Monday, 6 June 2016

पार्वती की शिवसेवा -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           यह संयोग ही है की पार्वती जी को अपने विवाह के पूर्व ही शिव जी की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।इस विषय मे एक रोचक आख्यान उपलब्ध है।एक बार नारद जी हिमालय के घर पहुँच गये।हिमालय ने उनका विधिवत् सत्कार करने के बाद अपनी पुत्री पार्वती का हाथ देखकर फलादेश करने का निवेदन किया।नारद जी ने बताया कि आपकी पुत्री समस्त शुभ लक्षणों से युक्त है।परन्तु एक रेखा बहुत विलक्षण है।उसके अनुसार इसे योगी ; निर्गुण ; निष्काम ; मातृ-पितृ विहीन एवं अमंगल वेशधारी पति प्राप्त होगा।
           नारद जी की बात सुनकर हिमालय और मेना बहुत दुःखी हुए किन्तु पार्वती जी उस भावी पति को शिव जी मानकर बहुत प्रसन्न हुईं।बाद मे नारद जी ने पार्वती जी के पूर्वजन्म की घटना सुनाई तब माता-पिता भी प्रसन्न हो गये।धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया।एक दिन पार्वती ने अपने माता-पिता से बताया कि मैने पिछली रात्रि के ब्रह्म मुहूर्त मे एक स्वप्न देखा है ; जिसमे एक तपस्वी ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए मुझसे तप करने को कहा है।उसी समय हिमालय ने भी उसी भाव से मिलते जुलते स्वप्न देखने की बात बतलायी।परस्पर वार्तालाप के बाद सब लोग उस स्वप्न के फल की प्रतीक्षा करने लगे।
            एक बार शिव जी गंगावतार ( गंगोत्री ) नामक तीर्थस्थल पर तपस्या करने आ गये।इसे सुनकर हिमालय जी अपनी पुत्री पार्वती सहित शिव जी के पास गये।उन्होंने शिव जी को प्रणाम कर निवेदन किया कि मेरी पुत्री आपकी सेवा करने के लिए बहुत उत्सुक है।अतः इसे सेवा करने का अवसर प्रदान करने की कृपा करें।शिव जी ने कहा -- हे शैलराज ! आपकी पुत्री अत्यन्त सुन्दर एवं शुभलक्षणा है किन्तु इसे मेरे पास नहीं लाना चाहिए।विद्वानों का कथन है कि स्त्री मायारूपिणी एवं तपस्वियों के तप मे विघ्न डालने वाली होती है।मै तो योगी ; तपस्वी और माया से निर्लिप्त रहने वाला हूँ।इसलिए युवती स्त्री से मेरा कोई प्रयोजन नहीं है।
            शिव जी की बातों को सुनकर पार्वती जी बोलीं -- प्रभो ! आप ज्ञानविशारद हैं ; फिर भी ऐसी बातें कर रहे हैं।आप तो स्वयं जानते हैं कि समस्त कर्मों को करने की शक्ति को प्रकृति कहा जाता है।उस प्रकृति के बिना लिंगरूपी महेश्वर कैसे हो सकते हैं ? शिव जी ने भी इसका यथोचित उत्तर दिया।धीरे-धीरे दोनो मे शास्त्रार्थ होने लगा।पार्वती जी सांख्यशास्त्र के आश्रय से और शिव जी वेदान्तशास्त्र के आश्रय से अपना मत व्यक्त कर रहे थे।दोनो ने अपने-अपने अकाट्य तर्क प्रस्तुत किये।अन्ततोगत्वा शिव जी ने पार्वती को सेवा करने की अनुमति प्रदान कर दी।
          इसके बाद पार्वती जी प्रतिदिन अपनी सखियों के साथ जाने लगीं और भक्तिपूर्वक शिव जी की सेवा मे संलग्न हो गयीं।वे प्रतिदिन शिव जी के चरणों को धोकर उस चरणामृत का पान करने लगीं।उसके बाद शिव जी को स्नान आदि कराकर अपने घर लौट जाती थीं।इस प्रकार दीर्घकाल तक वे शिव जी की सेवा करती रहीं।अब तो पार्वती जी के पास केवल एक ही काम था।प्रतिदिन शिव जी के पास आकर सेवा करना और सायंकाल अपने घर लौट जाना।इसी सेवा के परिणामस्वरूप भविष्य मे उन्हें शिव जी की धर्मपत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

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