पार्वती जी के विवाह का निश्चय कर हिमवान ने अपने गुरु गर्ग जी से लग्न-पत्रिका लिखवाकर शिव जी के पास भेजा।शिव जी ने सबका यथोचित सत्कार किया।दोनो ओर से विवाह की तैयारियाँ आरम्भ हो गयीं।गिरिराज के यहाँ सभी पर्वत ; नदी ; नद आदि मानव रूप धारण कर आ गये।भगवान विश्वकर्मा ने विवाह हेतु मण्डप ; वेदी आदि की रचना कर दी।बारातियों को ठहरने के लिए दिव्य भवनों का निर्माण कर दिया।पूरी हिमालय-नगरी दिव्य भवनो तोरणों पताकाओं से सुसज्जित हो गयी।
इधर शिव जी ने देवर्षि नारद के द्वारा समस्त देवी-देवताओं को निमन्त्रण भेजा।सब लोग यथासमय कैलास पर आ गये।शिव जी ने अपने यहाँ आये हुए देवी ; देवताओं ; लोकपालों ; ऋषियों ; मुनियों ; नागों ; सिद्धों ; यक्षों ; गन्धर्वों आदि का यथायोग्य स्वागत सत्कार किया।सप्त मातृकाओं ने शिव जी को वर रूप मे सजाने का कार्य आरम्भ किया।परन्तु उसके पूर्व ही शिव जी की इच्छानुसार उनकी स्वाभाविक वेष-सामग्रियाँ ही दिव्य आभूषणों के रूप मे परिवर्तित हो गयीं।उनके मुकुट के स्थान पर चन्द्रमा स्वयं विराजमान हो गये।तृतीय नेत्र शुभ तिलक के रूप मे परिवर्तित हो गया।कानो मे लिपटे हुए सर्प सुन्दर रत्नकुण्डल बन गये।अन्य अंगों मे लिपटे हुए सर्प भी रत्नाभूषण बन गये।शरीर मे लगा हुआ भस्म अंगराग बन गया।गजचर्म का परिधान सुन्दर दिव्य दुकूल बन गया।इस प्रकार शिव जी का स्वरूप इतना सुन्दर हो गया कि उसका वर्णन मानव के वश का नहीं था।वे साक्षात् ईश्वर तो थे ही किन्तु इस सजावट से उन्होंने सम्पूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त कर लिया।
इसके बाद शिव जी ने गृह्यसूत्रोक्त विधि से समस्त वैवाहिक कार्य सम्पन्न कर बारातियों के साथ हिमाचल पुरी की ओर प्रस्थान किया।उस समय उनके साथ गणेश्वर शंखकर्ण ; केकराक्ष ; विकृत ; काल ; महाकाल ; प्रमथ ; नन्दी ; क्षेत्रपाल ; भैरव ; वीरभद्र आदि अपने-अपने असंख्य कोटि गणों एवं भूतों के साथ चल पड़े।ये सभी शिव जी के ही समान स्वरूप एवं वस्त्राभूषण वाले थे।चण्डी देवी भी रुद्रदेव की बहन बन कर प्रसन्नता पूर्वक चल पड़ीं।उनके साथ करोड़ो विकराल रूप वाले दिव्य भूतगण भी विद्यमान थे।देवगण भी शिवगणों के पीछे-पीछे चल पड़े।उनके मध्य मे गरुडासन पर विराजमान भगवान श्रीहरि चल रहे थे।देवराज इन्द्र भी ऐरावत पर सवार होकर होकर की शोभा बढ़ा रहे थे।उनके साथ विशाल सैन्य समूह भी विद्यमान था।इस प्रकार एक विचित्र एवं विशाल बारात के साथ शिव जी चल पड़े।उस समय शिव जी सर्वांग सुन्दर वृषभ पर आरूढ होकर अत्यधिक सुशोभित हो रहे थे।
सभी बाराती जब हिमाचल नगरी के पास पहुँचे तब नारद जी ने गिरिराज हिमालय को सूचना दी।हिमवान तत्काल ही विभिन्न स्वागत सामग्रियों के साथ शिव जी का दर्शन करने चल पड़े।उन्होंने जब सम्पूर्ण देव समाज को अपने यहाँ आया हुआ देखा तब वे आनन्द-विभोर हो गये।उन्होंने मन ही मन सोचा कि आज मै सबसे अधिक भाग्यवान हूँ क्योंकि मुझे एक समस्त देवताओं का स्वागत करने का अलभ्य अवसर प्राप्त हो रहा है।उन्होने शिव जी को प्रणाम किया और स्वागत सत्कार के बाद घर चले आये।
Tuesday, 14 June 2016
शिव-बारात -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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