Thursday, 26 November 2015

धन्यव्रत

         हमारे देश के प्राचीन ऋषियों -मनीषियों ने मानव - जीवन के सर्वाङ्गीण विकास के लिए बहुत गम्भीरता पूर्वक विचार किया है।इसी क्रम मे धन्यव्रत की गणना की जाती है।इस व्रत का आरम्भ मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से किया जाता है।इसे एक वर्ष पर्यन्त प्रत्येक मास की उसी पक्ष की प्रतिपदा को किया जाता है ; जिस पक्ष से आरम्भ किया गया हो।

विधि ---

       व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।इसमे नक्त व्रत किया जाता है अर्थात् रात्रि मे एक बार शुद्ध - सात्विक आहार ग्रहण करे।इस व्रत मे रात्रि के समय भगवान विष्णु के पूजन का विधान है।उनके प्रत्येक अङ्ग की पृथक् - पृथक् पूजा की जाती है।यथा - वैश्वानराय पादौ पूजयामि ; अग्नये उदरम् पूजयामि ; हविर्भुजे उरः पूजयामि ; द्रविणोदाय भुजे पूजयामि ; संवर्ताय शिरः पूजयामि तथा ज्वलनायेति सर्वाङ्गम् पूजयामि।इन्हीं अङ्गनाम - मंत्रों के द्वारा गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से विधिवत् पूजन करे।
         इसी विधि से प्रत्येक मास की प्रतिपदा को व्रत एवं पूजन करना चाहिए।वर्ष के अन्त वाली प्रतिपदा को अग्निदेव की सुवर्णमयी मूर्ति बनवाये।फिर विधिवत् स्नानादि कराकर उसे लाल वस्त्र धारण कराये।उसके बाद लाल रंग के गन्ध पुष्प आदि विविध द्रव्यों से विधिवत् पूजन किया जाय।साथ ही वर्ष-पर्यन्त प्रतिदिन पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ भगवान विष्णु का सामान्य पूजन करता रहे।

माहात्म्य ---

       हमारे धर्मशास्त्रों मे इस व्रत की पर्याप्त महत्ता वर्णित है।यदि कोई व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ करे तो निर्धन भी धनवान हो जाता है।अतः सुख - सम्पत्ति की आकाँक्षा रखने वाले व्यक्तियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
       

No comments:

Post a Comment