Monday, 6 June 2016

कामदेव का भस्म होना -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           प्राचीन काल मे तारकासुर नामक एक महाबली असुर की उत्पत्ति हुई।उसने समस्त देवताओं को पराजित कर इन्द्रलोक पर अधिकार कर लिया।इन्द्रादि समस्त देवता ब्रह्मा जी की शरण मे गये और अपनी व्यथा सुनाने लगे।ब्रह्मा जी ने बताया कि तारकासुर मेरे ही वरदान से इतना प्रबल हुआ है।अतः मेरे द्वारा उसका वध किया जाना उचित नहीं है।विषवृक्ष को भी लगाने के बाद उसे काटना अनुचित माना गया है।मेरे वर से वह इतना शक्तिशाली हो गया है कि त्रिदेवों मे से कोई भी उसका वध करने मे सक्षम नहीं है।
           इसे सुनकर देवगण घबरा गये और उसकी मृत्यु का उपाय पूछने लगे।तब ब्रह्मा जी ने बतलाया कि शिव जी के वीर्य से कोई पुत्र उत्पन्न हो तो वही तारकासुर का वध कर सकता है।इसलिए जिन दक्षपुत्री सती ने पार्वती के रूप मे अवतार लिया है ; उनका विवाह शिव जी से कराने का उपाय कीजिए।उनके पुत्र द्वारा ही इस असुर का वध संभव है।इस समय शिव जी गंगोत्री तीर्थ मे तपस्या कर रहे हैं और पार्वती जी उनकी सेवा मे संलग्न हैं।किन्तु शिव जी ध्यानमग्न होने के कारण पार्वती जी की ओर आकृष्ट नहीं हो रहे हैं।आप लोग ऐसा प्रयास कीजिए कि शिव जी पार्वती जी को अपनी भार्या बनाने के लिए तैयार हो जायँ।
           बाद मे देवताओं ने कामदेव का स्मरण किया।कामदेव तत्काल उपस्थित हो गया।इन्द्र ने उसे सम्पूर्ण कथा सुनाई और उससे सहयोग करने का निवेदन किया।उस समय कामदेव भी भगवान शिव जी की माया से मोहित हो गया।उसने सहयोग देने का आश्वासन देते हुए कहा कि मै इस कार्य को अवश्य करूँगा।इसमे रञ्चमात्र सन्देह नहीं है।इस प्रकार उसने सम्पूर्ण कार्यसिद्धि का भार अपने ऊपर ले लिया।
            देवताओं को वचन देकर कामदेव वहाँ से चला गया।वह अपनी पत्नी रति और वसन्त को अपने साथ लेकर वहीं पहुँच गया ; जहाँ योगीश्वर भगवान शिव जी ध्यानमग्न थे।उसने शिव जी के ऊपर शर-सन्धान किया ; जिससे उनके मन मे पार्वती जी के प्रति आकर्षण उत्पन्न होने लगा।उनका धैर्य शिथिल पड़ने लगा और समाधि भंग होने लगी।इस स्थिति को देखकर शिव जी सोचने लगे कि मेरी तपस्या मे महाविघ्न क्यों आ रहा है ? इस समय किस कुकर्मी ने मेरे चित्त मे इस प्रकार का विकार उत्पन्न किया है ?
           शिव जी चारो ओर देखने लगे।तब उन्हें वामभाग मे शर-सन्धान करते हुए कामदेव दिखाई पड़ा।वह अपनी शक्ति के अहंकार से उन्मत्त होकर दुबारा बाण छोड़ना चाहता था।उसे देखते ही शिव जी का क्रोध बढ़ने लगा।इसी बीच कामदेव ने अपना दुर्निवार अमोघास्त्र शिव जी पर छोड़ दिया।परन्तु शिव जी पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।वह अमोघास्त्र शिव जी के पास जाकर शान्त हो गया।इसे देखकर कामदेव भयभीत हो गया।वह इन्द्रादि देवताओं का स्मरण करने लगा।इन्द्रादि सभी देवता तत्काल आ गये और शिव जी की स्तुति करने लगे।
           इसी बीच भगवान हर जी के ललाट के मध्य भाग मे स्थित तृतीय नेत्र से प्रचण्ड अग्नि का प्रादुर्भाव हुआ।उसकी तीव्र ज्वालायें ऊर्ध्वगामी हो रही थीं।देखते ही देखते वह अग्नि-ज्वाला आकाश मे उछली और पृथ्वी पर गिर पड़ी।वह चारो ओर चक्कर काटते हुए कामदेव के समीप पहुँच गयी।देवगण जब तक भगवान से क्षमायाचना करते तब तक तो उसने कामदेव को भस्म कर दिया।चारो ओर हाहाकार मच गया।देवता भी भयभीत हो गये।
           इस भयानक एवं शोकप्रद दृश्य को देखकर कामदेव की पत्नी रति करुण क्रन्दन करने लगी।उसके विलाप से सम्पूर्ण वातावरण शोकमय हो गया।उसने देवताओं को भी बहुत उलाहना दिया।तब भयभीत देवताओं ने काँपते हुए भगवान शिव जी की  विधिवत् स्तुति की।बारंबार प्रार्थना करने पर आशुतोष जी प्रसन्न हो गये।वे बोले -- मेरे क्रोध से जो हो गया है ; वह अब अन्यथा नहीं हो सकता है।फिर भी रति का पति तभी तक अनंग रहेगा ; जब तक श्रीकृष्ण के पुत्र का अवतार नहीं हो जाता है।अतः आप लोग प्रतीक्षा कीजिए।श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के संयोग से कामदेव का जन्म अवश्य होगा।उस समय उसका नाम प्रद्युम्न होगा।इस प्रकार शिव जी से वरदान प्राप्त कर रति भी प्रसन्न हो गयी।देवगण भी प्रसन्नता पूर्वक अपने-अपने स्थान को चले गये।

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