त्रिदेवों मे भगवान शिव जी की विशिष्ट महत्ता है।उनका पूजन अनादि काल से अक्षुण्ण रूप मे प्रचलित है।इसीलिए भारत के कोने कोने मे शिवलिंग अथवा शिव मूर्ति विराजमान हैं।फिर भी लिंगपूजा का विशेष प्रचलन है।यह लिंगपूजन कब आरम्भ हुआ अथवा शिवलिंग का प्रादुर्भाव कब हुआ ; इस विषय मे शिवपुराण मे बहुत रोचक कथा उपलब्ध है।
एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य विवाद आरम्भ हो गया।दोनो अपने आपको श्रेष्ठ बता रहे थे।उसी समय उन दोनों के बीच एक विशाल एवं ज्योतिर्मय अग्नि स्तम्भ प्रकट हो गया।दोनों आश्चर्यचकित होकर सोचने लगे कि यह क्या है ? कुछ देर बाद दोनो के मन मे यह बात उभरी कि सम्भवतः यह हम दोनो की श्रेष्ठता प्रमाणित करने का कोई दैवी मानदण्ड है।अतः उन दोनो मे यह तय हुआ कि जो व्यक्ति इस स्तम्भ का ओर-छोर पता लगा लेगा।वही श्रेष्ठ देव मान लिया जायेगा।ब्रह्मा जी ऊपर की ओर और विष्णु जी नीचे की ओर गये।दोनों दीर्घकाल तक यात्रा करते रहे किन्तु उस स्तम्भ का ओर-छोर नहीं पा सके।फलतः दोनो निराश होकर वापस लौट आये।
अब दोनो के समझ मे नहीं आ रहा था कि यह क्या है और इसका आदि अन्त कहाँ है ? अन्ततः दोनो प्रार्थना करने लगे -- हे प्रभुवर ! आप जो भी हों ; हमारे ऊपर प्रसन्न हों और हमे अपना दर्शन दें।उनकी भक्तिपूर्ण प्रार्थना से प्रसन्न होकर शक्ति सहित शिव जी प्रकट हो गये और उन्हें मनोवाँछित वर प्रदान किया।उसी समय से ज्योतिर्मय लिंग अथवा शिवलिंग का पूजन आरम्भ हो गया।
सामान्यतः लिंग का अर्थ है -- चिह्न या प्रतीक ; जिसे आँग्ल भाषा मे Symbol कहा जाता है।यह शिव और शक्ति का संयुक्त प्रतीक है।इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि शिव और शक्ति के चिह्न का सम्मेलन ही लिंग है।यह परमार्थ शिव का गमक एवं बोधक होने के कारण लिंग कहलाता है --
लिङ्गमर्थं हि पुरुषं शिवं गमयतीत्यदः।
शिवशक्त्योश्च चिह्नस्य मेलनं लिङ्गमुच्यते।।
प्रायः सभी धर्मग्रन्थों मे भगवान शिव जी की असीम महिमा वर्णित है।राम ; कृष्ण ; इन्द्र आदि सभी देवताओं ने इनकी उपासना करके श्रेष्ठातिश्रेष्ठ सिद्धियाँ प्राप्त की हैं।अतः प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति को मनोवाँछित सफलता प्राप्त करने के लिए शिवोपासना अवश्य करनी चाहिए।
Friday, 24 June 2016
शिवलिंग का प्राकट्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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