Tuesday, 21 June 2016

शिव का दिव्यरूप मे प्राकट्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         मेना ने जब यह कहा कि शिव जी यदि सुन्दर रूप धारण कर लें तो मै अपनी पुत्री का विवाह उनके साथ कर दूँगी।इसे सुनकर नारद जी शिव जी के पास गये और उनसे सुन्दर रूप धारण करने का अनुरोध किया।शिव जी दयालु एवं भक्तवत्सल हैं ही।उन्होंने नारद के अनुरोध को स्वीकार करके सुन्दर दिव्यरूप धारण कर लिया।उस समय उनका स्वरूप कामदेव से भी अधिक सुन्दर एवं लावण्यमय था।तब नारद ने मेना को शिव जी के सुन्दर स्वरूप का दर्शन करने के लिए प्रेरित किया।
             मेना ने जब शिव जी के स्वरूप को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गयीं।उस समय शिव जी का शरीर करोड़ों सूर्यों से भी अधिक तेजस्वी और देदीप्यमान था।उनके अंग-प्रत्यंग मे सौन्दर्य की लावण्यमयी छटा विद्यमान थी।उनका शरीर सुन्दर वस्त्रों एवं रत्नाभूषणों से आच्छादित था।उनके मुख पर प्रसन्नता एवं मन्द मुस्कान की छटा सुशोभित थी।उनका शरीर अत्यन्त लावण्यमय ; मनोहर ; गौरवर्ण एवं कान्तिमान था।विष्णु आदि सभी देवता उनकी सेवा मे संलग्न थे।सूर्यदेव उनके ऊपर छत्र ताने खड़े थे।चन्द्रदेव मुकुट बनकर उनके मस्तक की शोभा बढ़ा रहे थे।गंगा और यमुना सेविकाओं की भाँति चँवर डुला रही थीं।आठों सिद्धियाँ उनके समक्ष नृत्य कर रही थीं।ब्रह्मा ; विष्णु सहित सभी देवता ; ऋषि-मुनि उनके यशोगान मे संलग्न थे।उनका वाहन भी सर्वांग विभूषित था।वस्तुतः उस समय शिव जी की जो शोभा थी ; वह नितान्त अतुलनीय एवं अवर्णनीय थी।उसका वर्णन करना मानव-सामर्थ्य के परे था।
           शिव जी के ऐसे विलक्षण स्वरूप को देखकर मेना अवाक् सी रह गयीं।वे गहन आनन्दसागर मे निमग्न हो गयीं।कुछ देर बाद प्रसन्नता पूर्वक बोलीं -- प्रभुवर ! मेरी पुत्री धन्य है।उसके कठोर तप के प्रभाव से ही मुझे आपका दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।मैने अज्ञानतावश आपकी निन्दारूपी जो अपराध किया है ; वह अक्षम्य है।परन्तु आप भक्तवत्सल एवं करुणानिधान हैं।इसलिए मुझ मन्दबुद्धि को क्षमा करने की कृपा करें।मेना की अहंकार रहित प्रार्थना को सुनकर शिव जी प्रसन्न हो गये।उसके बाद स्त्रियों ने चन्दन अक्षत से शिव जी का पूजन किया और उनके ऊपर खीलों की वर्षा की।इस प्रकार के स्वागत-सत्कार को देखकर देवगण भी प्रसन्न हो गये।
           मेना जब शिव जी की आरती करने लगीं तब उनका स्वरूप और अधिक सुन्दर एवं मनभावन हो गया।उस समय उनके शरीर की कान्ति सुन्दर चम्पा के समान अत्यन्त मनोहर थी।उनके मुखारविन्द पर मन्द-मन्द मुस्कान सुशोभित हो रही थी।उनका सम्पूर्ण शरीर रत्नाभूषणों से सुसज्जित था।गले मे मालती की माला तथा मस्तक पर रत्नमय मुकुट धारण करने से उनका मुखमण्डल श्वेत प्रभा से उद्भाषित हो रहा था।अग्नि के समान निर्मल ; सूक्ष्म ; विचित्र एवं बहुमूल्य वस्त्रों के कारण उनके शरीर की शोभा द्विगुणित हो रही थी।उनका मुख करोड़ों चन्द्रमा से भी अधिक आह्लादकारी था।उनका सम्पूर्ण शरीर मनोहर अंगराग से सुशोभित हो रहा था।उन्होंने अपनी विलक्षण प्रभा से सबको आच्छादित कर लिया था।
          शिव जी के इस विलक्षण स्वरूप को देखकर मेना रानी का मुख प्रसन्नता से खिल उठा।वे शिव जी के अगाध सौन्दर्यरस का नेत्रनलिन से पान करती हुई उनकी आरती करने लगीं।वे मन ही मन सोचने लगीं कि आज शिव जी के इस दुर्लभ स्वरूप का दर्शन करके मै भी धन्य हो गयी।मुझे जीवन भर के पुण्य प्रताप का सम्पूर्ण फल मिल गया।इस प्रकार आरती करके वे घर के अन्दर चली गयीं।

No comments:

Post a Comment