शाकसप्तमी का व्रत भगवान सूर्य नारायण की अनुकम्पा प्राप्त करने हेतु किया जाता है।सूर्यदेव का आविर्भाव सप्तमी को हुआ था।उनका विवाह दक्ष-कन्या रूपा ( संज्ञा ) के साथ हुआ।उससे यम और यमुना नामक दो संतानो का जन्म हुआ।कुछ दिनो बाद रूपा सूर्य के प्रचण्ड तेज को सहन करने मे असमर्थ हो गयी।उसने अपनी छाया से एक स्त्री को उत्पन्न कर अपने स्थान पर नियुक्त कर दिया और स्वयं तप करने के लिए उत्तर कुरु देश चली गयी।सूर्य उस छाया को ही अपनी पत्नी समझते रहे।उससे शनैश्चर एवं तपती नामक दो संताने हुईं।
एक बार यम और छाया मे विवाद हो गया और उसका रहस्य खुल गया।सूर्य दक्ष के पास गये तब उन्होने बताया कि आपके तेज से व्याकुल होकर रूपा उत्तरकुरु देश चली गयी।अब आप विश्वकर्मा जी से अपना रूप प्रशस्त करवा लें।सूर्य ने रूप प्रशस्त करवा कर उत्तरकुरु देश की ओर प्रस्थान किया।वहाँ दोनो का मिलन हुआ।संयोगवश सूर्य का आविर्भाव ; प्रशस्त रूप की प्राप्ति और सन्तान सहित पत्नी का पुनर्मिलन आदि सब कुछ सप्तमी तिथि को हुआ था।इसलिए यह तिथि उन्हें अत्यधिक प्रिय है।
शाकसप्तमी व्रत का आरम्भ कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी से करना चाहिए।यह व्रत त्रिदिवसात्मक है।अतः व्रती पञ्चमी को व्रत का संकल्प लेकर एक बार सात्विक आहार ले।षष्ठी को उपवास करे।सप्तमी को दिन भर उपवास करके भक्ष्य भोज्यपदार्थों सहित विविध प्रकार के शाक सूर्यदेव को अर्पित कर ब्राह्मण को दे।रात्रि मे स्वयं शाक का आहार ग्रहण करे।इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक मास की शुक्ला सप्तमी को व्रत करे।परन्तु प्रत्येक चार मास मे पारणा कर लें।
प्रथम पारणा के दिन पञ्चगव्य से सूर्य को स्नान करायें और स्वयं भी उसका प्राशन करें।उसके बाद सूर्यनारायण को केशर ; अगस्त्य-पुष्प ; अपराजित धूप और खीर अर्पण करके ब्राह्मणों को भी खीर खिलायें।द्वितीय पारणा मे सूर्य को कुशोदक से स्नान करायें और स्वयं गोमय का प्राशन करे।उसके बाद सूर्य को श्वेत चन्दन ; पुष्प ; अगरबत्ती तथा गुड़ के अपूप अर्पण करें।तृतीय पारणा मे सरसों का उबटन लगाकर सूर्य को स्नान करायें।बाद मे लाल चन्दन ; करवीर-पुष्प ; गुग्गुल की धूप एवं नानाविध भोज्यपदार्थों सहित दही-भात अर्पण करें।ब्राह्मणों को भी यही वस्तुयें खिलायें।सूर्य के समक्ष पुराण-श्रवण करें अथवा स्वयं पाठ करें।अन्त मे ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें।
शाकसप्तमी-व्रत भगवान सूर्यनारायण को अत्यधिक प्रिय है।इसे करने वाला व्यक्ति समस्त सुखों को प्राप्त कर लेता है।उसे प्रत्येक कार्य मे सफलता एवं विजय की प्राप्ति होती है।वह समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग कर अन्त मे उत्तम विमान पर चढ़कर सूर्यलोक पहुँचता है।वहाँ दीर्घकाल तक सानन्द रहकर पुनः पृथ्वी पर चक्रवर्ती राजा बनता है।उसे स्त्री-पुत्रादि का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
Wednesday, 18 November 2015
शाकसप्तमी व्रत की कथा एवं विधान
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