Monday, 18 July 2016

नर-नारायण अवतार-- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों मे भगवान नर-नारायण अवतार की गणना चतुर्थ स्थान पर की गयी है।श्रीमद्भागवत महापुराण ( 1/3/9 ) के अनुसार सृष्टि के आरम्भ मे भगवान वासुदेव श्रीहरि ने धर्म की पत्नी मूर्ति के गर्भ से नर-नारायण के रूप मे अवतार ग्रहण किया था।इस अवतार मे उन्होंने ऋषि बनकर मन और इन्द्रियों का सर्वथा संयम करके बहुत  कठोर तपस्या की थी ---
   तुर्ये धर्मकलासर्गे नरनारायणावृषी।
   भूत्वाऽऽत्मोपशमोपेतमकरोद् दुश्चरं तपः।।
           पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान नर-नारायण जी प्रकट होने के तत्काल बाद तपस्या करने के लिए बदरिकाश्रम चले गये।वहाँ वे गन्धमादन पर्वत पर एक वटवृक्ष के नीचे तपस्या करने लगे।उन्होंने एक सहस्र वर्षों तक कठोर तपस्या की।उनकी तपस्या को देखकर देवराज इन्द्र सशंकित हो गये।वे उन तपस्वी ऋषियों के पास जाकर बोले -- मै तुम दोनो की तपस्या से पूर्ण सन्तुष्ट हूँ।अब आप मनोवाँछित वर माँगिये।उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।इसके बाद इन्द्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए अनेक प्राकृतिक प्रकोप प्रस्तुत किये किन्तु वे दोनो तनिक भी विचलित नहीं हुए।
           इतने पर भी इन्द्र शान्त नहीं हुए।उन्होंने ऋषिद्वय की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव सहित अनेक अप्सराओं को भेजा।उन सबने नर-नारायण को वशीभूत करने के लिए अनेक उपाय किये।अन्त मे नर-नारायण की समाधि भंग हुई।फिर भी वे क्रुद्ध नहीं हुए।उन्होंने कामदेव आदि से कहा -- आप लोग स्वर्ग से आये हुए हैं।इसलिए हमारे अतिथि हैं।हम आपका यथोचित सत्कार करेंगे।इतना कहकर उन्होंने अपनी माया से एक विचित्र दृश्य उपस्थित किया ; जिसमे लक्ष्मी सदृश अनेक देवियाँ भगवान नर-नारायण की सेवा कर रही थीं।इसे देखकर कामादि बहुत लज्जित हुएऔर ऋषिद्वय की स्तुति करने लगे।भगवान नर-नारायण प्रसन्न होकर बोले -- तुम लोग इन स्त्रियों मे से किसी एक को अपने साथ ले जा सकते हो।उन लोगों ने उर्वशी को ले लिया।बाद मे उसे इन्द्र को समर्पित कर सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया।इन्द्र भी आश्चर्य चकित होकर शान्त हो गये।
            एक बार नर-नारायण तप कर रहे थे।उसी समय प्रजापति दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने के लिए भगवान रुद्र ने अपना त्रिशूल चलाया।वह त्रिशूल यज्ञ का विध्वंश करते हुए तपःरत भगवान नारायण के वक्ष पर आ लगा।नारायण ने भयानक हुंकार भरी ; जिससे वह त्रिशूल रुद्र जी के हाथ मे वापस चला गया।अब तो रुद्र जी का क्रोध अपने चरम पर पहुँच गया।वे नर-नारायण पर आक्रमण कर बैठे।दोनों पक्षों मे भयानक युद्ध छिड़ गया।उस समय ऐसा प्रतीत होता था ; मानो आज ही विश्व-विनाश हो जायेगा।इसे देखकर ब्रह्मा जी आये और दोनो को समझा-बुझाकर शान्त किया।रुद्र जी के चले जाने पर नर-नारायण जी पुनः तपस्या मे संलग्न हो गये।
           नर-नारायण जो सर्वसमर्थ अवतार थे।उन्हें तप करके शक्ति अर्जित करने की आवश्यकता नहीं थी।वे तो संसार मे तप के आदर्श को स्थापित करने के तप कर रहे थे।उनका अवतार ही तप करने के लिए हुआ था।उन्होंने अनेक लीलायें की थीं।वे आज भो बदरिकाश्रम मे तप करते हुए विश्व कल्याण मे संलग्न हैं।

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