Thursday, 19 November 2015

गोपाष्टमी

          अपनी अतुलनीय सज्जनता ; पवित्रता एवं दुग्ध-वैशिष्ट्य के कारण गौयें सदैव पूज्य हैं किन्तु धर्मशास्त्रों मे गोपूजन के लिए जो शुभावसर बतलाये गये हैं ; उनमे कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी विशेष उल्लेखनीय है।इसमे गोपूजन एवं गोपपूजन की प्रधानता होने के कारण इसे गोपाष्टमी कहा जाता है।इस दिन गोपूजन का अत्यधिक महत्व है।अतः गोभक्त को चाहिए कि वह प्रातःकाल स्नानादि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर गौओं को शुद्ध जल से स्नान कराये।फिर गन्ध पुष्प अक्षत धूप दीप आदि से विधिवत पूजन कर निम्नलिखित मंत्र से श्रद्धा-भक्ति सहित गोग्रास अर्पित करे ---

सुरभिस्त्वं जगन्मातर्देवि विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमयी ग्रासं मया दत्तमिमं  ग्रस ।।

          इसके बाद उनकी परिक्रमा करे।इसी समय उनके गोपालकों का भी पूजन करे।इसके बाद गायों को चरने के लिए छोड़ दे।कुछ दूर तक उनका अनुसरण कर वापस लौट आये।शाम के समय जब गौयें वापस लौटें तब पुनः उनका पूजन करे।अन्त मे प्रणाम करके उनकी चरणरज को अपने मस्तक पर धारण कर ले।इस प्रकार गोपूजन करने से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।उसके सुख-सौभाग्य की निरन्तर वृद्धि होती रहती है।उसे जीवन के सभी सुखों का उपभोग करने का आनन्द प्राप्त होता है।

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