सनातन परम्परा मे भीष्मपञ्चक - व्रत की असीम महत्ता है।यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा पर्यन्त किया जाता है।इसका उपदेश सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने महर्षि भृगु जी को किया था।बाद मे शिष्य-परम्परा से सम्पूर्ण भूलोक मे प्रचलित हो गया।द्वापरयुग के अन्त मे शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने इस पञ्चदिवसात्मक व्रत का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया था।इसीलिए इसको भीष्मपञ्चक व्रत कहा जाता है।भविष्यपुराण मे इस व्रत की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हुए श्रीकृष्ण ने कहा है कि जिस प्रकार तेजस्वियों मे अग्नि ; शीघ्रगामियों मे पवन ; पूज्यों मे ब्राह्मण ; दानों मे सुवर्णदान ; लोकों मे भूर्लोक ; तीर्थों मे गंगा ; यज्ञों मे अश्वमेध यज्ञ ; शास्त्रों मे वेद और देवताओं मे अच्युत का स्थान है ; उसी प्रकार व्रतों मे भीष्मपञ्चक का महत्व है।
विधि ---
व्रत करने वाले को चाहिए कि वह कार्तिक शुक्ला एकादशी को स्नानादि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।अपने समक्ष वेदी पर सुवर्ण अथवा रजत की भगवान लक्ष्मीनारायण की सुन्दर मूर्ति स्थापित करे।दुग्ध दधि घृत मधु शर्करा एवं चन्दन-मिश्रित जल से स्नान कराकर गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से शोडशोपचार पूजन करे।इसके बाद पाँच दिनों तक व्रत करे।व्रत मे अपनी सामर्थ्य के अनुसार निराहार ; फलाहार ;एकभुक्त ( एक बार भोजन ) ; नक्तव्रत आदि मे से कोई भी करना चाहिए।इसके अतिरिक्त एकादशी को गोमय ; द्वादशी को गोमूत्र ; त्रयोदशी को दुग्ध और चतुर्दशी को दधि का प्राशन करना चाहिए।
पाँच दिनों तक प्रतिदिन भगवान विष्णु जी का पूजन करना चाहिए।सामान्य पूजन-सामग्री के अतिरिक्त प्रथम दिन विष्णु जी के चरणार्विन्दों की पूजा कमल-पुष्पों से ; दूसरे दिन घुटनों की बिल्वपत्र से ; तृतीय दिन नाभिस्थल की केवड़ा-पुष्प से ; चतुर्थ दिन स्कन्ध प्रदेश की बिल्व एवं जपापुष्पों से और पञ्चम दिन शिरोभाग की मालती - पुष्पों से करनी चाहिए।साथ ही प्रतिदिन " ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय " इस महामंत्र का अधिकाधिक जप करना चाहिए।पाँचवें दिन पूजनोपरान्त ब्राह्मण-भोजन कराने के बाद रात्रि मे पञ्चगव्य का प्राशन करके अन्न ग्रहण करे।
माहात्म्य ---
भीष्मपञ्चक व्रत का बहुत अधिक महत्व है।यह परम पवित्र एवं प्रबल पापनाशक व्रत है।इससे ब्रह्महत्या ; गोहत्या सदृश घोर पापों से भी मुक्ति मिल जाती है।इस व्रत को करने वाले की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग करके अन्त मे परम सद्गति को प्राप्त करता है।
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