द्वारपूजा के बाद बारात जनवासे वापस गयी।चढ़ाव का जब समय आया तब विष्णु आदि देवताओं ने वैदिक एवं लौकिक रीति का पालन करते हुए शिव जी के द्वारा दिये गये आभूषणों से पार्वती जी को अलंकृत किया।धीरे-धीरे कन्यादान की मुहूर्त सन्निकट आ गयी।वर सहित बारातियों को बुलाया गया।भगवान शिव जी बाजे गाजे के साथ हिमालय के घर पहुँचे।हिमवान ने श्रद्धा भक्ति के साथ शिव जी को प्रणाम किया और आरती उतारी।फिर उन्हें रत्नजटित सिंहासन पर बैठाया।आचार्यों ने मधुपर्क आदि क्रियायें सम्पन्न कीं।फिर पार्वती जी को उचित स्थान पर बैठाकर पुण्याहवाचन आदि किया गया।
अब कन्यादान का समय आ गया।हिमवान के दाहिनी ओर मेना और सामने पार्वती जी विराजमान हो गयीं।इसी समय हिमवान ने शाखोच्चार के उद्देश्य से शिव जी से उनका गोत्र ; प्रवर ; शाखा आदि के विषय मे पूछा।शिव जी ने कोई उत्तर नहीं दिया।तब नारद जी ने कहा -- पर्वतराज ! तुम बहुत भोले हो।तुम्हारा प्रश्न उचित नहीं है क्योंकि इनके गोत्र ; कुल आदि के बारे मे ब्रह्मा ; विष्णु आदि भी नहीं जानते हैं।दूसरों के द्वारा जानने का प्रश्न ही नहीं उठता है।ये प्रकृति से परे निर्गुण ; निराकार परब्रह्म परमात्मा और गोत्र ; कुल ; नाम आदि से रहित स्वतन्त्र एवं परम पिता परमेश्वर हैं।परन्तु स्वभाव से अत्यन्त दयालु और भक्तवत्सल हैं।ये केवल भक्तों का कल्याण करने के लिए ही साकार रूप धारण करते हैं।इसलिए इनके गोत्र ; प्रवर आदि जानने के भ्रमजाल मे मत फँसिये।
नारद जी की बातों को सुनकर हिमालय को ज्ञान हो गया।उनके मन का सम्पूर्ण विस्मय नष्ट हो गया।उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए भगवान शिव जी के लिए अपनी कन्या का दान कर दिया ---
इमां कन्यां तुभ्यमहं ददामि परमेश्वर।
भार्यार्थं परिगृह्णीष्व प्रसीद सकलेश्वर।।
भगवान शिव जी ने प्रसन्नता पूर्वक वेदमन्त्रों के साथ पार्वती जी के करकमलों को अपने हाथ मे ग्रहण कर लिया।फिर क्या था ; सम्पूर्ण त्रैलोक्य मे जय जयकार का शब्द गूँजने लगा।इसके बाद शैलराज ने शिव जी को कन्यादान की यथोचित सांगता प्रदान की।साथ ही अनेक प्रकार के द्रव्य ; रत्न ; गौ ; अश्व ; गज ; रथ आदि प्रदान किया।इसके बाद विवाह की सम्पूर्ण क्रियायें सम्पन्न की गयीं।
Thursday, 23 June 2016
शिव पार्वती विवाह -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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