Wednesday, 25 November 2015

कार्तिक - पूर्णिमा

         सनातन धर्मग्रन्थों मे कार्तिक पूर्णिमा का बहुत महत्व वर्णित है।यदि इस दिन कृत्तिका नक्षत्र हो तो वह महाकार्तिकी पूर्णिमा कहलाती है।भरणी नक्षत्र होने पर महापुण्या बन जाती है।रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।यदि इस दिन चन्द्रमा और बृहस्पति दोनो ग्रह कृत्तिका नक्षत्र पर हों तो वह महापूर्णिमा कहलाती है।इसी प्रकार कृत्तिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा नक्षत्र पर सूर्य हो तो पद्मक योग बनता है।

कथा ---

         प्राचीन काल मे तारकासुर नामक महाबलशाली असुर था।उसके तीन पुत्र थे -- तारकाक्ष ; विद्युन्माली और कमलाक्ष।जब स्वामि कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया तो ये तीनो बहुत क्रुद्ध हुए।इन्होने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और उनके वरदान स्वरूप मयदानव द्वारा निर्मित तीन पुर ( नगर ) प्राप्त कर लिया।बाद मे इन असुरों ने देव दानव मानव सबको अपने अधीन कर लिया।फलतः देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव जी ने कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को एक ही बाण से तीनों असुरों सहित इनके पुरों को भस्म कर दिया।
       एक अन्य कथा के अनुसार गोलोक मे एक गोपी श्रीकृष्ण की प्रिय सखी थी।एक बार वह श्रीकृष्ण के साथ विहार कर रही थी; तभी रास की अधिष्ठात्री राधा रानी ने देख लिया।उन्होंने क्रुद्ध होकर उसे मानव योनि मे जन्म लेने का शाप दे दिया। वही गोपी तुलसी नाम से राजा धर्मध्वज की पत्नी माधवी की पुत्री के रूप मे कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शुक्रवार को उत्पन्न हुई।यही तुलसी चन्द्रचूड की पत्नी बनी ; जिसका शील - हरण भगवान विष्णु ने किया ।बाद मे उसे अपनी भार्या के रूप मे स्वीकार किया था।

विधि एवं माहात्म्य ----

        व्रत करने वाले को चाहिए कि वह कार्तिक पूर्णिमा को प्रातः स्नानादि करके स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।फिर भगवान विष्णु का विधिवत् पूजन करे।इस दिन हाथी घोड़ा रथ घृत धेनु केला खजूर नारियल अनार संतरा कूष्माण्ड आदि दान करे तो बहुत पुण्य होता है।विशेषकर मित्र विपत्तिग्रस्त दरिद्र निर्धन आदि को दान देने से पुण्यस्वरूप बहुत अधिक सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।इस दिन अन्न जल वस्त्र आभूषण सुवर्णपात्र छत्र आदि का दान करने से इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है।
        सन्ध्या के समय त्रिपुरोत्सव पूर्वक दीपदान करने से पुर्जन्म से मुक्ति मिल जाती है।चन्द्रोदय के समय स्वामिकार्तिकेय की छहों माताओं अर्थात् शिवा ; सम्भूति ; प्रीति ; संतति ; अनसूया क्षमा सहित कार्तिकेय का पूजन करे।साथ ही शिवा वरुण अग्नि आदि का भी पूजन करना चाहिए।इससे वीर्य शौर्य पराक्रम धैर्य आदि की वृद्धि होती है।इस दिन भगवान श्रीहरि के महामंत्र -- " ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय " का जप करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है।इस दिन गंगा आदि पवित्र नदियों मे स्नान करने का बहुत अधिक महत्व है।तीर्थराज प्रयाग मे संगम स्नान करने से मुक्ति की प्राप्ति होती है।

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