शिव जी की प्रिय वस्तुओं मे रुद्राक्ष का नाम सर्वोपरि है।इसे शिव-स्वरूप ही माना जाता है।यह अत्यन्त पवित्र एवं पापनाशक है।इसके दर्शन एवं स्पर्श से मनुष्य पापमुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है।रुद्राक्ष की माला से जप करने पर शीघ्रातिशीघ्र सिद्धि की प्राप्ति होती है।इसकी उत्पत्ति एवं माहात्म्य का वर्णन स्वयं शिव जी ने माता पार्वती से किया था।
एक बार भगवान शिव जी हजारों वर्ष तक तपस्या करते रहे।एक दिन उनका मन क्षुब्ध हो उठा।उन्होंने अपने दोनों नेत्र खोल दिये।नेत्र खुलते ही नेत्रपुटों से जल की कुछ बूँदें गिर गयीं।उन्हीं जलविन्दुओं से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हो गये।इन वृक्षों के फलों को रुद्राक्ष के नाम से पुकारा जाता है।शिव-भक्ति मे इनका असीम महत्व है।यद्यपि शास्त्रों मे छोटे-बड़े रुद्राक्षों की महत्ता कम-ज्यादा बतायी गयी है।फिर भी सभी रुद्राक्ष महत्वपूर्ण ; पवित्र एवं पापनाशक होते हैं।जो रुद्राक्ष समान आकार वाले ; चिकने ; सुदृढ़ ; स्थूल ; उभरे हुए छोटे-छोटे कण्टकों वाले और सुन्दर होते हैं ; वे ही धारण करने योग्य होते हैं।जिन्हें कीड़ों ने काटकर दूषित कर दिया हो ; जो टूटे फूटे हों ; व्रणयुक्त हों तथा सुन्दर गोलाई युक्त न हों ; वे रुद्राक्ष धारण करने योग्य नहीं होते हैं।जिसमे अपने आप छिद्र बना हो ; वही उत्तम रुद्राक्ष माना जाता है।जिसमे छिद्र बनाया जाय ; वह मध्यम माना जाता है।
रुद्राक्षों के भेद -----
1-- एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात् शिवस्वरूप माना जाता है।इसे धारण करने से भोग और मोक्ष दोनो की प्राप्ति होती है।यह सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
2-- दोमुखी रुद्राक्ष को देवदेवेश्वर माना गया है।यह समस्त कामनाओं और फलों को प्रदान करने वाला है।
3-- तीन मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त विद्यायें प्रतिष्ठित हो जाती हैं।
4-- चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रह्म का स्वरूप है।यह चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाला है।
5-- पञ्चमुखी रुद्राक्ष को कालाग्नि स्वरूप माना गया है।यह सब कुछ प्रदान करने मे समर्थ है।यह मुक्तिदाता ; मनोवाँछित फलदाता एवं पापनाशक होता है।
6-- छःमुखी रुद्राक्ष साक्षात् कार्तिकेय स्वरूप होता है।इसे दक्षिण हस्त मे धारण करने से ब्रह्महत्या आदि दोषों से भी मुक्ति मिल जाती है।
7-- सप्तमुखी रुद्राक्ष अनंग स्वरूप है।यह प्रबल समृद्धिदायक होता है।इसे धारण करने से दरिद्र भी ऐश्वर्यशाली बन जाता है।
8-- आठ मुख वाले रुद्राक्ष को अष्टमूर्ति और भैरव स्वरूप माना जाता है।इसे धारण करने से मनुष्य दीर्घायु हो जाता है।
9-- नौ मुखी रुद्राक्ष भैरव एवं कपिल मुनि का प्रतीक माना जाता है।नौ रूप धारण करने वाली महेश्वरी दुर्गा को इसकी अधिष्ठात्री देवी माना गया है।इसे वाम हस्त मे धारण करने वाला व्यक्ति शिव सदृश हो जाता है।
10-- दसमुखी रुद्राक्ष को साक्षात् विष्णु जी का स्वरूप माना जाता है।इसे धारण करने से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।
11-- ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को रुद्ररूप माना जाता है।इसे धारण करने से सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है।
12-- बारह मुख वाले रुद्राक्ष को आदित्य स्वरूप माना गया है।जो व्यक्ति इसे अपने केशराशि मे धारण कर लिया हो ; मानो उसके मस्तक पर द्वादश आदित्य विराजमान हो गये हों।
13-- तेरह मुख वाले रुद्राक्ष को विश्वेदेवों का स्वरूप माना जाता है।इसे धारण करने से मनुष्य को सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति हो जाती है।
14-- चौदह मुख वाले रुद्राक्ष को परम शिव स्वरूप माना जाता है।इसे भक्तिपूर्वक मस्तक पर धारण करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
Thursday, 7 July 2016
रुद्राक्ष -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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