Sunday, 22 November 2015

प्रबोधिनी एकादशी

          सर्वेश्वर भगवान श्रीविष्णु से सम्बन्धित पर्वों मे हरिशयिनी एवं प्रबोधिनी एकादशी का सर्वाधिक महत्व है।हरिशयिनी आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को होती है।इस दिन भगवान श्रीविष्णु जी क्षीरसागर मे शेषशय्या पर चार मास के लिए शयन करने लगते हैं।इस दिन से विवाहादि सभी मांगलिक कार्य बन्द हो जाते हैं।दैवीशक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं।भगवान भास्कर अपनी निम्नराशि तुला की ओर अग्रसर हो जाते हैं।प्राणियों मे नानाविध व्याधियों का प्रकोप बढ़ जाता है।इसलिए समस्त प्राणियों के पापों का शमन कर पुण्यराशि की वृद्धि हेतु उन्हें धर्म-कर्म मे प्रवृत्त करने के लिए भगवान विष्णु जी कार्तिक शुक्ला एकादशी को निद्रा का परित्याग कर सुसुप्त सृष्टि मे पुनः  प्राणसंचार करने के लिए प्रबुद्ध होते हैं।साथ ही प्राणजगत को भी प्रबुद्ध करते हैं।इसलिए इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।भगवान विष्णुदेव के सोकर उठने के कारण इसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं।

विधि ---

        व्रत करने वाले को चाहिए कि वह एकादशी के दिन स्नानादि कर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत एवं विष्णुपूजन का संकल्प ले।रात्रि के समय आंगन अथवा किसी देवालय आदि शुद्ध स्थान पर सुन्दर सुसज्जित सिंहासन पर भगवान विष्णु की क्षीरसागर मे शयन करती हुई प्रतिमा की स्थापना करे।उसके बाद उन्हें जगाने के लिए निम्नलिखित मंत्र पढ़े --

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते ।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम् ।।
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव ।
गता मेधा वियच्चैव निर्मलं निर्मला दिशः ।।
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव ।

          इस प्रकार जागृत करने के बाद प्रभुवर का गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से शोडशोपचार पूजन करे।फिर इस मंत्र से उन्हें पुष्पाञ्जलि अर्पित करे --

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्
        तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त
        यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ।।

      इसके पश्चात् पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ निम्नलिखित मंत्र से भगवान की प्रार्थना करे --

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता ।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना ।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो ।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन ।।

        इस समय " ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय " इस महामंत्र का अधिकाधिक जप करना चाहिए।इसके बाद एक सुसज्जित रथ अथवा चौकी पर भगवान को बैठाकर शंख मृदंग आदि वाद्यों एवं जयघोष के साथ ग्राम या नगर की गलियों मे भ्रमण कराना चाहिए।सम्पूर्ण बस्ती को दीपादि से देदीप्यमान कर नृत्य-गीत-वाद्यादि से मंगलोत्सव करना चाहिए।सम्पूर्ण रात्रि जागरण करे।दूसरे दिन पुनः भगवान का पूजन कर ब्राह्मण-भोजन के बाद स्वयं भी व्रत की पारणा करे।

माहात्म्य ---

         प्रबोधिनी एकादशी व्रत का असीम महत्व है।जो व्यक्ति व्रत करते हुए विष्णुपूजन मे सक्रिय भाग लेता है ; उसकी समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह जीवन भर समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग कर अन्त मे विष्णु-लोक को प्राप्त करता है।

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