दक्ष-यज्ञ मे जगदम्बा सती जी के भस्म हो जाने पर वीरभद्र आदि शिवगणों ने उस यज्ञ को विध्वंश कर दिया।उन्होंने वहाँ उपस्थित अनेक देवताओं और ऋषियों-मुनियों को अंग-भंग कर दिया।वे सभी ब्रह्मा जी की शरण मे गये और उनसे अपने कल्याण का उपाय पूछा।ब्रह्मा जी उन्हें लेकर भगवान विष्णु जी के पास गये और उन्हें देवताओं की व्यथा से अवगत कराया।विष्णु जी ने कहा कि आप सभी लोग भगवान शिव जी के अपराधी हैं।अतः उन्हें ही प्रसन्न करने का प्रयास कीजिए और उनसे क्षमा-याचना कीजिए।
विष्णु जी के नेतृत्व मे सभी देवगण कैलास पर्वत पर गये और शिव जी को प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगे।बाद मे सबने दक्ष सहित सभी देवताओं ; ऋषियों ; मुनियों आदि को जीवित एवं स्वस्थ करने का अनुरोध किया।शिव जी आशुतोष तो हैं ही।वे देवताओं की प्रार्थना एवं करुण-क्रन्दन से प्रसन्न हो गये।उन्होंने बताया कि दक्ष के यज्ञ का विध्वंश मैने नहीं किया ; बल्कि यह तो दक्ष के कुकृत्वों का ही दुष्परिणाम है।वे स्वयं दूसरों से द्वेष करते हैं।दूसरों के प्रति किया गया बर्ताव अपने लिए ही फलित होता है।इसलिए ऐसा कर्म कभी नही करना चाहिए ; जिससे दूसरों को कष्ट की अनुभूति हो।
शिव जी ने आगे कहा कि दक्ष का मस्तक अग्नि मे जल गया है।इसलिए उनके सिर के स्थान पर बकरे का सिर जोड़ दिया जाय तो वे पुनर्जीवित हो जायेंगे।शिव जी को प्रसन्न जानकर विष्णु जी ने दक्ष की यज्ञशाला मे चलने का अनुरोध किया।शिव जी तत्काल चल पड़े।थोड़ी ही देर मे सब लोग उस य़ज्ञशाला मे पहुँचे ; जहाँ समस्त ऋषि ; मुनि ; पितर ; अग्नि ; यक्ष ; गन्धर्व आदि घायल स्थिति मे कराह रहे थे।
शिव जी की आज्ञानुसार दक्ष का सिर-विहीन धड़ लाया गया।उसमे यज्ञपशु बकरे का शिर जोड़ दिया गया।फिर शिव जी की शुभ दृष्टि पड़ते ही दक्ष का शरीर जीवित हो गया।उन्होंने अपने समक्ष करुणानिधान भगवान शिव जी को देखा।उन्हें देखते ही दक्ष के हृदय मे स्नेह-सागर लहराने लगा।उस प्रेम ने उनके अन्तःकरण को धुलकर निर्मल कर दिया।उस समय दक्ष जी भगवान शिव जी की स्तुति करने के लिए उद्यत थे।किन्तु पुत्री-वियोग एवं शिवापमान रूपी अपराध के कारण लज्जित हो अवाक् बने रहे।कुछ देर बाद वे शिव जी को प्रणाम कर उनकी स्तुति मे संलग्न हो गये।शिव जी ने उन्हें क्षमा कर दिया तथा अन्य घायलों को भी स्वस्थ कर दिया।
Thursday, 2 June 2016
दक्ष को जीवनदान -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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