संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुख - समृद्धिपूर्ण जीवन व्यतीत कर अन्त मे वैकुण्ठ - प्राप्ति की कामना करता है।हमारे प्राचीन ऋषियों महर्षियों ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्रीवैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का विधान किया है।यह व्रत वैकुण्ठ - प्राप्ति के उद्देश्य से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।इसलिए इसे वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत कहा जाता है।
व्रती को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।दिन भर उपवास करने के बाद रात्रि मे भगवान महाविष्णु का आवाहन करे।गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से षोडशोपचार अथवा यथालब्धोपचार पूजन करे।अन्त मे भगवान से वैकुण्ठ प्राप्ति की प्रार्थना करे।दूसरे दिन पुनः विष्णु करके ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करे।
धर्मशास्त्रों मे इस व्रत की असीम महत्ता का वर्णन हुआ है।जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है ; उसकी समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।भगवान विष्णु की अनुकम्पा से वह स्त्री पुत्र धन धान्य सुख समृद्धि से युक्त जीवन यापन कर अन्त मे वैकुण्ठगामी होता है।वैकुण्ठ मे उसे सम्मान जनक पद एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।अतः वैकुण्ठवास की आकाँक्षा वाले भक्तों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
Tuesday, 24 November 2015
श्रीवैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत
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