***** देवाधिदेव महादेव भगवान शिव जी का ज्योतिर्लिंग रूप मे प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को हुआ था।इसीलिए उस तिथि को महाशिव रात्रि के रूप मे मनाया जाता है।उसी तिथि की महत्ता प्रदर्शित करने के लिए प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मास - शिवरात्रि के रूप मे मनाया जाता है।चतुर्दशी तिथि के स्वामी भी भगवान शिव ही हैं।उनकी रात्रि - व्यापिनी तिथि को व्रत करने के कारण इसे मास - शिवरात्रि कहा जाता है।
***** व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर विधिवत शिव - पूजन कर व्रत का संकल्प ले।दिन भर उपवास करे।सायंकाल पुनः स्नान करके भगवान शिव जी का पूजन पद्धति के अनुसार करे।यदि मंत्रों का ज्ञान न हो तो सम्पूर्ण पूजनकार्य केवल " ऊँ नमः शिवाय " इस महामंत्र से ही करें।पूजनोपरान्त शिव जी की प्रार्थना इस प्रकार करें ----
संसारक्लेशदग्धस्य व्रतानेन शंकर ।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ।।
***** इस प्रकार पूजन करने के पश्चात् रात्रि भर भगवन्नाम - संकीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करे।हो सके तो भगवत्महिमा - प्रकाशक सुन्दर गीतों का गायन किया जाय।शास्त्रों मे मास - शिवरात्रि व्रत की अप्रतिम महत्ता बतलाई गयी है।इस व्रत को करने से भगवान शिव जी प्रसन्न होकर अपने भक्त की समस्त कामनायें पूर्ण कर देते हैं।शिवभक्त जीवन - पर्यन्त सुख - शान्ति के साथ समृद्धिपूर्ण जीवन व्यतीत कर अन्त मे शिवलोक को प्राप्त करता है।
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