------- एक बार देवताओं और असुरों मे भयानक युद्ध हुआ।असुरों के तीक्ष्ण प्रहार से देवगण पराजित होकर भाग गये।वे आत्म - रक्षा एवं विजय का उपाय पूछने के लिए ब्रह्मा जी के पास गये।ब्रह्मा जी शंकर सहित समस्त देवताओं को लेकर भगवान विष्णु के पास गये और उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया।श्रीहरि ने समुद्र - मन्थन द्वारा अमृत प्राप्त करने का परामर्श दिया।परन्तु यह कार्य असुरों के सहयोग के बिना सम्भव नहीं था।अतः इन्द्रादि देवगण असुराधिप राजा बलि के पास गये और समुद्र - मन्थन मे सहयोग करने का प्रस्ताव रखा।राजा बलि ने अमृत - प्राप्ति के लोभवश सहयोग करना स्वीकार कर लिया।
***** देवताओं और असुरों के संयुक्त प्रयास से समुद्र - मन्थन प्रारम्भ हुआ।उसमे से सर्वप्रथम हलाहल विष निकला ; जिसे शिव जी ने पान कर विश्व की रक्षा की।उसके बाद कामधेनु ; ऐरावत ; उच्चैःश्रवा अश्व ; अप्सरायें ; कौस्तुभमणि ; वारुणी ; शंख ; कल्पवृक्ष ; चन्द्रमा ; लक्ष्मी और कदलीवृक्ष प्रकट हुए।समुद्र - मन्थन निरन्तर चलता रहा।कुछ देर बाद एक अलौकिक पुरुष प्रकट हुए जो भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे।वे सर्वाङ्ग - सुन्दर एवं सर्वाभरणविभूषित थे।उनके हाथों मे अमृत से परिपूर्ण कलश विद्यमान था।यही अलौकिक पुरुष आयुर्वेद के प्रवर्तक एवं यज्ञभोक्ता धन्वन्तरि के नाम से प्रसिद्ध हुए।उनका आविर्भाव कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को हुआ था।इसीलिए आज भी उक्त तिथि को धन्वन्तरि - जयन्ती के रूप मे मनाया जाता है।
***** अमृत वितरण के पश्चात् इन्द्र ने धन्वन्तरि जी से देव - वैद्य बनकर अमरावती मे निवास करने का अनुरोध किया।धन्वन्तरि जी ने स्वीकार कर लिया।कालान्तर मे पृथ्वी पर नाना प्रकार की व्याधियों का प्रादुर्भाव हुआ।चारों ओर त्राहि - त्राहि मच गयी।तब इन्द्र ने धन्वन्तरि जी से भूलोक मे अवतरित होकर प्रजा - रक्षण करने का अनुरोध किया।धन्वन्तरि जी काशीनरेश दिवोदास के रूप मे अवतरित हुए।उन्होंने भरद्वाज ऋषि से आयुर्वेद का अध्ययन किया और जनकल्याणार्थ इस शास्त्र का व्यापक प्रचार किया।उनके द्वारा रचित " धन्वन्तरि संहिता " आयुर्वेद का मूल ग्रन्थ है।
***** धन्वन्तरि जी अपने हाथों मे अमृत - पूर्ण कलश लिए प्रकट हुए थे।यह कलश भगवान के हाथों से स्पृष्ट एवं अमृत से परिपूर्ण होने के कारण शुभता एवं पवित्रता का प्रतीक मान लिया गया।इसीलिए इस दिन पात्र ( वर्तन ) क्रय करने की परम्परा प्रचलित हो गयी।प्रायः सभी व्यक्ति इस दिन कोई न कोई वर्तन अवश्य क्रय करते हैं।
**** लक्ष्मी जी एवं धन्वन्तरि जी दोनों का प्राकट्य क्षीरसागर से हुआ था।इसलिए उनमे घनिष्ठ सम्बन्ध है।इसीलिए प्रायः सभी लोग दीपावली को लक्ष्मीपूजन करने के लिए लक्ष्मी जी की मूर्ति धन्वन्तरि जयन्ती ( धनतेरस ) को ही क्रय करते हैं।
***** अतः असुरों द्वारा पीड़ित होने के कारण दुर्बल देवताओं को अमृत पिलाने की इच्छा से ही भगवान धन्वन्तरि जी समुद्र - मन्थन से प्रकट हुए थे।वे हमारी सदा रक्षा करें ----
देवान् कृशानसुरसंघनिपीडिताङ्गान्
------- दृष्ट्वा दयालुरमृतं वितरीतुकामः ।
पाथोधिमन्थनविधौ प्रकटोऽभवद्यो
------- धन्वन्तरिः स भगवानवतात् सदा नः।।
Monday, 9 November 2015
धन्वन्तरि जयन्ती
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