Friday, 20 November 2015

अक्षय नवमी

          शास्त्रीय मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी जो धर्म-कर्म ; पूजा-पाठ ; दान आदि किया जाता है ; उससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।इसीलिए इस तिथि को  "अक्षय नवमी " कहा जाता है।इस दिन धात्री अर्थात् आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।इसलिए इसको " धात्रीनवमी " भी कहा जाता है।इसका एक नाम " कूष्माण्डनवमी " भी है।कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आँवले के वृक्ष मे निवास करते हैं।इसलिए अक्षयनवमी को विष्णुपूजन का विधान है।

कथा ---
          अक्षयनवमी के विषय मे अनेक कथायें प्रचलित हैं।एक बार भगवान श्रीहरि से पूछा गया कि हे प्रभुवर !  इस कलिकाल मे मनुष्य किस विधि से पापमुक्त हो सकता है।इसके उत्तर मे उन्होने बताया कि जो व्यक्ति अक्षयनवमी के दिन एकाग्रचित्त होकर मेरा ध्यान करेगा ; उसके समस्त पाप समूल नष्ट हो जायेंगे।
        एक अन्य आख्यान के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी तीर्थाटन के उद्देश्य से पृथ्वी का भ्रमण कर रही थीं।अचानक उनके मन मे भगवान विष्णु एवं शिव जी की पूजा करने की इच्छा हुई।अब समस्या यह थी कि इन दोनो देवताओं के एक साथ पूजन हेतु किस वस्तु को प्रतीकरूप ग्रहण किया जाय।उसी समय उनके मस्तिष्क मे यह बात आई कि आँवले के वृक्ष मे तुलसी एवं विल्ब दोनो के गुण विद्यमान हैं।अतः उन्होने आँवले के वृक्ष मे उन दोनो देवों का पूजन किया और वृक्ष के नीचे ही प्रसाद ग्रहण किया।उसी समय से आँवले के वृक्ष की पूजा प्रारम्भ हो गयी।

पूजन-विधि ---
         
         पूजनकर्ता को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि समस्त दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर आँवले के वृक्ष के नीचे शुभासन पर पूर्वाभिमुख बैठकर पूजन का संकल्प करे। फिर " ऊँ धात्र्यै नमः " से आवाहन करके गन्ध पुष्प अक्षत धूप दीप नैवेद्य आदि से षोडशोपचार पूजन करे।फिर निम्नलिखित मंत्र से उसकी जड़ मे दुग्धधारा प्रवाहित करे ----
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिणः।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः ।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः ।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः ।।

        इस दिन आँवले के वृक्ष मे सूत्रावेष्टन का विधान है।अतःउसमे फेरी लगाते हुए 108 बार कच्चा सूत्र लपेटे।साथ मे इस मंत्र को पढ़ता रहे ---
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नमः ।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोऽस्तुते।।
          इसके बाद शुद्ध कर्पूर अथवा घी की बत्ती से आरती करके श्रद्धापूर्वक परिक्रमा करे।फिर एक पके हुए कुम्हड़े मे रत्न सुवर्ण चाँदी अथवा कुछ द्रव्य डालकर उसका पूजन करे और इस प्रकार प्रार्थना करे ---

कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च ।।
       फिर संकल्पपूर्वक उसे किसी सुपात्र ब्राह्मण के दान कर दे।

माहात्म्य ---
          सनातन परम्परा मे अक्षयनवमी का बहुत अधिक महत्व है।इस दिन जो  व्यक्ति गो सुवर्ण भूमि वस्त्र आभूषण आदि का दान करता है ; अत्यन्त महनीय पद एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।इस दिन के धर्मकर्म से ब्रह्महत्या सदृश महापाप का विनाश हो जाता है।वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।वह स्त्री-पुत्र ; धन-धान्य ; सुख-समृद्धि से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के बाद विष्णु सायुज्य को प्राप्त होता है।

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