देवताओं के अनुरोध पर गिरिराज हिमालय एवं उनकी पत्नी मेना ने देवी उमा को पुत्रीरूप मे प्राप्त करने हेतु कठोर तप आरम्भ कर दिया।उनके तप से प्रसन्न होकर भगवती ने उनकी पुत्रीरूप मे अवतरित होने का वर प्रदान किया।अब तो पर्वत दम्पति की रुचि और बढ़ गयी।वे रात-दिन उमाराधन मे ही लगे रहते थे।अतः महेश्वरी उमा जी अपने सम्पूर्ण अंशों से हिमालय के चित्त मे प्रविष्ट हो गयीं।हिमालय का शरीर अभूतपूर्व प्रभा से युक्त हो गया।उन्होंने शुभ मुहूर्त मे अपनी पत्नी मेना के उदर मे जगदम्बा उमा के उस परिपूर्ण अंश का आधान किया।मातेश्वरी की कृपा से मेना गर्भवती हो गयीं।
अपनी पत्नी को गर्भवती जानकर हिमालय भी बहुत प्रसन्न हुए।वे नित्य नवीन उत्सव करने लगे।धीरे-धीरे दशम मास पूर्ण होने वाला था ; तभी चैत्र मास की नवमी तिथि को मृगशिरा नक्षत्र मे अर्धरात्रि के समय मेना के उदर से भगवती शिवा जी अपने ही स्वरूप मे प्रकट हुईं।सम्पूर्ण विश्व मे आनन्द ही आनन्द छा गया।आकाश से पुष्पवृष्टि होने लगी।देवगण मातेश्वरी की स्तुति करने लगे।मेना की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा।वे नीलकमल-दल सदृश कान्तियुक्ता श्यामवर्णीया देवी को देखकर धन्य हो गयीं।वे अपनी सुधबुध खोकर देवी की स्तुति मे संलग्न हो गयीं।उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर देवी ने मेना से वर माँगने को कहा।मेना ने कहा कि अब आप इस रूप को त्यागकर मेरी पुत्री के रूप मे परिवर्तित हो जायँ।जगदम्बा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और शीघ्र ही नवजात पुत्री के रूप मे परिवर्तित हो गयीं।
उमा जी शीघ्र ही लौकिक कन्याओं की भाँति रुदन करने लगीं।परिवार की सभी स्त्रियाँ हर्ष से परिपूर्ण हो गयीं।गिरिराज हिमालय भी आनन्द-सिन्धु मे निमग्न हो गये।तत्पश्चात् मुनियों सहित हिमवान ने अपनी पुत्री का नाम काली रखा।एक दिन मेना ने उन्हें " उ मा " ( अरी ! तपस्या मत कर ) कहकर तपस्या करने से रोका था।इसलिए उनका एक नाम उमा भी पड़ गया।
Friday, 3 June 2016
पार्वती अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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