शिव जी की बारात जब हिमाचल पुरी पहुँची तब मेना ने शिव जी की विधिवत आरती की।इसके बाद द्वारपूजा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।द्वारपूजा आदि के बाद बारात जनवासे की ओर चल पड़ी।इधर पार्वती जी अपनी कुलदेवी का पूजन करने गयीं।उस समय उनका स्वरूप अत्यन्त सुन्दर एवं दर्शनीय था।उनकी अंगकान्ति नीलाञ्जन सदृश अत्यन्त मनमोहक थी।उनके अंग-प्रत्यंग सौन्दर्य से परिपूर्ण थे।उनका मुखमण्डल मन्द मुस्कान से सुशोभित था।उनकी दृष्टि अत्यन्त पैनी एवं मनोहारिणी थी।नेत्रों की आकृति कमल को भी लज्जित कर रही थी।उनकी केशराशि बहुत सुन्दर एवं हृदयाकर्षक थी।कपोलों पर बनी हुई पत्रभंगी के कारण उनकी शोभा द्विगुणित हो रही थी।ललाट मे कस्तूरी और सिन्दूर कि बिन्दी अत्यधिक शोभायमान थी।
पार्वती जी का सम्पूर्ण शरीर बहुमूल्य आभूषणों से सुसज्जित था।उन्होंने वक्षस्थल पर जो रत्नजटित हार धारण कर रखा था ;उससे दिव्य दीप्ति निःसृत हो रही थी।उनकी भुजाओं मे केयूर ; कंकण ; वलय आदि आभूषण सुशोभित हो रहे थे।उन्होंने कानों मे जो रत्नकुण्डल धारण कर रखा था ; उससे उनके मनोहर कपोलों की रमणीयता और अधिक बढ़ गयी थी।उनकी दन्तपंक्ति मणियों एवं रत्नों की शोभा को भी लज्जित कर रही थी।उनके अधर एवं ओष्ठ सुन्दर बिम्बाफल के समान सुशोभित हो रहे थे।पैरों मे रत्नाभ महावर विराजमान थी।उनके एक हाथ मे रत्नजटित दर्पण और दूसरे हाथ मे क्रीडाकमल सुशोभित हो रहा था।
पार्वती जी के शरीर की शोभा अत्यन्त सुन्दर एवं अवर्णनीय थी।उनके सम्पूर्ण शरीर मे चन्दन ; अगरु ; कस्तूरी और कंकुम का अंगराग सुशोभित था।उनके पैरों की पायजेब मधुर संगीत बिखेर रही थी।उनके इस दिव्य रूप को देखकर सभी देवता भक्तिभाव से नतमस्तक हो गये।भगवान शिव जी ने भी कनखियों के द्वारा पार्वती जी मे सती जी की आकृति का अवलोकन किया ; जिससे उनकी विरह वेदना समाप्त हो गयी।उनके सम्पूर्ण अंग रोमाञ्चित हो उठे।उस समय ऐसा प्रतीत होता था ; मानो गौरी जी शिव जी की आँखों मे समा गयी हों।
इधर पार्वती जी अपने कुलदेवी का पूजन करने लगीं।उनके साथ अनेक ब्राह्मण - पत्नियाँ भी विद्यमान थीं।पूजनोपरान्त सभी लोग हिमालय के राजभवन मे चली गयीं।बाराती भी जनवासे मे जाकर विश्राम करने लगे।
Wednesday, 22 June 2016
दिव्य दूल्हन पार्वती जी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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