प्रायः सभी सद्ग्रन्थों मे बताया गया है कि यह संसार असार है।यहाँ की कोई वस्तु सारयुक्त नहीं है।फिर भी चार ऐसी वस्तुयें हैं ; जो सार-स्वरूप हैं।इन चार वस्तुओं मे काशी - वास ; सन्त-महात्माओं का संग ; गंगाजल-सेवन तथा शिव-पूजन की गणना की गयी है ---
असारे खलु संसारे सारमेतच्चतुष्टयम्।
काश्यां वासः सतां संगो गङ्गाम्भः शिवपूजनम्।।
यहाँ स्पष्ट है कि सन्त-महात्माओं की संगति करने से ज्ञान एवं भक्ति की प्राप्ति होती है।इन दोनो साधनों का आश्रय ग्रहण करने पर मनुष्य को सुख-शान्ति के साथ मोक्ष की भी प्राप्ति हो जाती है।यही बात गंगाजल और शिवपूजन के विषय मे भी कही जा सकती है।परन्तु यहाँ यह जिज्ञासा जागृत होनी स्वाभाविक है कि " काशी-वास " मे कौन सी विशेषता है ; जिसके कारण इसे संसार के सार-चतुष्टय मे सम्मिलित किया गया है।
इस जिज्ञासा के समाधान स्वरूप कहा जा सकता है कि काशी शिव जी का परम गुह्यतम क्षेत्र है।यह समस्त प्राणियों को संसार-सागर से पार उतारने वाला है।यह समस्त तीर्थों एवं स्थानों मे उत्तम है।यहाँ किया गया दान ; धर्म ; कर्म ; जप ; होम ; यज्ञ ; तपस्या ध्यान अध्ययन और ज्ञान सब कुछ अक्षय हो जाता है।यहाँ रहने वाला जीव जन्म-मृत्यु ; जरावस्था आदि से रहित होकर परम धाम को प्राप्त कर लेता है।
काशी की उत्पत्ति के विषय मे शिवपुराण का कथन है कि एक बार शिव और शिवा ने शिवलोक नामक क्षेत्र का निर्माण किया था।वही स्थान आगे चलकर काशी नाम से प्रसिद्ध हो गया।यह परम निर्वाण एवं या मोक्ष का स्थान है।यहाँ प्रिया-प्रियतम स्वरूप मे शिवा और शिव सदैव निवास करते हैं।प्रलय काल मे भी उन्होंने इसे अपने सान्निध्य से मुक्त नहीं किया।इसीलिए इसे " अविमुक्त क्षेत्र " कहा जाता है।शिव जी ने पहले इसका नाम आनन्द वन रखा था।बाद मे वह अविमुक्त क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
शास्त्रों मे सात पुरियों या नगरियों को मोक्षदायिनी बताया गया है।इनमे अयोध्या ; मथुरा ; माया ; काशी ; काञ्ची ; अवन्तिका ; पुरी और द्वारका की गणना की गयी है --
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः।।
यद्यपि अयोध्या आदि पुरियाँ भी मोक्ष प्रदान करने मे समर्थ हैं किन्तु इस कार्य के लिए काशी को विशेषाधिकार प्राप्त है।यहाँ तो कर्म-बन्धनों मे बँधे होने के कारण जन्म-मरण रूपी संसार भय से भयभीत ; श्रुति स्मृति के ज्ञान से रहित और शौचाचार-विवर्जित प्राणियों को भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।इतना ही नहीं बल्कि जिन्हें कहीं भी मोक्ष नहीं मिल सकता है ; उन्हें भी काशी मे मुक्ति मिल जाती है --
संसारभयभीता ये ये बद्धाः कर्मबन्धनैः।
येषां क्वापि गतिर्नास्ति तेषां वाराणसी गतिः।।
श्रुतिस्मृतिविहीना ये शौचाचारविवर्जिताः।
येषां क्वापि गतिर्नास्ति तेषां वाराणसी गतिः।।
इससे स्पष्ट है कि काशी मे देहत्याग करने वाला व्यक्ति चाहे धर्मात्मा हो अथवा पापात्मा हो ; उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है।यहाँ केवल मनुष्य ही नहीं ; अपितु कीड़े-मकोड़े ; पशु-पक्षी भी देहत्याग कर शिव-सायुज्य को प्राप्त कर सकते हैं।बड़ा से बड़ा पाप करने वाला व्यक्ति काशी मे प्रवेश करते ही शुद्धात्मा हो जाता है।यदि वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गया तब उसे मुक्ति भी मिल जाती है।इसीलिए असंख्य जन यहाँ देहत्याग करने के उद्देश्य से निवास करते रहते हैं।
यहाँ मोक्ष प्रदान करने के लिए शिव जी स्वयं विराजमान रहते हैं।मणिकर्णिका घाट पर जिस मनुष्य का शरीर गंगाजल मे पड़ा रहता है; शिव जी उसके कान मे तारकमन्त्र का उपदेश देकर उसे ब्रह्म मे लीन कर देते हैं --
मुमूर्षोर्मणिकर्ण्यां तु अर्धोदक निवासिनः।
अहं ददामि ते मन्त्रं तारकं ब्रह्मदायकम्।।
वरुणा और असी नामक नदियों के मध्य बसा हुआ वाराणसी ( काशी ) विश्व का सर्वोत्तम स्थान है।यहाँ भगवान नारायण और देवेश्वर शिव जी सदैव विराजमान रहते हैं।इसलिए इस परम पावनी पुरी का स्मरण और नामोच्चारण करने मात्र से मनुष्य के सभी जन्मों के पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं।यहाँ निवास करने और देहत्याग करने से प्राणी परम गति को प्राप्त हो जाता है।इसलिए मुमुक्षु पुरुष को मृत्यु पर्यन्त नियम पूर्वक काशी मे निवास अवश्य करना चाहिए।
Sunday, 10 July 2016
काशी माहात्म्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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