***** गोवर्धन-पूजा का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है।इसे अन्नकूट भी कहा जाता है।इसका आरम्भ भगवान श्रीकृष्ण की बाल - लीलाओं से माना जाता है।यहाँ गोवर्धन-पूजा के दो अर्थ हैं।प्रथम अर्थ के अनुसार " गो " का अर्थ है गऊ और वर्धन का अर्थ है वृद्धि --- अर्थात् ऐसी पूजा ; जिससे गौओं की वृद्धि या उन्नति होती है।दूसरे अर्थ के अनुसार गोवर्धन नामक पर्वत की पूजा गोवर्धन-पूजा कहलाती है।इसीलिए इस दिन गौओं की पूजा के साथ-साथ मकान के द्वार पर गौ के गोबर से बनाई गयी गोवर्धन-पर्वत की आकृति का भी पूजन किया जाता है।
***** एक बार नन्द बाबा सहित सभी व्रजवासी इन्द्र-यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे।तभी श्रीकृष्ण ने पूछा कि आप लोग किस देवता के पूजन की व्यवस्था कर रहे हैं।नन्द बाबा ने बताया कि देवराज इन्द्र जी वर्षा एवं मेघों के स्वामी हैं।वे ही जलवृष्टि के द्वारा समस्त प्राणियों को जीवन-दान देते हैं।अतः हम लोग प्रतिवर्ष उन्हीं के निमित्त यज्ञ करते हैं।इसे सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि प्राणी तो अपने कर्मानुसार ही जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता है।तब इन्द्र-पूजन की क्या आवश्यकता है।आगे उन्होंने समझाया कि जिसके द्वारा जीविकोपार्जन हो ; वही इष्टदेव होता है।यहाँ हम लोगों के लिए तो गौ ; ब्राह्मण और गिरिराज गोवर्धन ही सब कुछ हैं।अतः हमे इन्हीं का पूजन करना चाहिए।इस बात को सभी लोगों ने स्वीकार कर लिया और इन्द्र-यज्ञ के लिए संकलित सामग्री के द्वारा ही गौ; ब्राह्मण एवं गिरिराज गोवर्धन की विधिवत पूजा की गयी।
***** देवराज इन्द्र को जब यह सूचना मिली तो वे बहुत क्रुद्ध हुए।उन्होंने अपने मेघों को वर्षा के द्वारा सम्पूर्ण व्रज को नष्ट देने का आदेश दिया।मेघों ने मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दिया।सम्पूर्ण व्रज डूबने की स्थिति मे आ गया।चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गयी।तब श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से अभिमानी इन्द्र का मान-मर्दन करने की योजना बनाई।वे सभी व्रजवासियों को लेकर गोवर्धन के समीप गये।श्रीकृष्ण ने एक ही हाथ से गोवर्धन को उठा कर छत्र की तरह तान दिया।गौओं सहित सभी लोग उसी छत्र के नीचे आ गये।लगातार सात दिनों तक प्रलयंकारी वर्षा होती रही किन्तु व्रज की कोई क्षति नहीं हुई।अन्त मे इन्द्र ने हार मानकर वर्षा बन्द कर दी।सभी लोग सुरक्षित बाहर आ गये।श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को यथावत रख दिया।चारों ओर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी।नन्दबाबा ; यशोदा आदि सभी ने प्रेमातुर होकर श्रीकृष्ण को हृदय से लगा लिया और शुभाशीष प्रदान किया।आकाश से देवताओं ने भी पुष्प-वर्षा कर श्रीकृष्ण का स्वागत किया।इसी समय से गोपूजन एवं गोवर्धन-पूजन की परम्परा आरम्भ हो गयी।
Thursday, 12 November 2015
गोवर्धन - पूजा
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