Wednesday, 18 November 2015

शाकसप्तमी

         सनातन परम्परा मे दान की असीम महत्ता है।हमारे धर्मग्रन्थों मे जीवनोपयोगी अनेक वस्तुओं के दान का उल्लेख हुआ है।उनमें मिट्टी से लेकर सोने तक के दान के उपयुक्त अवसर ; विधि एवं उसके माहात्म्य का वर्णन किया गया है।जैसे मेष-संक्रान्ति के दिन सत्तू-दान ; वैशाखी पूर्णिमा को जलपूर्ण कलश का दान ; मकर-संक्रान्ति पर खिचड़ी-दान आदि का महत्त्व बताया गया है।इसी क्रम मे शाक-दान का भी उल्लेख हुआ है।इसके लिए कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी की तिथि निर्धारित की गयी है।इस दिन शाक-दान का विधान होने से इसे शाक-सप्तमी कहा जाता है।
          दानकर्ता को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर विविध प्रकार के शाक-पत्रों का दान करे।फिर दिन भर उपवास करके रात्रि मे केवल शाक का ही आहार ले।यदि एक वर्ष तक प्रत्येक मास की शुक्ल पक्षीय सप्तमी को इसी प्रकार शाक-दान करता रहे तो उसके सम्पूर्ण रोगों का विनाश हो जाता है।वह पूर्ण निरोग जीवन व्यतीत करने मे सक्षम हो जाता है।

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