ऋग्वेद के अनुसार -- " एकं सद विप्रा बहुधा वदन्ति " -- अर्थात् वह सत् अथवा परब्रह्म परमात्मा एक है ; उसे ही विद्वद्गण विविध नामों से पुकारते हैं।यहाँ यह जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है कि वह " एक " है कौन ? उसका गुण ; स्वभाव ; कर्म ; आकार आदि कैसा है ? इन समस्त प्रश्नों का उत्तर स्कन्दपुराण मे इस प्रकार दिया गया है -- वह एक शिव हैं ; जो सृष्टि ; स्थिति और लय -- इन तीन कार्यों के लिए क्रमशः ब्रह्मा ; विष्णु और शिव ( रुद्र ) इन तीन रूपों मे प्रकट होते हैं ---
एक एव शिवः साक्षात्
सृष्टिस्थित्यन्तसिद्धये।
ब्रह्मविष्णुशिवाख्याभिः
कालनाभिर्विजृम्भते ।।
इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए स्वयं शिव जी ने विष्णु भगवान से कहा है कि हे विष्णु ! हे हरे ! मै स्वभाव से निर्गुण होता हुआ भी संसार की रचना ; स्थिति एवं प्रलय के लिए क्रमशः ब्रह्मा ; विष्णु और रुद्र -- इन तीन रूपों मे विभक्त हुआ हूँ --
त्रिधा भिन्नो ह्यहं विष्णो
ब्रह्मविष्णुहराख्यया ।
सर्गरक्षालयगुणैर्
निष्कलोऽपि सदा हरे ।।
वस्तुतः शिव जी प्रकृति से परे निर्गुण ; निराकार ; निर्वाकार ; मायाधीश एवं परब्रह्म परमात्मा हैं।भक्तों की इच्छा से ही वे निर्गुण से सगुण हो जाते हैं।निराकार होते हुए भी शरीरधारी बन जाते हैं।नाम रहित होते हुए भी नाम वाले बन जाते हैं।इसीलिए इनके निराकार और साकार दोनों रूपों की पूजा की जाती है।साकार रूप मे मूर्ति की और निराकार रूप मे लिंग की पूजा होती है।वे परमात्मा शिव कल्याणस्वरूप हैं और पार्वती जी कल्याणस्वरूपिणी हैं।विद्वानों शिव जी को ईश्वर और पार्वती जी को माया कहा है --
परमात्मा शिवः प्रोक्तः
शिवा सा च प्रकीर्तिता।
शिवमेवेश्वरं प्राहुर्
मायां गौरीं विदुर्बुधाः ।।
इस प्रकार स्पष्ट है कि परब्रह्म परमात्मा का ही दूसरा नाम शिव है।उनके परात्पर निर्गुण स्वरूप को " सदाशिव " और सगुण स्वरूप को " महेश्वर " कहा जाता है।वे जिस स्वरूप से विश्व का सृजन करते हैं; उसे ब्रह्मा और पालनकर्ता स्वरूप को विष्णु कहा जाता है।अन्त मे संसार का संहार करने वाले स्वरूप को रुद्र के नाम से जाना जाता है।
वे शिव जी सूक्ष्माति सूक्ष्म एवं हृदय गुहा रूप गुह्य स्थान के अन्दर रहने वाले हैं।वे अखिल विश्व की रचना करने वाले तथा अनेक रूप धारण करने वाले हैं।उन्होंने सम्पूर्ण जगत् को सब ओर से आवृत्त कर रखा है।जो मनुष्य उस एक अर्थात् अद्वितीय कल्याणस्वरूप को जान लेता है ; वह निश्चय ही परम शान्ति को प्राप्त कर लेता है।वे शिव ही समस्त ब्रह्माण्डों के रक्षक ; सम्पूर्ण विश्व के अधिपति और प्राणिमात्र मे निवास करने वाले हैं।वेदज्ञ महर्षि गण और देव समुदाय भी ध्यान करते हैं।जो व्यक्ति ऐसे महिमा-मण्डित परमदेव परमेश्वर शिव जी को विधिवत् जान लेता है ; वे परम सुख को प्राप्त करते हुए जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है।
Tuesday, 5 July 2016
शिव ही ब्रह्म हैं --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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