य कथायें सम्पूर्ण क्षेत्र मे प्रचलित हैं।परन्तु यह मन्दिर घोर देहात मे स्थित होने के कारण अभी तक अपेक्षित प्रसिद्धि नही प्राप्त कर सका है।
           स्थानीय लोगों से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर का अपना कोई नाम नही है बल्कि यह अपने समीपवर्ती एक तालाब के नाम से ही प्रसिद्ध है ।मन्दिर के पश्चिम एक बहुत पुराना तालाब है ; जिसे इस गांव मे निवास करने वाले त्रिपाठी वंश के पूर्वजों ने अपनी बहन   " कमला  देवी " के नाम से खोदवाया और उन्हें समर्पित कर दिया । इस प्रकार यह तालाब कमला देवी की निजी सम्पत्ति बन गया। इसीलिए इस गांव मे रहने वाले त्रिपाठी वंश के किसी भी व्यक्ति ने सिंचाई के लिए भी इस तालाब से एक बूंद पानी नही ग्रहण किया क्योंकि बेटी की सम्पत्ति का उपभोग करना उचित नही है । सम्पूर्ण ग्राम वासियों की दृष्टि मे इस तालाब का आज भी बहुत अधिक महत्व है । इसीलिए सम्पूर्ण ग्रामवासी आज भी विवाह के बाद मण्डप को वसर्जित कर उससे सम्बन्धित कुछ वस्तुयें इसी तालाब मे प्रवाहित करते हैं। इसी कमला तालाब या  केंवला तलाव के पूर्वी तट पर बने हुए इस मन्दिर को  " कमला मन्दिर " या " केंवला वाला मन्दिर  " कहा जाने लगा।आजकल इन्हें कुछ लोग कमलेश्वर शिव मन्दिर भी कहते हैं।
       मन्दिर के उत्तर मे एक विशाल प्राचीन तालाब है ; जिसे  " टाटेश्वर तालाब  " या " टटेसर तलाव " कहा जाता है।स्थानीय किंवदन्तियों से ज्ञात होता है कि बहुत दिनो पूर्व यहाँ पर एक विशाल शिवालय विद्यमान था ; जिसमे अत्यन्त महिमामंडित शिव लिंग विराजमान थे ।उन्हें  " टाटेश्वर  " अर्थात्  " बलीपुर टाटा के ईश्वर "  कहा जाता था।उन्ही के आधार पर आज भी इस तालाब को  " टाटेश्वर तालाब  " या  " टटेसर तलाव " कहा जाता है।परन्तु वह मन्दिर बहुत दिनो पूर्व धराशायी होकर पूर्णतया विलुप्त हो गया है । उन्हीं टाटेश्वर शिव लिंग के आधार पर यह भूखण्ड अत्यन्त पवित्र हो गया था।संभवतः उसी तथ्य को ध्यान रखते हुए ही वर्तमान कमला मन्दिर  को इस स्थान पर बनवाया गया था ।इस प्रकार यह मन्दिर कमला तालाब के पूर्वी तट पर तथा टाटेश्वर तालाब के दक्षिणी तट पर स्थित है ।मन्दिर के उत्तर तथा पूर्व दिशा मे बलीपुर टाटा गांव बसा है।
          इस मन्दिर का निर्माण किस महापुरुष के करकमलों द्वारा कराया गया था  ? इस प्रश्न का प्रामाणिक उत्तर उपलब्ध नही है।परन्तु स्थानीय जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि इसका निर्माण इसी गांव मे निवास करने वाले किसी धर्मप्राण भक्त ने कराया था।परन्तु इस समय उनके वंश मे कोई व्यक्ति नही है।इस सन्दर्भ मे लोगों का अनुमान है कि वे निःसन्तान थे और जब उनका अन्तिम समय आ गया तब उन्होंने अपनी चिरस्मृति मे इस मन्दिर का निर्माण कराया था।
         इस मन्दिर की निर्माण तिथि के विषय मे भी कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नही है।मन्दिर के अन्दर दक्षिणी दीवार पर कुछ लिखा हुआ है किन्तु वह पढ़ने मे नही आ रहा है।अतः केवल बाह्य साक्ष्यों के आधार पर ही इसकी निर्माण तिथि का अनुमान लगाने का प्रयास किया जा रहा है।स्थानीय जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि काफी दिनो पूर्व  इस मन्दिर परिसर मे बाबा बुद्ध भारती दास नामक एक सिद्ध महात्मा निवास करते थे।उनकी तपस्थली आज भी मन्दिर की फर्श से मिली हुई ईशान कोण मे बनी हुई है ।बुद्ध भारती दास जी बहुत अच्छे कवि भी थे।उन्होंने एक स्तोत्र की रचना की थी जिसमे उसकी रचना - तिथि इस प्रकार बताई गयी है ----
          वेद  नेत्र  वसौ  चन्द्र   चाश्विने   सितपक्षके।
          स्तोत्रराजं लिलेखाशु बुद्ध वाणी यती कृतम्।।
       
            यहाँ पर वेद = 4  ;  नेत्र = 2  ; वसौ = 8  तथा चन्द्र = 1  होता है।संस्कृत भाषा मे जब शब्दों द्वारा अंकों की सूचना दी जाती है ; तब इकाई दहाई सैकड़ा  आदि के क्रम मे दी जाती है।अतः उपर्युक्त श्लोक के आधार पर इस स्तोत्र की रचना विक्रम संवत् 1824 के आश्विन मास मे हुई थी।अंग्रेजी तिथि के अनुसार उस समय सन् 1767 ईसवी थी।अतः स्पष्ट है कि उस समय बुद्ध भारती दास जी महाराज यहाँ विद्यमान थे।उनके निवास के आधार पर अनुमान है कि उस समय यह मन्दिर बना रहा होगा तभी तो वे वहाँ रहते थे।अतः स्पष्ट है कि इस मन्दिर का निर्माण सन् 1767 के पूर्व हो चुका था ।
        मन्दिर परिसर मे ही ईशान कोण मे  " खाकी दास जी महाराज  " की धूनी या तपस्थली बनी हुई है ।स्थानीय जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि खाकी दास जी यहाँ पर बुद्ध भारती दास जी से लगभग 50 वर्षों पूर्व निवास कर रहे थे। इस आधार पर खाकी दास जी लगभग 1717 ईसवी के आस-पास  इस स्थान पर विद्यमान थे।यहाँ पर उनके निवास के आधार पर लोगों का अनुमान है कि उस समय यह मन्दिर बना हुआ था क्योंकि बिना मन्दिर के इस स्थान वे निरुद्देश्य नही रहते रहे होंगे।इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस मन्दिर का निर्माण सन् 1717 ईसवी के पूर्व हो चुका था।
        मन्दिर की बनावट भी ऐसी है कि इसे देखते ही यह अनुमान लग जाता है कि इसका निर्माण काफी दिनो पूर्व हुआ था । इसकी दीवार पक्की एवं चौड़ी ईंटों से बनी हुई है।उसके ऊपर पुरानी सीमेंट का प्लस्तर चढ़ा हुआ है । इस दीवार की एक विशेषता यह भी है कि यह बाहर की ओर पहलूदार बनी हुई है ।चारो ओर पांच- पांच पहलू बने हुए हैं।इस प्रकार मन्दिर की बाहरी दीवार कुल बीस पहलू मे विभक्त है। प्रत्येक पहलू के दोनो ओर सुन्दर कलाकृति बनी हुई है।इससे इसकी शोभा और अधिक बढ़ गयी है।
         मन्दिर का द्वार उत्तर दिशा की ओर है।मन्दिर के  अन्दर नौ फुट लम्बे तथा नौ फुट चौडे स्थान के मध्य मे अत्यन्त महिमामंडित शिव लिंग विराजमान हैं। उनका अर्घा उत्तराभिमुख दरवाजे की ओर है।अर्घा के उत्तर नन्दी बाबा की मूर्ति प्रतिष्ठित है। शिव जी के वाम भाग मे माता पार्वती जी एवं बजरंगबली जी प्रतिष्ठित हैं।शिव लिंग के पृष्ठ भाग मे गणेश आदि शिव परिवार की मूर्तियाँ सुशोभित हो रही हैं।शास्त्रीय नियमानुसार शिव जी के दाहिनी ओर बैठकर पूजा करनी चाहिए ।इसीलिए शिव लिंग के दाहिनी ओर कोई मूर्ति नही है।वहाँ पर बैठकर पूजा करने के लिए खाली स्थान सुरक्षित है ।
          जिस प्रकार बाहरी दीवार पहलूदार बनी है उसी प्रकार अन्दर की दीवार भी तत्कालीन वास्तुशैली के अनुसार अनेक डिजाइनों से सुसज्जित है। मन्दिर के अन्दर प्रकाश एवं वायु संचरण हेतु छड़युक्त जंगला लगे हुए हैं। मन्दिर की एक उल्लेखनीय विशेषता यह भी है कि अन्दर ऊपर की ओर लगभग तीस फुट तक बिल्कुल खोखला  है।ऊपर से एक विशाल सँकरा ( लोहे की चेन ) मे विशाल घंटा बँधा हुआ है ।अन्दर की दीवार के ऊपरी भाग मे आकर्षक रंगों द्वारा चित्रकारी बनी हुई है ।स्थानीय लोगों का कहना है कि यह चित्रकारी मन्दिर के निर्माण के समय की है क्योंकि इस समय के वृद्धातिवृद्ध व्यक्तियों का भी यही कहना है कि हमे भी नही पता कि इसके अन्दर के दीवार की ऊपरी सतह की रँगाई-पुताई कब हुई थी ।मन्दिर के सामने एक विशाल मैदान है जो चहारदीवारी से घिरा हुआ है । परिसर मे पीपल के एक नवीन वृक्ष मे बरम बाबा का भी स्थान है जिनकी स्थापना  2015 मे हुई थी।उसी जगह एक सोलर लाइट लगी हुई है जो रात्रि मे मन्दिर को प्रकाशित करती है।उसी के पास एक हैण्ड पम्प भी लगा है जो दर्शनार्थियों को जल प्रदान करता है।
        मन्दिर परिसर के बाहर अनेक पेड़-पौधे एवं दो विशाल तालाब हैं जो इसके सौन्दर्य की अभिवृद्धि करते रहते हैं।यहाँ की प्राकृतिक छटा अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक है ।परन्तु प्रकृति का खेल बहुत विचित्र होता है।कभी-कभी वह ऐसा खेल दिखा जाती है जो मानवीय ज्ञान एवं कल्पना से सर्वथा परे होता है। एक बार इस मन्दिर को भी एक भयानक प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना पड़ा था ।सन् 1987 मे इसके ऊपर आकाशीय बिजली गिर गई  ; जिससे इसका शिखर भाग क्षतिग्रस्त हो गया था फिर भी मन्दिर पूर्णतया सुरक्षित था।बाद मे ग्रामीण भक्तों के सहयोग से उसका जीर्णोद्धार कराया गया था।इस समय प्रत्येक मलमास मे इसकी रँगाई-पुताई होती रहती है जिससे यह नवीन मन्दिर की तरह चमकता रहता है।
         मन्दिर के चारो ओर बारादरी नही है ।सम्भवतः उस समय बारादरी का प्रचलन बहुत कम था क्योंकि इस गाँव के आस-पास जितने भी प्राचीन मन्दिर हैं ; उनमे भी बारादरी नही बनी है।कुछ दिनो पूर्व तक इसके चारो ओर चहारदीवारी आदि भी नही थी। सन् 2015 के मलमास मे ही चहारदीवारी बनाने की योजना बनी और धीरे धीरे भक्तों द्वारा उपलब्ध कराए गए चन्दे की धनराशि से इसके चारो ओर काफी ऊँची चहारदीवारी बन गयी।इससे मन्दिर परिसर पूर्ण सुरक्षित हो गया है ।मन्दिर परिसर मे प्रवेश करने के लिए पूर्व दिशा मे विशाल गेट लगा हुआ है जो अत्यन्त आकर्षक रंग एवं कलाकृतियों से सुसज्जित है।मन्दिर के पश्चिम मे फर्श के समीप ही एक कमरा तथा एक बरामदा भी बन गया है जो मलमास आदि मे होने वाले संकीर्तन के अवसर पर भक्तों के बैठने के काम मे प्रयुक्त होता है।
         इस मन्दिर से सम्बन्धित सर्वाधिक उल्लेखनीय बात यह है कि यहाँ प्रत्येक मलमास मे पूरे एक महीने तक  ऊँ नमः शिवाय  का अखण्ड संकीर्तन होता है।यह पुनीत कार्य सन् 1985 मे प्रारम्भ हुआ था और अब तक अनवरत रूप से प्रत्येक मलमास मे होता रहता है।यहाँ पूरे मलमास भर प्रतिदिन भक्तों द्वारा गोदुग्ध  ; शहद  ; गन्ना के रस आदि विभिन्न पदार्थों से रुद्राभिषेक भी कराया जाता है ।रात्रि के समय बिजली की रंगीन झालरों से सुसज्जित मन्दिर की शोभा सर्वथा दर्शनीय हो जाती है।पूरे मलमास भर वहाँ अनेक भजनानन्दी उपस्थित रहते हैं।उस समय जो व्यक्ति वहाँ पहुँचता है ; वह संगीतमयी संकीर्तन के अमृतरस मे इस प्रकार निमग्न हो जाता है कि उसे ब्रह्मानन्द की अनुभूति होने लगती है।मलमास के अन्त मे विशाल यज्ञ एवं प्रसाद वितरण का आयोजन होता है।
        क्षेत्रीय जनता मे इस मन्दिर की बहुत अधिक महत्ता है।यहाँ प्रतिदिन जल चढ़ाने वालो तथा सायंकाल के समय दीपक जलाने वालों की भीड़ लगी रहती है।विशेषकर मलमास  ; श्रावण ; सोमवार  ;  प्रदोष आदि पर्वों पर भक्तों की भीड़ तथा श्रद्धा भाव देखने योग्य रहता है।कुछ लोग अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए समय समय पर यहाँ पूजा-पाठ करते रहते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त कर आनन्द की अनुभूति करते हैं। अन्त मे अनन्त महिमामय भगवान सदाशिव से सादर अनुरोध है कि वे अपने भक्तों पर इसी प्रकार कृपा वृष्टि करते रहें।
                     ।। ऊँ नमः शिवाय ।।

Friday, 26 January 2018

एकमुखी रुद्राक्ष -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

        आशुतोष भगवान शिव जी की प्रियतम वस्तुओं मे रुद्राक्ष का स्थान सर्वोपरि है ।इन रुद्राक्षों मे भी एकमुखी रुद्राक्ष का स्थान शीर्षस्थ है ।यह अत्यन्त दुर्लभ माना जाता है ।यह केवल भाग्यवान सन्त-महात्माओं एवं धर्मात्मा महापुरुषों को ही सुलभ हो पाता है।आजकल एकमुखी रुद्राक्ष दो प्रकार के मिलते हैं।इनमे से एक तो गोलाकार और दूसरा काजू के आकार का होता है। ये दोनो बहुत महत्वपूर्ण होते हैं परन्तु गोलाकार एकमुखी रुद्राक्ष को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
      सनातन परम्परा मे एकमुखी रुद्राक्ष को बहुत पवित्र और परम कल्याणकारी माना गया है ।शिवपुराण मे इसकी महत्ता का प्रतिपादन करते हुए बताया गया है कि यह रुद्राक्ष साक्षात् शिव जी का स्वरूप है ।वह समस्त सांसारिक भोगों एवं मोक्षरूपी परम फल को प्रदान करने वाला है।उसके दर्शनमात्र से ही ब्रह्महत्या सदृश घोरातिघोर पाप समूल नष्ट हो जाते हैं।इतना ही नहीं बल्कि जहाँ पर वह रुद्राक्ष रहता है और जहाँ पर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है  ; वहाँ से लक्ष्मी जी का पलायन कभी नहीं होता है।लक्ष्मी जी वहीं पर स्थायी रूप से निवास करने लगती हैं।उस स्थान के सभी उपद्रव नष्ट हो जाते हैं और वहाँ पर निवास करने वाले सभी लोगों की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं ---

       एकवक्त्रः शिवः साक्षाद्भुक्तिमुक्तिफलप्रदः।
       तस्य  दर्शनमात्रेण  ब्रह्महत्यां  व्यपोहति ।।
       यत्र सम्पूजितस्तत्र लक्ष्मीर्दूरतरा  न  हि  ।
       नश्यन्त्युपद्रवाः सर्वे सर्वकामा भवन्ति हि।।
    
           इन्हीं अनुपम विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए  ही एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने का परामर्श दिया गया है।जो व्यक्ति इसे धारण करता है ; वह पूर्णतः निष्कलुष हो जाता है।उसका मन ; वाणी और कर्म पूर्णरूपेण पवित्र हो जाता है।उसे सम्पूर्ण सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो जाती है।वह धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है।उसके घर से दुःख-दारिद्र्य सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं।उसे किसी भी प्रकार की दुर्घटना या अकालमृत्यु का भय नहीं रहता है।उसके सभी शत्रु पराजित हो जाते हैं।समाज मे उसे सम्मानजनक पद और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
        एकमुखी रुद्राक्ष का माहात्म्य केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं ; बल्कि औषधीय दृष्टि से भी बहुत अधिक है।इसे धारण करने से मनुष्य सदैव स्वस्थ और निरोग रहता है।उसके शिरदर्द ; उदर विकार ; हृदयाघात सदृश सभी रोग अविलम्ब शान्त हो जाते हैं।
         इस प्रकार स्पष्ट है कि एकमुखी रुद्राक्ष जितना पवित्र ; पापनाशक और पुण्यदायक है ; उससे कहीं अधिक जीवनोपयोगी तथा कल्याणकारी भी है। अतः सभी लोगों को एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने का प्रयास करना चाहिए ।

Monday, 1 January 2018

रुद्राक्ष माहात्म्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         आशुतोष भगवान शिव जी की प्रियतम वस्तुओं मे रुद्राक्ष का स्थान सर्वोपरि है ।इसका प्रमुख कारण यह है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव जी के द्वारा ही हुई है।शिव पुराण के द्वारा ज्ञात होता है कि एक बार भगवान शिव जी ने लोकोपकार की भावना से ओत-प्रोत होकर दीर्घकालीन तपस्या आरम्भ की।वे अपने मन को पूर्ण संयमित रखते हुए सहस्रों दिव्य वर्षों तक तपस्या मे लगे रहे।एक दिन सहसा उनका मन क्षुब्ध हो उठा और उन्होंने लीलावश अपने नेत्र खोल दिया।नेत्र खुलते ही उनके नेत्रपुटों से कुछ अश्रुविन्दु टपक पड़े।उन्हीं अश्रुविन्दुओं से रुद्राक्ष-वृक्ष उत्पन्न हो गये।ये रुद्राक्ष सर्वप्रथम गौड़ देश मे उत्पन्न हुए।बाद मे ये अयोध्या ; मथुरा ; लंका ; मलयाचल ; सह्यगिरि ; काशी आदि स्थानो पर भी उग आये।
        ये रुद्राक्ष अत्यन्त पवित्र और पापनाशक होते हैं।इसलिए इन्हें सभी स्त्रियों और पुरुषों को अवश्य धारण करना चाहिए ।जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करते हैं ; वे सभी पापों से मुक्त होकर पूर्ण निष्कलुष हो जाते हैं।इन्हें धारण करने वाले पापी गण भी पूर्णरूपेण शुद्ध होकर भगवान शिव जी के प्रिय बन जाते हैं।इतना ही नहीं ; बल्कि इनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप निर्मूल हो जाते हैं।जो लोग इन्हें धारण करते हैं ; वे समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग कर अन्त मे मोक्ष को प्राप्त करते हैं।जो लोग रुद्राक्ष धारण करते हैं ; उन्हें यमलोक की यातनाओं का सामना नही करना पड़ता है ।इतना ही नहीं ; बल्कि रुद्राक्षधारी लोगों के पास यमदूत जाते ही नहीं हैं।इसलिए रुद्राक्ष धारण करने वालों को अपमृत्यु या अकालमृत्यु का कोई भय नही रहता है।
        रुद्राक्ष अनेक रंग रूप के होते हैं।ये सभी अत्यन्त पवित्र;  पापनाशक तथा पुण्यदायक होते हैं।इनकी माला से सभी मंत्रों का जप किया जा सकता है ।मणि आदि की माला की अपेक्षा रुद्राक्ष की माला से किया गया जप करोड़ो गुना अधिक फल प्रदान करता है।अतः समस्त कल्याणार्थी मनुष्यो को चाहिए कि वे रुद्राक्ष की माला अवश्य धारण करें।
        

Thursday, 15 December 2016

आर्य संस्कृति -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         " आर्य " संस्कृत भाषा का शब्द है ; जिसका अर्थ है -- श्रेष्ठ या सर्वोत्कृष्ट।इस आधार पर आर्य संस्कृति का अर्थ है -- वह संस्कृति जो अपनी अनगिनत विशेषताओं के कारण विश्व मे सर्वोत्कृष्ट है।हम सभी इस संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।अतः हमे इस संस्कृति की दिव्य विशेषताओं को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए।इसमे जिन मानव-मूल्यों का उल्लेख किया गया है।उनके संरक्षण एवं संवर्धन का भी प्रयास करना चाहिए।हमारे छोटे से प्रयास के कारण इस संस्कृति का विकास तो होगा ही ; हमारा कल्याण भी होगा।