Thursday, 14 July 2016

विष्णु जी के चौबीस अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           संसार मे जितने भी कार्य होते हैं ; उनका कोई न कोई कारण अवश्य होता है।बिना कारण के कोई भी कार्य सम्भव नहीं है।इसी प्रकार भगवान के अवतार का भी विशिष्ट प्रयोजन होता है।गोस्वामी तुलसी दास जी के मतानुसार जब जब धर्म की हानि होती है ; नीच ; अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं और उनके अवर्णनीय अन्याय से गौ ; ब्राह्मण ; देवता और पृथ्वी कष्ट पाने लगते हैं; तब तब वे कृपानिधान प्रभुवर विविध प्रकार के शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा का हरण करते हैं ---
      जब जब होइ धरम कै हानी।
    बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
     करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी।
     सीदहिं विप्र धेनु सुर धरनी ।।
     तब तब प्रभु धरि विविध सरीरा।
     हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ।।
           लगभग यही भाव श्रीमद्भगवद्गीता मे भी व्यक्त किया गया है ---
   यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
   अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
   परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
   धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
           इन्हीं प्रयोजनों से भगवान विष्णु के चौबीस अवतार माने गये हैं ; जिनका विवरण इस प्रकार है ---
1-- श्री सनकादि -- सनक ; सनन्दन ; सनातन और सनत्कुमार।
2-- भगवान वराह
3-- देवर्षि नारद
4--  भगवान नर-नारायण
5-- भगवान कपिलमुनि
6-- भगवान दत्तात्रेय
7-- भगवान यज्ञ
8-- भगवान ऋषभदेव
9-- आदिराज पृथुराज
10-- भगवान मत्स्य
11-- भगवान कूर्म
12-- भगवान धन्वन्तरि
13-- श्रीमोहिनी
14-- भगवान नृसिंह
15-- भगवान वामन
16-- भगवान हयग्रीव
17-- भगवान श्री हरि -- ध्रुव एवं गज पर कृपा करने वाले
18-- भगवान परशुराम
19-- भगवान व्यास
20-- भगवान हंस
21-- भगवान श्री राम
22-- बलराम ; श्री कृष्ण
23-- भगवान बुद्ध
24-- भगवान कल्कि

No comments:

Post a Comment