शिव जी के पुत्र स्कन्द ने जब तारकासुर का वध कर दिया तब उसके तीन पुत्रों -- तारकाक्ष ; विद्युन्माली और कमलाक्ष को बहुत संताप हुआ।बाद मे तीनों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया।ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उनसे वर माँगने को कहा।उन असुरों ने अमरत्व का वरदान माँगा।ब्रह्मा जी ने कहा -- अमरत्व का वरदान सबके लिए सुलभ नहीं है।अतः तुम लोग कोई दूसरा वर माँग लो।तब उन असुरों ने कहा -- हमारे पास कोई ऐसा आवास नहीं है ; जिसमे हम समस्त शत्रुओं से सुरक्षित रह सकें।अतः आप हमारे लिए तीन ऐसे पुरों ( नगरों ) का निर्माण करा दें ; जिसमे हम पूर्ण सुरक्षित रहते हुए पृथ्वी पर भी विचरण कर सकें।इन तीनों पुरों को जब कोई एक ही बाण से नष्ट सके ; तभी उस व्यक्ति के द्वारा हमारी मृत्यु हो सके।ब्रह्मा जी ने स्वीकार कर लिया।
बाद मे ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार मय दानव ने तीन पुरों का निर्माण किया।इनमे से तारकाक्ष का पुर स्वर्णमय ; कमलाक्ष का रजतमय और विद्युन्माली का पुर लौहमय था।ये तीनो पुर क्रमशः स्वर्ग ; अन्तरिक्ष और पृथ्वी पर अवस्थित थे।तीनों नगर सुन्दर राजप्रासादों ; दुर्गों ; कल्पवृक्षों आदि से युक्त होकर दूसरे त्रिलोकी के समान प्रतीत होते थे।ऐसे सुन्दर नगरों मे रहते हुए उन असुरों ने सम्पूर्ण त्रिलोकी को बाधित कर दिया।
तारकपुत्रों के प्रभाव से दग्ध हुए इन्द्रादि देवगण दुःखी होकर ब्रह्मा जी की शरण मे गये।ब्रह्मा जी ने कहा कि मैने ही इन दैत्यों को बढ़ाया है।अतः मेरे द्वारा इनका वध किया जाना उचित नहीं है।आप लोग शिव जी से प्रार्थना करें।वही आप लोगों का मनोरथ सिद्ध कर सकेंगे।सभी देवगण शिव जी के पास गये और उन्हें प्रणाम कर बोले -- तारकपुत्रों ने इन्द्र सहित समस्त देवताओं को पराजित कर दिया है।उन्होंने सम्पूर्ण त्रिलोकी को अपने अधीन कर सर्वत्र अधर्म का विस्तार कर रखा है।अतः कोई ऐसी नीति अपनायें ; जिससे हम सबकी रक्षा हो सके।
देवताओं की प्रार्थना सुनकर शिव जी ने कहा -- इस समय वे तीनों दैत्य पुण्यकार्यों मे संलग्न हैं।इसलिए उनका वध करना उचित नहीं है।मै देवताओं के कष्टों को जानता हूँ।अतः आप लोग भगवान विष्णु के पास जाकर उनसे यह कारण बता दें।देवगण विष्णु जी के पास गये।विष्णु जी ने देवताओं की मनसा के अनुसार कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी ; जिससे वे असुर धर्मविमुख हो गये।साथ ही अनाचार मे संलिप्त हो गये।वहाँ देवपूजन आदि सभी शुभ आचरण नष्ट हो गये।इतना ही नहीं बल्कि अपने इष्टदेव शिव जी का भी पूजन बन्द कर दिया।
इसे देखकर देवताओं ने पुनः कैलास जाकर शिव जी की स्तुति कर उनसे शरणागतों की रक्षा करने का निवेदन किया।शिव जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और विश्वकर्मा-निर्मित अद्भुत रथ पर आरूढ़ होकर युद्ध हेतु प्रस्थान कर दिया।उनके साथ देवराज इन्द्र सहित अन्य प्रमुख देवता भी चल पड़े।त्रिपुरों के समीप पहुँच कर शिव जी ने जब उन पर शर-सन्धान करना चाहा ; तभी आकाशवाणी हुई कि हे जगदीश्वर ! जब तक आप गणेश जी का पूजन नहीं करेंगे ; तब तक इन तीनों असुरों का संहार नहीं होगा।उसे सुनकर शिव जी ने तत्काल गजानन का पूजन किया।उनके पूजन करते ही तीनों पुर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगे।संयोगवश उस समय वे तीनो पुर एक ही स्थान पर इकट्ठा हो गये।
इस दृश्य को देखकर भगवान विष्णु ने कहा -- महेश्वर ! त्रिपुर-निवासी असुरों के वध का समय आ गया है।इसीलिए ये तीनो इकट्ठा हो गये हैं।अतः इनके विलग होने के पूर्व ही इन्हें भस्म कर दें।इसे सुनकर शिव जी ने पशुपतास्त्र नामक अमोघ बाण छोड़ दिया ; जिससे तारकपुत्रों सहित तीनों पुर भस्म हो गये।इससे सम्पूर्ण संसार मे प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी।चारों ओर शिव जी की जय जयकार होने लगी।
Wednesday, 6 July 2016
त्रिपुर दहन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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