***** कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहा जाता है।इसमे प्रदोषव्यापिनी तिथि ग्राह्य है।यदि दो दिन प्रदोषव्यापिनी हो तो द्वितीय दिन धनतेरस होती है।दोनो दिन न रहने पर भी द्वितीय दिन होती है।इस सायंकाल यमराज की प्रसन्नता के लिए दीपदान करने की परम्परा है।इस सन्दर्भ मे एक कथा प्रचलित है।
***** एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि जब तुम किसी व्यक्ति का प्राण - हरण करने जाते हो तब तुम्हें दया आती है या नहीं ? इस पर एक यमदूत ने निवेदन किया कि हम लोग यह कार्य आपकी आज्ञानुसार करते हैं।इस विषय मे हमे सोच - विचार करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है।परन्तु एक बार ऐसी स्थिति आयी थी ; जब हमे भी दुःख हुआ और दया भाव उमड़ आया था।यमराज ने कहा कि उसका वर्णन कीजिए।तब दूत ने बताया कि प्राचीन काल मे हेम नामक एक राजा था।दीर्घकालीन प्रतीक्षा के बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई।छठवें दिन छठी देवी की पूजा करते समय देवी जी प्रकट हुई और कहा कि जब इसका विवाह होगा तब चार दिन बाद इसकी मृत्यु हो जायेगी।इसे सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ।उसने पुत्र - रक्षा हेतु अनेक उपाय किये।परन्तु भावी तो होकर रहती है।युवावस्था होने पर उसका विवाह हुआ तो चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो गयी।हम लोग जब उसका प्राण - हरण करने गये तो उसकी नवविवाहिता पत्नी तड़प - तड़प कर विलाप कर रही थी।उसके करुण - क्रन्दन को सुनकर हमे घोर दुःख हुआ और हमारा हृदय दया से भर गया था।अतः हे स्वामी ! कोई ऐसा उपाय बतायें ; जिससे व्यक्ति अकालमृत्यु से मुक्त हो जाय।
***** यमराज ने कहा कि प्राणी की मृत्यु तो उसके शुभाशुभ कर्मों के आधार पर होती है।फिर भी जो व्यक्ति कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को सायंकाल मेरा पूजन करके मेरे निमित्त दीपदान करेगा।उसे अकालमृत्यु का भय नहीं होगा।
दीपदान की विधि ---
***** सायंकाल मिट्टी के किसी पात्र मे तिल के तेल का दीपक जलाकर उसकी विधिवत पूजा करे।उसके बाद दक्षिणाभिमुख होकर इस मंत्र से दीपदान करे ----
मृत्युना दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ।।
***** इस प्रकार दीपदान करने से लाभ अवश्य होता है।
Monday, 9 November 2015
धनतेरस को यम - दीपदान
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