Sunday, 5 June 2016

मंगल ग्रह की उत्पत्ति -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            प्रजापति दक्ष के यज्ञ मे सती जी ने जब अपने शरीर को भस्म कर दिया तब शिव जी अकेले हो गये।वे प्रति क्षण सती जी का ही स्मरण करते रहते थे।धीरे-धीरे विरक्ति की भावना बढ़ती गयी।अन्ततः वे गृहस्थाश्रम की नीति-रीति का परित्याग कर दिगम्बर हो गये।वे उन्मत्त की भाँति इधर-उधर भ्रमण करने लगे।परन्तु कहीं भी सती जी का दर्शन न पाकर वे पुनः कैलास पर्वत पर लौट आये।यद्यपि शिव जी नितान्त विरक्त ; निर्गुण एवं निर्लिप्त थे।फिर भी अपनी विरहावस्था का प्रदर्शन केवल लौकिक गति को दिखाने के लिए किया था।
          इस प्रकार सम्पूर्ण त्रैलोक्य का भ्रमण कर शिव जी कैलास पर्वत पर वापस आ गये।उन्होंने अपने मन को एकाग्र कर अखण्ड समाधि लगा ली।असंख्य वर्षों के बाद उन्होंने समाधि छोड़ी।उसी समय उनके ललाट से पसीने की एक बूँद पृथ्वी पर गिर पड़ी।वह बूँद तत्काल एक शिशु के रूप मे परिवर्तित हो गयी।वह बालक चार भुजाओं वाला ; अत्यन्त देदीप्यमान ; शोभाशाली एवं दुस्सह तेज-सम्पन्न था।उसके शरीर की कान्ति लाल एवं आकार मनोहर था।
           उस बालक को देखकर पृथ्वी एक सुन्दर स्त्री के रूप मे प्रकट हो गयी।उन्होंने उस बालक को अपनी गोद मे ले लिया।वे वात्सल्यभाव के वशीभूत होकर उसे स्तनपान कराने लगीं।उसे देखकर शिव जी बोले -- हे धरणि ! तुम धन्य हो।मेरे इस पुत्र का प्रेमपूर्वक पालन-पोषण करो।यद्यपि इसका आविर्भाव मेरे श्रमजल से हुआ है।फिर भी इसकी ख्याति तुम्हारे नाम से तुम्हारे पुत्र के रूप मे होगी।आगे चलकर वही बालक भौम नाम से प्रसिद्ध हुआ।युवा होने पर उसने काशी मे दीर्घकाल तक भगवान शिव जी की सेवा की।भगवान विश्वनाथ की कृपा से उसे ग्रह का गौरवशाली पद प्राप्त हुआ।वही ग्रह इस समय भौम ; कुज ; मंगल आदि विविध नामों से प्रसिद्ध है।

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