शिव जी दूल्हा बनकर जब हिमाचल पुरी पहुँचे तब उनके साथ बहुत विचित्र बारात थी।उसमे एक से बढ़कर एक भयानक एवं विचित्र रूप वाले भूत-प्रेत विद्यमान थे।स्वयं शिव जी भी बहुत भयानक एवं विचित्र रूप धारण किये हुए थे।उन्हें देखकर पार्वती जी की माता मेना भयभीत होकर मूर्छित हो गयीं।सखियों और दासियों ने जब अनेक उपचार किया तब उन्हें चेतना आयी।
मेना शिव और उनके बारातियों की बात सोच-सोचकर रोने लगीं।उन्होंने नारद को डाँटते हुए कहा कि तुमने मेरी पुत्री को शिव का वरण करने की प्रेरणा दी और हिमवान से भी तप करवाया।परन्तु उसका परिणाम अत्यन्त विपरीत एवं अनर्थकारी निकला।तुमने मुझ अधम नारी को हर प्रकार से ठग लिया।मेरी सुकुमारी पुत्री से कठोरातिकठोर तप करवाया।उस तप का ऐसा फल मिला जो दर्शकों के लिए भी अत्यन्त दुःखदायी है।हाय! मै क्या करूँ ; कहाँ जाऊँ ; मेरा दुःख कौन दूर करेगा ? मै तो हर प्रकार से लुट गयी।मेरा कुल और मेरा जीवन सब कुछ नष्ट हो गया।अरे ! सप्तर्षियों ने भी मुझसे अनुरोध किया था।यदि इस समय वे मुझे मिल जायें तो मै उनकी दाढ़ी-मूछ नोच डालूँ।वसिष्ठ की पत्नी अरुन्धती भी बड़ी धूर्ता है।उसने भी शिव से पार्वती का विवाह करने की प्रेरणा दी थी।
इसके बाद मेना अपनी पुत्री पार्वती को डाँटते हुए बोलीं -- अरी दुष्ट लड़की ! तूने यह कौन सा कर्म किया ; जो मेरे लिए अत्यन्त दुःखदायक बन गया।तूने तो स्वर्ण देकर काँच खरीदा है ; चन्दन के बदले अपने अंगों मे कीचड़ लपेट लिया ; हंस को उड़ाकर कौआ पाल लिया ; गंगाजल को त्यागकर कूपजल को पी लिया ; सूर्य को छोड़कर जुगनू को पकड़ा है।तूने तो यश की मंगलमयी विभूति को त्यागकर चिताभस्म को अपनाया है।तूने विष्णु सदृश परम रूपमय देवताओं को छोड़कर अत्यन्त कुरूप एवं अमंगल वेषधारी शिव को पाने के लिए कठोर तप किया है।तेरी बुद्वि एवं चरित्र को बारंबार धिक्कार है।तेरे गुरु नारद ; सप्तर्षियों एवं सखियों को भी धिक्कार है।इन सबने मिलकर मेरे कुल का नाश कर दिया है।हाय ! मै बाँझ क्यों नहीं हो गयी ? तूने मेरी कोख मे जन्म क्यों लिया ? तू जन्म लेते ही मर क्यों नहीं गयी ? मेरा मन कहता है कि आज तेरा सिर काट डालूँ ; लेकिन शरीर के उन टुकड़ों को लेकर क्या करूँगी ? हाय ! हाय ! तुझे छोड़कर मै कहाँ चली जाऊँ ? मेरा तो जीवन ही नष्ट हो गया।इस प्रकार विलाप करती हुई मेना मूर्छित हो गयीं।
उसी समय सभी देवता मेना के पास गये और उन्हें समझाने लगे।सर्वप्रथम नारद ने कहा कि शिव जी का रूप बहुत सुन्दर है।उन्होंने लीला करने के लिए ऐसा रूप धारण कर लिया है।अतः क्रोध को त्यागकर शिवा का हाथ शिव जी के हाथों मे दे दो।इसे सुनकर मेना ने उन्हे डाँटकर भगा दिया।तब इन्द्रादि देवों ने शिव जी के रूप लावण्य की प्रशंसा करते हुए मेना को समझाने का प्रयास किया किन्तु मेना ने स्वीकार नहीं किया।इसके बाद सप्तर्षियों ने भी समझाने का प्रयास किया परन्तु मेना का क्रोध और अधिक बढ़ गया।उन्होंने कहा -- मै शस्त्र से अपनी पुत्री को काट डालूँगी ; किन्तु शिव के साथ उसका विवाह नहीं कर सकती हूँ।अतः आप लोग दूर हट जाइये और मुझे समझाने का प्रयास बन्द कर दीजिए।
मेना को हिमालय ने समझाया कि तुम्हें इस प्रकार व्याकुल नहीं होना चाहिए।तुम तो अपने घर आये पूज्य अतिथियों का अपमान कर रही हो।मै शिव जी को भलीभाँति जानता हूँ।वे बहुत सुन्दर ; सुरूपवान ; सर्वेश्वर ; प्रतिपालक एवं सर्वपूज्य हैं।इसे सुनकर मेना बोलीं -- आप अपनी पुत्री की हत्या कर दीजिए किन्तु उसे रुद्र को मत सौंपिये ; अन्यथा मै अपना प्राण दे दूँगी।मेना की व्याकुलता को देखकर पार्वती जी स्वयं बोल पड़ीं -- शिव जी साक्षात् ईश्वर हैं।मैने मन ; वाणी और कर्म से उनका वरण कर लिया है।अब आपकी जैसी इच्छा हो वैसा करो।मै पूर्णरूपेण अटल हूँ।मेरा विचार और निश्चय अटल है।उसमे किसी भी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं है।इसके बाद भगवान विष्णु ने मेना को विस्तार पूर्वक समझाया तब उनका क्रोध कुछ मन्द हुआ।उन्होंने श्रीहरि से कहा -- यदि शिव जी सुन्दर स्वरूप धारण कर लें तब उनके साथ मै अपनी पुत्री का विवाह कर सकती हूँ अन्यथा संभव नहीं है।अब श्रीहरि ने नारद जी को शिव जी के पास भेजा और उनके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे।
Monday, 20 June 2016
मेना का विलाप -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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