Friday, 24 June 2016

लिंगोपासना क्यों ? -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            हमारे देश मे शिवोपासना की परम्परा अनादिकाल से विद्यमान है।इसीलिए अनेक स्थलों पर शिवलिंग एवं शिवमूर्ति विराजमान हैं।यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अन्य देवताओं का पूजन केवल मूर्तिरूप मे होता है किन्तु शिव जी की पूजा मूर्ति और लिंग दोनों रूपों मे होती है।इसका कारण क्या है ?इस प्रश्न का उत्तर शिवपुराण मे सम्यक् रूप से दिया गया है।
           एक बार ऋषियों ने सूत जी से पूछा  -- सभी देवताओं की पूजा केवल मूर्ति रूप मे ही होती है किन्तु शिव जी की पूजा मूर्ति और लिंग दोनों रूपों मे क्यों होती है ? इस प्रश्न के उत्तर मे सूत जी ने बताया कि भगवान शिव जी ब्रह्मस्वरूप हैं।इसलिए उन्हें निष्कल या निराकार कहा जाता है।जब वे साकार रूप धारण करते हैं तब उन्हें सकल या साकार कहा जाता है।इस प्रकार वे साकार और निराकार दोनों रूपों मे हैं।उनके निराकार रूप का प्रतीक ही लिंग कहलाता है।साकार स्वरूप का प्रतीक मूर्ति है।यहाँ यह ध्यातव्य है कि केवल शिव ही ब्रह्म हैं।इसीलिए उनकी पूजा मूर्ति और लिंग दोनो रूपों मे की जाती है।अन्य देवता ब्रह्म नहीं हैं।इसलिए उनकी पूजा केवल मूर्तिरूप मे ही होती है।उनके लिए लिंग का प्रयोग नही होता है।
            इसी प्रश्न को एक बार सनत्कुमार ने नन्दिकेश्वर से पूछा था।उस समय नन्दिकेश्वर ने भी यही बताया था कि शिव जी ब्रह्म होने के कारण निराकार रूप मे लिंग मे और साकार रूप मे मूर्ति मे पूजे जाते हैं।अतःनिष्कर्ष रूप मे कहा जा सकता है कि लिंग शिव जी के निराकार स्वरूप का प्रतीक है।लिंग का अर्थ भी चिह्न या प्रतीक होता है।इसीलिए शिव जी की पूजा लिंग रूप मे की जाती है।

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