Friday, 15 July 2016

सूर्यदेव की उत्पत्ति -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            ब्रह्मा जी के पुत्रों मे महर्षि मरीचि का नाम विशेष उल्लेखनीय है।मरीचि के पुत्र का नाम कश्यप था।कश्यप की तेरह पत्नियाँ थीं।वे सभी प्रजापति दक्ष की पुत्रियाँ थीं।इन्हीं तेरहों की सन्तान देव ; दानव ; दैत्य आदि सभी हैं।इनमे से अदिति के गर्भ से देवताओं की ; दिति से दैत्यों की ; दनु से दानवों की और खसा के उदर से राक्षसों की उत्पत्ति हुई है।इस प्रकार देव; दानव आदि एक ही पिता की सन्तानें हैं।ये सभी सौतेले एवं मौसेरे भाई हैं।फिर भी इनके मध्य निरन्तर संघर्ष चलता रहता था।एक बार देवताओं और दैत्यों मे भयानक युद्ध छिड़ गया।एक पक्ष मे देवता थे और दूसरे पक्ष मे दैत्य ; दानव ; राक्षस आदि एकत्रित थे।यह युद्ध एक हजार दिव्य वर्षों तक चलता रहा।अन्त मे दैत्यों की विजय और देवताओं की पराजय हुई।देवताओं के राज्याधिकार एवं यज्ञभाग छिन गये।
           देवताओं की पराजय एवं दुर्दशा को देखकर उनकी माता अदिति को घोर कष्ट हुआ।वे आकाश-स्थित तेजोराशि भगवान सूर्यनारायण की स्तुति करने लगीं।उनकी दीर्घकालीन तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने प्रत्यक्ष दर्शन दिया और वर माँगने को कहा।अदिति ने निवेदन किया -- हे सूर्यदेव ! असुरों ने मेरे पुत्रों के हाथ से सम्पूर्ण राज्याधिकार एवं यज्ञभाग छीन लिया है।अतः आप अपने अंश से मेरे पुत्र रूप मे अवतरित होकर मेरे पुत्रों का कल्याण करें।
             इसे सुनकर सूर्यदेव ने कहा -- देवि ! मै सहस्र अंशों सहित तुम्हारे गर्भ से अवतरित होकर तुम्हारे पुत्रों के सभी शत्रुओं का विनाश करूँगा।इस प्रकार वर प्रदान कर सूर्यदेव अन्तर्धान हो गये।बाद मे उनकी सुषुम्ना नामक किरण देवमाता अदिति के गर्भ मे अवतीर्ण हो गयी।देवमाता अदिति चान्द्रायण आदि कठोर व्रतों का पालन करने लगीं।इसे देखकर उनके पति कश्यप ने कहा -- तू नित्य उपवास करके गर्भस्थ शिशु को क्यों मारे डालती है ? इसे सुनकर अदिति ने उत्तर दिया -- मैने इसे मारा नहीं है ; बल्कि यह स्वयं शत्रुओं को मारने वाला होगा।इतना कहकर देवमाता अदिति ने तत्काल गर्भ का प्रसव कर दिया।वह गर्भ उदयकालीन सूर्य के समान अत्यन्त प्रकाशमान था।उसे देखकर कश्यप जी उसकी स्तुति करने लगे।तब उस गर्भ से एक बालक प्रकट हो गया।उसका तेज समस्त दिशाओं मे व्याप्त हो गया।
          उसी समय आकाशवाणी हुई -- हे कश्यप मुनि ! तुमने अपनी पत्नी अदिति से कहा था -- " त्वया मारितमण्डम् " -- अर्थात् तूने गर्भस्थ बच्चे को मार डाला।अतः इस पुत्र का नाम मार्तण्ड होगा।यह यज्ञभाग का अपहरण करने वाले शत्रुभूत असुरों का संहार करने वाला है।इसे सुनकर देवताओं मे हर्ष की लहर दौड़ गयी।कालान्तर मे देवताओं ने दैत्यों को युद्ध के लिए ललकारा।दोनों पक्षों मे घोर युद्ध आरम्भ हो गया।उसी समय भगवान मार्तण्ड ने असुरों पर अपनी तीक्ष्ण दृष्टि डाली ; जिससे सम्पूर्ण असुर भस्म हो गये।देवगण आनन्दित होकर भगवान मार्तण्ड की स्तुति करने लगे।

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