Friday, 13 November 2015

यम - द्वितीया ( भैया दूज )

***** यम-द्वितीया का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है।इसमे यमराज-पूजन की प्रधानता होने के कारण इसे यम-द्वितीया कहा जाता है।लोकव्यवहार मे बहन के घर भाई के भोजन करने के कारण इसे भ्रातृद्वितीया या भैयादूज कहा जाता है।सनातन परम्परा मे इस पर्व का बहुत अधिक महत्व है।इसे भाई बहन के पवित्रतम प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
***** यमराज और यमुना जी दोनो सूर्य नारायण की सन्तान होने के कारण भाई बहन हैं।इन दोनो मे अतिशय प्रीति थी।यमुना प्रायः यमराज के यहाँ जाती थीं और उन्हें अपने यहाँ आने के लिए आमंत्रित करती थीं।यमराज जी हाँ तो कर देते थे परन्तु व्यस्तता के जा नहीं पाते थे।एक दिन अचानक वे यमुना के यहाँ पहुँच गये।उन्हें देखकर यमुना को असीम प्रसन्नता हुई।उन्होने अपने भाई का विधिवत सत्कार किया और अपने हाथों से बनाया गया भोजन कराया।यमराज ने यमुना को उपहारस्वरूप अनेक वस्त्राभूषण प्रदान किया।बाद मे उन्होने कहा कि बहन ! मै तुम पर अत्यधिक प्रसन्न हूँ।अतः कोई वर माग लो।यमुना ने कहा यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो प्रतिवर्ष इस दिन मेरे घर आकर भोजन किया करें।साथ ही मृत्युलोक मे जो भाई अपनी बहन के यहाँ भोजन करे ; उसे सद्गति की प्राप्ति हो।यमराज ने एवमस्तु कह दिया।संयोगवश उस दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया थी।अतःयह तिथि यम-द्वितीया के नाम से विख्यात हो गयी।

यम-पूजन -----
          यमद्वितीया को यमराज के पूजन का विशेष महत्व है।अतः व्रती को चाहिए कि प्रातः स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर यमपूजन का संकल्प ले।उसके बाद गणेश ; यमराज ; यमदूतों ; चित्रगुप्त एवं यमुना का विधिवत पूजन करे।पूजनोपरान्त स्वकल्याण हेतु प्रार्थना  करे।जो व्यक्ति ऐसा करता है ; उसे यमलोक की यातना नहीं सहनी पड़ती है।

भ्रातृ-पूजन ----
       यमद्वितीया या भैयादूज का पर्व भाई बहन के अक्षय स्नेह का प्रतीक है।इस दिन प्रत्येक बहन अपने भाई का स्वागत करने के लिए लालायित रहती है।यह पर्व प्रेम एवं सद्भावनाओं पर आधारित है।बहन को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि करके यमपूजन ; सौभाग्य-वर्धन एवं भाई के दीर्घायु की कामना से व्रत का संकल्प ले।सर्वप्रथम यमराज और यमुना जी का पूजन करे।उसके बाद स्वगृह आये हुए भाई के मस्तक पर रोली का तिलक लगाकर सत्कार करे और अपने हाथ से बनाया गया सुरुचिपूर्ण भोजन कराये।बाद मे अपने भाई को दीर्घायु बनाने के लिए यमराज से प्रार्थना करे।इसके बदले मे भाई वस्त्राभूषण आदि देकर बहन को सन्तुष्ट एवं प्रसन्न करे।इससे धन ; यश ; दीर्घायु ; बल ; पुष्टि एवं अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है।यदि सगी बहन न हो तो चचेरी मौसेरी आदि बहनो के यहाँ ही भोजन करे।यदि इस दिन यमुना के किनारे भाई अपनी बहन के हाथ का बना भोजन करे तो विशेष लाभ एवं शुभ होता है।

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