***** प्रदोष व्रत भगवान शिव जी का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए किया जाता है।यह व्रत प्रत्येक मास के दोनो पक्षों मे होता है।शब्द - व्युत्पत्ति की दृष्टि से " दोषा रात्रिः ; प्रारम्भो दोषायाः " --- अर्थात् रात्रि के प्रारम्भ को प्रदोष कहा जाता है।सूर्यास्त के बाद का दो घटी अर्थात् 48 मिनट का समय प्रदोषकाल कहलाता है।जिस दिन प्रदोषकाल मे त्रयोदशी तिथि विद्यमान रहती है ; उसी दिन प्रदोष का व्रत होता है।शिव - पूजन एवं नक्तभोजन ( रात्रि भोजन ) के कारण ही इसे प्रदोष कहा जाता है।
***** व्रत करने वाले को चाहिए कि प्रातः स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शिवपूजन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।दिन भर उपवास करे।सूर्यास्त के समय पुनः स्नान करके शिवालय मे उत्तराभिमुख होकर शिवार्चन करे।यदि पूजनमंत्रों का ज्ञान न हो तो केवल " ऊँ नमः शिवाय " इस महामंत्र से पूजन करे।यदि शिवालय की सुविधा न हो तो किसी पवित्र स्थान पर मिट्टी का शिवलिंगादि बनाकर पूजन करे।पूजनोपरान्त शिव जी की प्रार्थना करे ---
भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते ।
रुद्राय नीलकण्ठाय शर्वाय शशिमौलिने।।
उग्रायोग्राघनाशाय भीमाय भयहारिणे ।
ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नमः ।।
***** शास्त्रीय मान्यता के अनुसार प्रदोषकाल मे भगवान शिव जी कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा मे नृत्य करते रहते हैं।इस समय जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा - भक्ति के साथ पूजन - अर्चन करता है ; शिव जी उसकी समस्त कामनायें पूर्ण कर देते हैं।इस व्रत की महिमा अनन्त ; असीम एवं अनिवर्चनीय है।इस व्रत को करने से मनुष्य हर प्रकार के रोग ; शोक ; अभाव ; पाप ; ताप ; भय आदि से मुक्त हो जाता है।उसे धन - धान्य ; स्त्री - पुत्र ; सुख - सम्पत्ति ; मान - सम्मान ; ज्ञान - बुद्धि आदि सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
दिवसानुसार फल ---
***** शास्त्रों मे विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए भिन्न - भिन्न दिनो से प्रदोष व्रत प्रारम्भ करने का विधान है ---
रविवार --- दीर्घायु और आरोग्य की कामना हो तो रविवार को पड़ने वाले प्रदोष से व्रतारम्भ करना चाहिए।
सोमवार --- अभीष्टसिद्धि एवं पुत्रप्राप्ति के लिए सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष से व्रतारम्भ करें।
मंगलवार --- ऋणमुक्ति के लिए भौमवासरीय प्रदोष से व्रतारम्भ करना चाहिए।
शुक्रवार --- सुख - सौभाग्य की वृद्धि एवं स्त्री - सुख की प्राप्ति के लिए शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष से व्रतारम्भ करें।
शनिवार --- पुत्रप्राप्ति के लिए शनिवासरीय प्रदोष से व्रतारम्भ करें।
शुभमस्तु।
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