Wednesday, 1 June 2016

दक्ष-यज्ञ का विध्वंश -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            दक्ष-यज्ञ मे शिव जी का भाग न होने तथा दक्ष द्वारा शिव जी के लिए अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करने से क्रुद्ध होने वाली भगवती सती देवी ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया।इससे सम्पूर्ण यज्ञशाला मे हाहाकार मच गया।प्रमथगणों ने जाकर शिव जी को सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया।बाद मे नारद जी भी शिव जी के पास गये और उन्हें समस्त घटनाओं से अवगत कराया।
            सती जी के प्राणोत्सर्ग की घटना सुनते ही शिव जी के क्रोध का ठिकाना न रहा।वे क्रोधावेश मे उन्मत्त सा हो गये।उन्होंने अपने सिर से एक जटा उखाड़कर पर्वत पर पटक दिया।उससे महाबली वीरभद्र तथा महाकाली का प्रादुर्भाव हुआ।वीरभद्र ने शिव जी को प्रणाम कर पूछा कि इस समय मुझे कौन सा कार्य करना है ? मै आपकी कृपा से अपार शक्ति एवं सामर्थ्य से युक्त हूँ।आप मुझे आदेश देने की कृपा करें।शिव जी ने उन्हें शुभाशीष देकर याग-परिवार सहित दक्ष आदि को भस्म कर देने की आज्ञा प्रदान की।
            शिव जी की आज्ञा प्राप्तकर वीरभद्र ने उन्हें प्रणाम किया और यज्ञ-विध्वंश हेतु प्रस्थान कर दिया।उनके साथ महाकाली सहित करोड़ो शिवगण भी चल पड़े।उस समय वीरभद्र जी शिव जी के समान ही वेशभूषा धारण किये हुए थे।उनके एक सहस्र भुजायें थीं।शरीर मे नागराज सुशोभित हो रहे थे।उनका रथ बहुत विचित्र था।उसमे दस सहस्र सिंह जुते हुए थे।उनके साथ महाकाली भी अपने समस्त सहयोगियों के साथ विद्यमान थीं।सम्पूर्ण सैन्यबल एक अगाध सागर की भाँति लहरा रहा था।
            इधर दक्ष एवं वहाँ उपस्थित देवताओं को अनेक अशुभ लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे।यज्ञ-विध्वंश के सूचक त्रिविध उत्पात प्रकट हो गये।यज्ञशाला की धरती काँपने लगी।दसो दिशायें मलिन हो गयीं।नाना प्रकार के अपशकुन होने लगे।उसी समय आकाशवाणी हुई ; जिसमे भगवान हर की ओर से दक्ष को मिलने वाले महान दुःखों की सूचना दी गयी।दक्ष ने यज्ञरक्षा हेतु भगवान विष्णु से निवेदन किया किन्तु विष्णु जी ने स्पष्ट अस्वीकार कर दिया।
            उसी समय वीरभद्र अपनी विशाल सेना के साथ यज्ञस्थल पर पहुँच गये।उनके सिंहनाद करते ही हाहाकार मच गया।उनकी हुंकार से सम्पूर्ण त्रैलोक्य गुंजायमान हो गया।आकाश धूल से ढँक गया।दिशायें अन्धकार मे डूब गयीं।पृथ्वी काँपने लगी।इस भयानक दृश्य को देखते ही दक्ष के मुह से खून निकलने लगा।वहाँ उपस्थित देवताओं ने वीरभद्र को रोकने का प्रयास किन्तु उनके भयानक प्रहार के सामने कोई टिक नहीं सका।क्षण भर मे ही सभी देवता पराजित होकर भाग गये।
            इतने मे यज्ञशाला मे उपस्थित ऋषियों ने भगवान विष्णु का आवाहन कर उनसे यज्ञरक्षा हेतु निवेदन किया।भगवान तो भक्तों के अधीन होते ही हैं।अतः ऋषियों के अनुरोध पर विष्णु जी ने वीरभद्र से युद्ध करना आरम्भ कर दिया।वीरभद्र ने विष्णु के सुदर्शन चक्र को स्तम्भित कर उनके धनुष के तीन खण्ड कर दिया।फलतः विष्णु जी अन्तर्धान हो गये।ऋषिगण भी भागने लगे।यज्ञभगवान भी मृग का रूप धारण कर भागने लगे परन्तु वीरभद्र ने उन्हें पकड़कर मस्तकहीन कर दिया।महर्षि भृगु को पैरों से दबाकर उनकी दाढ़ी-मूछ नोच डाली।इस प्रकार क्षण भर मे ही वीरभद्र ने सभी देवताओं एवं ऋषियों की भयानक दुर्दशा कर दी।चारों ओर त्राहि माम् त्राहि माम् का स्वर गूँज उठा।
            अन्त मे वीरभद्र ने दक्ष को दण्डित करने के लिए उसके मस्तक पर तलवार से प्रहार किया।परन्तु योग के प्रभाव से वह कट नहीं सका।तब उन्होंने दक्ष की छाती पर पैर रखकर अपने हाथों से उसके गर्दन को मरोड़कर तोड़ डाला।बाद मे उस कटे सिर को अग्निकुण्ड मे डाल दिया।इस प्रकार उस यज्ञ का विध्वंश कर सब लोग शिव जी के पास कैलास पर्वत पर लौट आये।शिव जी ने प्रसन्न होकर वीरभद्र को अपने प्रमथगणों का अध्यक्ष बना दिया।

No comments:

Post a Comment