Tuesday, 7 June 2016

पार्वती की तपस्या -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           एक बार नारद जी हिमालय के घर गये और उनसे पार्वती की शिव-सेवा एवं काम-दहन का वर्णन किया।बाद मे पार्वती से मिलकर उन्हें बतलाया कि तुमने बिना तपस्या के गर्वयुक्त होकर शिव जी की सेवा की है।उसी गर्व को नष्ट करने के लिए ही शिव जी ने यह लीला की है।परन्तु वे अत्यन्त दयालु एवं भक्तवत्सल हैं।अब तुम तपयुक्त  होकर चिरकाल तक उनकी आराधना करो।वे प्रसन्न होकर तुम्हें अपनी अर्धाङ्गिनी अवश्य बनायेंगे।इस प्रकार समझाकर नारद जी ने उन्हें पञ्चाक्षर शिवमंत्र ( नमः शिवाय ) जपने का उपदेश दिया।
          नारद जी के चले जाने पर पार्वती ने तप करने का दृढ़ निश्चय किया।वे अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर जया और विजया नामक सखियों के साथ तप करने के लिए गंगोत्री तीर्थ मे गयीं।वहाँ पहुँच कर उन्होंने उच्च कोटि की तपस्या आरम्भ की।वे ग्रीष्म ऋतु मे अपने चारो ओर अग्नि जलाकर बीच मे बैठकर पञ्चाक्षर मन्त्र का जप करती थीं।इसी प्रकार वर्षा ऋतु मे भीगती हुई और शीत ऋतु मे निराहार रहते हुए शीतल जल मे खड़ी होकर शिवाराधन मे संलग्न रहती थीं।उन्होंने प्रचण्ड आँधी ; कड़ाके की सर्दी मूसलाधार वर्षा और प्रचण्ड धूप का भी सेवन किया।उनका प्रथम वर्ष फलाहार करते हुए व्यतीत हुआ।दूसरे वर्ष फलाहार को त्यागकर केवल पत्ते चबाकर तप करने लगीं।कई वर्षों तक इसी प्रकार तप किया।बाद मे उन्होंने पत्ते खाना भी बन्द कर दिया।इसलिए देवताओं ने उनका नाम " अपर्णा " रख दिया।
             इस प्रकार देवी ने असंख्य वर्षों तक तप करते हुए व्यतीत किया।बाद मे पूर्णतः निराहार रहने लगीं।वे अब एक पैर से खड़ी होकर पञ्चाक्षर मन्त्र का जप करने लगीं।इस प्रकार कठोर तप करते हुए तीन हजार वर्ष व्यतीत हो गये किन्तु शिव जी का दर्शन नहीं हुआ।पार्वती जी सोचने लगीं कि मै सुदीर्घ काल से तप कर रही हूँ फिर भी प्रभुवर मेरे पास नहीं आये।लेकिन उन्हें विश्वास था कि शिव जी सर्वात्मा ; सर्वदर्शी एवं सब की कामना पूर्ण करने वाले हैं।अतः मेरी ओर उनकी कृपादृष्टि अवश्य होगी।यह सोचकर पुनः तपस्या मे संलग्न हो गयीं।उन्होंने अपनी तपस्या से बड़े बड़े ऋषियों मुनियों को भी पीछे छोड़ दिया।उनकी तपस्या का स्तर निरन्तर बढ़ता जा रहा था।
           एक दिन मेना सहित हिमालय जी पार्वती जी के पास गये और उन्हें समझाया कि शिव-प्राप्ति अत्यन्त दुष्कर है।अब तुम अपनी सुकोमल शरीर को पीड़ा मत दो और तपस्या छोड़कर घर वापस चलो।तब पार्वती जी ने सबको समझाया कि आप लोग चिन्ता मत करें।आशुतोष भगवान शिव जी मुझे दर्शन अवश्य देंगे।अन्तोगत्वा हिमालय आदि वापस लौट गये और पार्वती अपने तपकार्य मे संलग्न हो गयीं।अब तो उनकी तपस्या पहले की अपेक्षा और अधिक उग्र हो गयी।उनके तप से सम्पूर्ण त्रैलोक्य संतप्त हो उठा।देव ; दानव ; मानव ; ऋषि ; मुनि सभी लोग उनकी तपस्या के तेज से व्याकुल हो उठे।वे सभी विधाता के पास गये और उस संताप से बचने का उपाय पूछने लगे।ब्रह्मा जी सभी को लेकर विष्णु जी के पास गये।विष्णु जी बताया कि यह कष्ट तभी दूर होगा जब शिव जी पार्वती जी का पाणिग्रहण करेंगे।
          सभी लोग शिव जी से मिलने के लिए चल पड़े।मार्ग मे पार्वती जी का आश्रम था।अतः सबने उनका दर्शन किया और उनकी उग्रात्युग्र तपस्या का अवलोकन किया।बाद मे सभी लोग शिव जी पास पहुँचे।शिव जी ने सभी का यथोचित सत्कार किया।वार्तालाप के मध्य उन्हें बतलाया गया कि इस समय तारकासुर का आतंक अपने चरम पर है।उसका वध केवल आपके पुत्र के द्वारा ही संभव है।अतः आप पार्वती जी से विवाह करने की कृपा करें ; जिससे पुत्रोत्पत्ति हो सके।शिव जी ने विवाह करने से स्पष्ट इनकार कर दिया।देवगण बारंबार विनती करने लगे किन्तु शिव जी ध्यानमग्न हो गये।तब नन्दी जी की सम्मति से सभी देवता पुनः स्तुति करने लगे।इतना ही नहीं बल्कि देवगण प्रेम से व्याकुलचित्त होकर उच्च स्वर मे रुदन करने लगे।अन्त मे भक्तवत्सल शिव जी ध्यान से विरत हुए और पार्वती से विवाह करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।देवगण प्रसन्न होकर जय जयकार करते हुए स्वस्थान को प्रस्थान कर गये।

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