Saturday, 11 June 2016

मेना का कोप -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            ब्राह्मण रूप धारी शिव जी पार्वती जी के परिवार वालों को छलपूर्ण मिथ्या वचनो द्वारा समझाकर चले गये।उनकी बातों का सर्वाधिक प्रभाव मेना पर पड़ा।वैसे भी माता का हृदय बहुत कोमल एवं भोला होता है।वे शिव-विषयक दोषों को सुनकर घबरा गयीं।अतः उन्होंने अपने पति से कहा कि उन ब्राह्मण देवता के द्वारा बताये गये शिव जी के दोषों को सुनकर मेरा मन बहुत खिन्न और उनकी ओर से विरक्त सा हो गया है।मै ऐसे कुरूप ; कुशील एवं कुत्सित व्यक्ति के साथ अपनी सुलक्षणा पुत्री का विवाह कदापि नहीं कर सकती हूँ।मै मृत्यु का वरण कर सकती हूँ ; गृहत्याग कर सकती हूँ ; विष-भक्षण कर सकती हूँ ; पार्वती के गले मे फाँसी लगा सकती हूँ अथवा उसे महासागर मे डुबो सकती हूँ ; परन्तु उसका विवाह रुद्र के साथ नहीं कर सकती हूँ।इतना कहकर वे कोपभवन मे चली गयीं।
            यह समाचार जब शिव जी को प्राप्त हुआ तब उन्होंने अरुन्धती सहित सप्तर्षियों को मेना के पास उन्हें समझाने के लिए भेजा।वे लोग हिमवान घर पहुँचे।हिमवान ने उनका यथोचित सत्कार किया।तब सप्तर्षियों ने समझाया कि भगवान शिव जी जगत्पिता और पार्वती जी जगज्जननी हैं।वे सनातन पति-पत्नी हैं।इसलिए तुम्हें पार्वती का विवाह शिव जी से कर देना चाहिए।इससे तुम्हारा जीवन सफल हो जायेगा और तुम जगद्गुरु के गुरु बन जाओगे।हिमवान ने कहा -- मै तो पहले से ही तैयार हूँ परन्तु एक वैष्णवधर्मी ब्राह्मण ने पार्वती की माता को भ्रमित कर दिया है।इसलिए वे अपनी पुत्री का विवाह शिव जी के साथ करने के लिए सहमत नहीं हैं।इस समय वे इसी बात को लेकर कोपभवन मे चली गयी हैं।
            सप्तर्षियों ने अरुन्धती को मेना के पास भेजा।वे वहाँ गयीं तो देखा कि मेना अत्यन्त दुखी एवं अव्यवस्थित स्थिति मे उदास पड़ी हुई थीं।उनके बगल मे पार्वती भी मुह नीचे किये बैठी थीं।मेना ने अरुन्धती को प्रणाम कर यथोचित आसन पर बैठाया।बाद मे अरुन्धती ने मेना को बहुत समझाया और उन्हें सप्तर्षियों से मिलवाया।सप्तर्षियों ने बड़ी वाक्पटुता के साथ समझाया कि यह आपका सौभाग्य है आप विश्वेश्वर रुद्र के सास और श्वसुर बनने का अवसर पा रहे हैं।यद्यपि शिव जी विवाह के लिए उत्सुक नहीं हैं किन्तु ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर तारकासुर का विनाश करने के उद्देश्य से वीरपुत्र उत्पन्न करने के लिए तैयार हुए हैं।साथ ही तुम्हारी पुत्री जब तप कर रही थी तब शिव जी ने उन्हें वरण करने की प्रतिज्ञा की थी।इसीलिए वे तुम्हारी पुत्री का पाणिग्रहण करने के लिए तैयार हुए हैं।अन्यथा वे वैवाहिक बन्धनों  से दूर ही रहना चाहते हैं।
           सप्तर्षियों की बात सुनकर हँसते हुए गिरिराज बोले -- शिव जी के पास घर - द्वार ; ऐश्वर्य ; स्वजन ; बन्धु-बान्धव आदि कुछ भी नहीं है।अतः ऐसे निर्लिप्त भोगी को मै अपनी कन्या कैसे दे दूँ।आप स्वयं जानते हैं कि अयोग्य वर को कन्या प्रदान करने वाले माता-पिता नरकगामी होते हैं।फिर आप मुझे क्यों नरकगामी बनाने पर तुले हैं।मै ऐसे अयोग्य वर को अपनी कन्या प्रदान करने मे पूर्णतः असमर्थ हूँ।तब महर्षि वसिष्ठ ने पार्वती के पूर्व जन्म की कथा सुनाकर शिव जी के अपूर्व माहात्म्य का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया।उसे सुनकर हिमालय और मेना को यथार्थ का बोध हुआ।वे दोनो विवाह के लिए सहमत हो गये।बाद मे सप्तर्षियों ने शिव जी को भी इस समाचार से अवगत कराया।शिव जी भी बहुत प्रसन्न और सन्तुष्ट हुए।

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