Monday, 23 November 2015

नीराजनद्वादशी व्रत

        भगवान विष्णु के पूजन सम्बन्धी पर्वों मे नीराजन द्वादशी का महत्वपूर्ण स्थान है।यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है।इसमे भगवान का नीराजन ( आरती ) किया जाता है।इसीलिए इसे नीराजन द्वादशी कहा जाता है।

कथा ---

         प्राचीन काल मे अजपाल नामक राजा राज्य करता था।उस समय लंकाधिपति रावण ने सभी देवताओं एवं राजाओं को अपने अधीन कर लिया था।एक बार उसने अपने प्रतिहार प्रसस्ति से पूछा कि यहाँ मेरी सेवा के लिए कौन-कौन राजा आये हैं।प्रसस्ति ने उत्तर दिया कि अजपाल के अतिरिक्त सभी राजागण उपस्थित हैं।रावण ने क्रुद्ध होकर अजपाल को लाने के लिए धूम्राक्ष को भेजा।अजपाल ने जाने से इनकार कर दिया और रावण के पास ज्वर को भेजा।ज्वर ने लंका पहुँच कर रावण को प्रकम्पित कर दिया।रावण ने क्षमा याचना की तब ज्वर ने उसे छोड़ दिया।उसी राजा अजपाल ने ही सर्वप्रथम नीराजन - शान्ति का आयोजन किया था।उसी के प्रभावस्वरूप उसे ये शक्तियाँ प्राप्त हुई थीं।

विधि ---

        व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह कार्तिक शुक्ला द्वादशी को स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।सायंकाल ब्राह्मणों द्वारा विष्णु - हवन का आयोजन करे।फिर गन्ध अक्षत पुष्प आदि से विधिवत पूजन कर एरण्ड के तेलयुक्त दीपकों से भगवान का नीराजन ( आरती ) करे।साथ ही लक्ष्मी चण्डिका ब्रह्मा सूर्य गौरी शंकर माता पिता गौ आदि का भी विधिवत नीराजन करे।

माहात्म्य ---

       हमारे धर्मशास्त्रों मे नीराजन - शान्ति का बहुत अधिक महत्त्व बताया गया है।इसे करने से सभी रोग शोक एवं दुःख नष्ट हो जाते हैं।सभी जगह सुख शान्ति एवं सुभिक्ष का वातावरण बन जाता है।जो भगवान विष्णु का नीराजन करता है ; वह धन-धान्य ; सुख-शान्ति ; पशुधन आदि से युक्त होकर नीरोग जीवन - यापन करता है।

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