Friday, 3 June 2016

हिमालय द्वारा उमाराधन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           एक बार भगवान विष्णु सहित समस्त देवता और ऋषिगण गिरिराज हिमालय के पास गये।हिमालय ने उनका यथोचित सत्कार करने के बाद उनके आगमन का कारण पूछा।देवताओं ने बताया कि जो जगदम्बा उमा जी दक्षपुत्री सती के रूप मे प्रकट हुई थीं ; वे दक्ष-यज्ञ मे योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर स्वधाम को चली गयी हैं।अब शिव जी अकेले रह रहे हैं।यदि वे उमा जी पुनः आपकी पुत्री के रूप मे अवतरित होकर शिव जी की धर्मपत्नी बन जायँ तो हम सबका कल्याण हो जाये।इसे सुनकर गिरिराज बहुत प्रसन्न हुए।उन्होंने देवताओं से उमाराधन की विधि भी सीख ली।
           देवताओं के चले जाने के बाद हिमालय और उनकी पत्नी मेना ने कठोर तप आरम्भ कर दिया।वे दिन-रात शिव एवं शिवा का चिन्तन करते हुए उनके पूजन मे संलग्न रहते थे।मेना प्रतिदिन गंगा तट पर उमा जी पार्थिव मूर्ति बनाकर विधिवत् पूजन करती थीं।वे प्रायः निराहार रहती थीं।इस प्रकार तप करते हुए जब सत्ताईस वर्ष व्यतीत हो गये तब उमा जी प्रसन्न हो गयीं।वे मेना के समक्ष प्रकट हुईं और उनसे वरदान माँगने को कहा।
           जगदम्बा उमा का दर्शन पाकर मेना धन्य हो गयीं।वे उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति मे संलग्न हो गयीं।भगवती उमा ने उन्हें अपने हृदय से लगाकर पुनः वरदान माँगने को कहा।इस पर मेना ने कहा कि यदि मै वरदान प्राप्त करने योग्य हूँ तो मुझे सौ पुत्र प्रदान करें ; जो दीर्घायु एवं महाबली हों।उसके पश्चात् आप स्वयं मेरी पुत्री के रूप मे प्रकट होकर भगवान रुद्रदेव को धर्मपत्नी बनना स्वीकार करें।मातेश्वरी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।इसके बाद वे अदृश्य हो गयीं।मेना भी आनन्दमय जीवन व्यतीत करते हुए देवी के वरदान के फल की प्रतीक्षा करने लगीं।कालान्तर मे वे सभी वरदान चरितार्थ हुए।

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