शिव जी की बारात हिमाचल पुरी की ओर चल पड़ी।उस समय शिव जी का सौन्दर्य बहुत दर्शनीय था।उनके मुख पर अपूर्व प्रसन्नता सुशोभित हो रही थी।वे नाना प्रकार के रत्नाभूषणों से सुसज्जित थे।उनके अंगों के लावण्य से समस्त दिशायें प्रकाशित हो रही थीं।उन्होंने जो वस्त्र धारण कर रखा था ; वह अत्यन्त महीन ; नवीन एवं चित्ताकर्षक था।इससे उनके श्रीअंगों की शोभा द्विगुणित हो रही थी।उनके मस्तक पर उत्तम रत्नजटित मुकुट सशोभित हो रहा था।उनका अंग-प्रत्यंग सर्पाभूषणों से सुसज्जित था क्योंकि वे सर्प ही दिव्याभूषणों के रूप मे परिवर्तित हो गये थे।उनकी अंगकान्ति अत्यन्त सुन्दर एवं मनोहारी थी।उस समय सुरेश्वरगण चँवर डुलाते हुए उनकी सेवा मे लगे हुए थे।
शिव जी ने स्वेच्छानुसार ही दिव्य शरीर धारण कर रखा था।अन्यथा वे तो निराकार ; निर्विकार साक्षात् परब्रह्म परमात्मा हैं।वे सम्पूर्ण जगत के एकमात्र ईश्वर और स्वामी हैं।वे बहुत दयालु एवं भक्तवत्सल हैं।वे अपने उपासकों को मनोवाँछित फल प्रदान करने वाले हैं।वे सब पर कृपा करने वाले तथा भक्तों के अधीन रहने वाले हैं।वे प्राकृत गुणों से रहित होते हुए भी कल्याणमय गुणों की खान हैं।इतना ही नहीं बल्कि वे तो प्रकृति और पुरुष से भी विलक्षण एवं सच्चिदानन्द स्वरूप हैं।इसलिए उनके सौन्दर्य एवं ऐश्वर्य का वर्णन करना मानव सामर्थ्य से परे है।
उस समय दूल्हे राजा का समाज भी बहुत विलक्षण था।उनके वाम भाग मे विनतानन्दन गरुड की पीठ पर आसीन भगवान विष्णु जी विद्यमान थे।दक्षिण भाज मे महा शोभासम्पन्न चतुर्मुख ब्रह्मा जी सपरिवार विराजमान थे।शिव जी के पीछे ऐरावत पर आसीन देवराज इन्द्र विद्यमान थे।अन्य देवता भी उनके अगल-बगल उपस्थित थे।वे सभी कल्याण स्वरूप भगवान शिव जी की स्तुति कर रहे थे।सम्पूर्ण वातावरण शिव जी की जय जयकार से गुंजायमान था।इस अनुपम शोभा का दर्शन गिरिराज हिमालय सदृश महानुभावों को प्राप्त हो सकता है।यह उनकी तपस्या और निष्ठा का ही परिणाम था।
Thursday, 16 June 2016
दिव्य दूल्हा शिव जी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment