यह तो सर्वविदित है कि तुलसीदेवी वृन्दा के नाम से शंखचूड नामक असुरराज की पत्नी थीं।इनके सतीत्व को भगवान विष्णु ने खण्डित किया था।फिर परस्पर शापग्रस्त हुए।इस अवसर पर वृन्दा तुलसी के वृक्ष रूप मे परिणत हुई थीं।उन्हें वृक्ष होने का शाप पूर्व जन्म मे गणेश जी ने दिया था।
यह घटना ब्रह्मकल्प की है।एक बार धर्मात्मज की नवयौवना पुत्री तुलसी तीर्थाटन करते हुए पतितपावनी गंगा के तट पर पहुँची।वहाँ विघ्नविनायक भगवान गणेश जी तप कर रहे थे।उनके अनुपम स्वरूप को देखकर तुलसी आकृष्ट हो गयी।उसने गणेश जी से कहा कि मै मनोऽनुकूल वर की प्राप्ति हेतु तीर्थाटन एवं तप कर रही हूँ।आप मेरे लिए सर्वथा अनुकूल हैं।अतः मुझे पत्नी रूप मे स्वीकार कर लीजिए।गणेश जी ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।तुलसी ने कई बार निवेदन किया किन्तु हर बार उसे इनकार ही मिला।अन्त मे क्रुद्ध होकर उसने गणेश जी को शाप दे दिया।
यद्यपि गणेश जी बहुत शान्तिप्रिय एवं प्रसन्नचित्त हैं किन्तु तुलसी द्वारा अभिशप्त होने पर उन्हें भी क्रोध आ गया।उन्होने तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हे असुर पति प्राप्त होगा।उसके बाद महापुरुषों के शाप से तुम वृक्ष हो जाओगी।इतना सुनते ही तुलसी भयभीत होकर भगवान गणेश जी की स्तुति करने लगी।भक्तवत्सल गणेश जी प्रसन्न हो गये और उससे कहा कि घबराओ नहीं।तुम श्रीहरि को अत्यन्त प्रिय हो जाओगी।उनके पूजन मे तुम्हारी ही प्रधानता रहेगी।तुम्हारे बिना उनकी पूजा पूर्ण नहीं होगी।परन्तु मेरे लिए तुम सदैव त्याज्य रहोगी।
Friday, 27 November 2015
तुलसी क्यों वृक्ष बनी
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