Tuesday, 10 November 2015

हनुमज्जयन्ती

***** शास्त्रीय मान्यता के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी मंगलवार को स्वाती नक्षत्र एवं मेष लग्न मे अञ्जनी ( अञ्जना ) के गर्भ से हनुमान जी के रूप मे स्वयं शिव जी आविर्भूत हुए थे।प्राचीन काल मे सुमेरु पर्वत पर केसरी नामक एक राजा राज्य करते थे।उनके अञ्जना नामक सुन्दर रूपवती पत्नी थीं।एक बार वे शुचिस्नान के पश्चात् सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हुईं।उसी समय उनके आराध्य पवनदेव ने कर्णरन्ध्र मे प्रविष्ट होकर एक महान तेजस्वी एवं महाबलशाली पुत्र होने का आशीष प्रदान किया।समय आने पर उनका आशीर्वाद हनुमान जन्म के रूप मे फलीभूत हुआ।जन्म के कुछ देर बाद हनुमान जी ने अपनी माता से निवेदन किया कि मुझे भूख लगी है।कुछ आहार प्रदान कीजिए।माता जी फल लाने गयीं।उसी समय उदयकालीन लाल रंग का सूर्य दिखाई पड़ा।हनुमान जी उसे फल समझ कर आकाश मे छलांग लगाई और सूर्य को निगल लिया।चारों ओर अंधकार छा गया।तब देवराज इन्द्र ने आक्रोशित होकर हनुमान जी पर वज्र का प्रहार कर दिया।इससे उनकी ठोड़ी ( हनु ) टेढ़ी हो गयी।इसी से उन्हें हनुमान कहा जाता है।
***** वज्र के असह्य प्रहार से हनुमान जी अचेत होकर पृथ्वी पर गिर गये।इससे कुपित होकर पवनदेव ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे वायु का संचरण अवरुद्ध कर दिया।प्राणवायु के अभाव मे सर्वत्र त्राहि - त्राहि मच गयी।तब ब्रह्मा आदि सभी देवों ने पवन देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी को समस्त दिव्यास्त्रों के प्रभाव से मुक्त होकर अमितायु होने का वर प्रदान किया।इसके परिणाम स्वरूप हनुमान जी अजर अमर एवं महाबलशाली हो गये।
***** हनुमान जी के उपासकों को चाहिए कि वे हनुमज्जयन्ती के दिन प्रातः स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर हनुमत्प्रतिमा के समक्ष पूजन करने का संकल्प ले।उसके बाद पद्धति के अनुसार हनुमान जी का षोडशोपचार पूजन करे।पूजन मे सुगंधित तेल मिश्रित सिन्दूर से सम्पूर्ण मूर्ति को रँगना आवश्यक है।उन्हे पुरुष नाम वाले हजारा ; कनेर आदि पुष्प अर्पित करना चाहिए।नैवेद्य मे लड्डू ; केला ; अमरूद आदि समर्पित करे।पूजनोपरान्त इस प्रकार प्रार्थना करें ---

मनोजवं मारुततुल्यवेगं
------  जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
------- श्रीरामदूतं शिरसा नमामि ।।

***** इस प्रकार व्रत एवं पूजन करने से हनुमान जी प्रसन्न होकर अपने भक्त की समस्त कामनायें पूर्ण कर देते हैं।

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