Friday, 10 June 2016

विप्रवेष मे शिवागमन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            हिमालय एवं उनकी पत्नी मेना की शिव-भक्ति को देखकर इन्द्रादि देवों ने इसकी सूचना शिव जी को देने का विचार बनाया।सब लोग शिव जी के पास गये और उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगे।शिव जी ने प्रसन्न होकर सबका कुशल-क्षेम पूछा।देवताओं ने कुशलोपरान्त उनसे गिरिराज हिमालय एवं मेना की अक्षुण्ण भक्ति का वर्णन किया।शिव जी ने उनकी कामना के अनुरूप आश्वासन देकर उन्हें विदा किया।
           तदनन्तर शिव जी ब्राह्मण का रूप धारण कर हिमालय के सभा-भवन मे पहुँचे।उस समय वे एक हाथ मे दण्ड और छत्र तथा दूसरे हाथ मे स्फटिक की माला लिए हुए हरिनाम का जप कर रहे थे।उनके शरीर पर दिव्य वस्त्र एवं ललाट पर उज्ज्वल तिलक सुशोभित था।उन्हें देखते ही हिमालय ने साष्टाङ्ग प्रणाम किया।यद्यपि उस समय शिव जी अपने आप को छिपाये रखने के लिए विप्रवेष मे थे ; फिर भी पार्वती जी अपने प्राणनाथ को पहचान गयीं।उन्होंने प्रणाम कर मन ही मन उनकी स्तुति की।शिव जी ने उन्हें मनोवाँछित शुभाशीष प्रदान किया।
           ब्राह्मण देवता का यथोचित सत्कार करने के बाद गिरिराज ने उनका परिचय पूछा।तब उन्होंने बतलाया कि मै एक उत्तम विद्वान वैष्णव ब्राह्मण हूँ।मुझे ज्योतिष शास्त्र का भी पर्याप्त ज्ञान है।मै मनोजव ; सर्वज्ञ ; परोपकारी ; शुद्धात्मा ; दयासिन्धु एवं विकारनाशक हूँ।मुझे ज्ञात हुआ है कि आप अपनी सुलक्षणा पुत्री का विवाह महादेव जी के साथ करना चाहते हैं।अतः उसी सन्दर्भ मे आपको बताने आया हूँ कि वे नितान्त आश्रय रहित ; कुरूप एवं गुणहीन वर हैं।उनके पास घर-द्वार भी नहीं है ; इसीलिए श्मशान घाट पर निवास करते हैं।वे शरीर पर सर्प लपेटे हुए नंग-धड़ंग इधर-उधर घूमते रहते हैं।उनका कुल-वंश आदि भी अज्ञात है।वे सर्वतोभावेन कुपात्र ; कुशील ; क्रोधी एवं अविवेकी हैं।अतः ऐसे अयोग्य वर से अपनी पुत्री का विवाह करना आपके लिए मंगलप्रद नहीं है।
            हे गिरिराज ! आप स्वयं समझ सकते हैं कि जिनके घर मे भूजी भाँग भी नहीं है ; वह आपकी पुत्री का भरण-पोषण कैसे करेगा ? आपका जन्म नारायण-कुल मे हुआ है और उनके कुल का पता ही नहीं है।आप बहुमूल्य रत्नों के भण्डार हो और वे नितान्त निर्धन एवं गृहविहीन हैं।आप असंख्य बन्धु-बान्धव ; पुत्र-पौत्र आदि से परिपूर्ण परिवार के स्वामी हो और उनके एक भी भाई-बन्धु नहीं है।ऐसी स्थिति मे दोनो पक्षों मे कोई समानता ही नहीं है।विवाह ; प्रीति और विरोध सदैव अपने समतुल्य लोगों से करना चाहिए।अतः आप अपने परिवार वालों से भी पूछ लें।देखिए उनका परामर्श क्या है।परन्तु इस विषय मे पार्वती से मत पूछना क्योंकि उन्हें शिव जी के गुण-दोष की परख नहीं है।इस प्रकार उलटा-सीधा समझाकर शिव जी अन्तर्धान हो गये।
           

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