शिव जी नटराज हैं ही।वे कभी-कभी ऐसी विचित्र लीला कर बैठते हैं ; जो साधारण प्राणियों की बात छोड़िए देवी-देवताओं की समझ से भी बाहर रहती है।ऐसी ही एक विचित्र लीला उन्होंने हिमालय के घर पर दिखाई थी।
पार्वती जी की तपस्या जब सफल हो गयी और शिव जी से उन्हें पत्नी रूप मे वरण करने का वर प्राप्त हो गया ; तब वे अपने घर आ गयीं।उसी समय भगवान शिव जी नट का रूप धारण कर मेना के समक्ष प्रस्तुत हुए।उनके बायें हाथ मे श्रृंग और दाहिने हाथ मे डमरू विराजमान था।उन्होंने मेना के समीप बैठी हुई स्त्रियों के समक्ष बहुत सुन्दर नृत्य एवं गीत प्रस्तुत किया।थोड़ी ही देर मे सम्पूर्ण नगरवासी भी उपस्थित हो गये।सभी लोग उनकी लीला देखकर मन्त्रमुग्ध हो गये।उस समय वे सभी नागरिकों की दृष्टि मे नट के रूप मे दिखाई पड़ रहे थे ; किन्तु पार्वती ने अपने हृदय मे साक्षात् शिव जी का दर्शन किया।तब पार्वती ने मन ही मन उन्हें प्रणाम किया और वर माँगा कि आप मेरे पति हो जाइये।शिव जी उन्हें मनोवाँछित वर प्रदान कर पुनः नृत्य करने लगे।
इधर मेना एक स्वर्णमयी थाली मे अनेक प्रकार के रत्न लेकर आयीं और नट को देने लगीं।नटराज ने उसे लेने से इनकार कर दिया।उसने कहा कि यदि आप मुझे कुछ देना चाहती हैं तो मुझे अपनी पुत्री प्रदान करें।इसे सुनकर मेना बहुत क्रुद्ध हुईं और उसे डाँटने लगीं।उसी समय हिमवान भी आ गये।उन्होंने अपने सेवकों को आदेश दिया कि इसे पकड़कर बाहर निकाल दो।परन्तु उस समय नटराज अग्नितुल्य प्रज्ज्वलित हो उठे।उन्हें स्पर्श करने मे भी कोई सक्षम नहीं हुआ।सभी लोग उसे देखकर आश्चर्यचकित हो गये।
नटराज ने अपनी लीला बन्द नहीं की।उन्होंने तत्काल ब्रह्मा ; विष्णु ; रुद्र आदि का रूप धारण कर लिया।इसे देखकर हिमवान जी इतना आश्चर्यचकित हुए कि वे परमानन्द मे निमग्न हो गये।उधर नटराज भिक्षारूप मे केवल पार्वती को ही माँग रहे थे।परन्तु शिव-माया से मोहित हिमवान ने उनकी बात नहीं मानी।अन्ततोगत्वा शिव जी अन्तर्धान हो गये ; तब मेना और हिमालय को ज्ञात हुआ कि ये तो शिव जी ही थे।वे अपनी माया से हमे छल रहे थे।इस ज्ञान के उदय होने से उनके हृदय मे शिव जी के प्रति और अधिक श्रद्धा एवं भक्ति का प्रादुर्भाव हो गया।
Thursday, 9 June 2016
शिव जी की नटलीला -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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